जलवा हो तो डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम जैसा। हत्या के दो मामलों में अदालत उन्हें अलग-अलग उम्रकैद की सजा सुना चुकी है। बलात्कार के एक मामले में 20 साल की सजा अलग मिल चुकी है। जेल की सलाखों के पीछे रहना उन्हें नहीं भाता। तभी हरियाणा सरकार ने पांचवी बार पैरोल पर रिहा किया है डेरा प्रमुख को। अगर कुल मिलाकर देखें तो 17 महीने में मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने उन्हें पांचवी बार दिया है पैरोल।
पिछले साल फरवरी में 21 दिन, फिर जून में 30 दिन और अक्तूबर में 40 दिन पैरोल पर जेल से बाहर अपने भक्तों के बीच रहे थे गुरमीत सिंह। इस साल जनवरी में 40 दिन का पैरोल मिला था। अब फिर एक महीने के पैरोल पर छोड़ा है राज्य सरकार ने उन्हें रोहतक जेल से। वे पैरोल के दौरान बागपत जिले के बरनावा गांव के जंगल में हिंडन और कृष्णा दो नदियों के बीच स्थित अपने विशाल डेरे में रहेंगे।
इस रिहाई का मकसद भी जान लीजिए। डेरा प्रमुख का 15 अगस्त को जन्मदिन है। इसी अवसर के जश्न के लिए मांगा है उन्होंने पैरोल। हालांकि, अक्तूबर 2020 में उन्हें गुरुग्राम के अस्पताल में दाखिल अपनी बीमार मां को देखने के लिए महज सुबह से शाम तक का ही पैरोल मिल पाया था। देश की जेलों में उम्रकैद की सजा भुगत रहे हजारों कैदियों को तो हफ्ते भर के पैरोल के लिए भी पापड़ बेलने पड़ते हैं। लेकिन, उत्तर भारत में डेरा प्रमुख के लाखों अनुयायी ठहरे, जो उन पर अपनी जान छिड़कते हैं। ऐसे समर्थकों का मोह भला हरियाणा के मुख्यमंत्री कैसे छोड़ सकते हैं।
उन्होंने तो 2022 में डेरा प्रमुख के फायदे के लिए जेल मैनुअल में ही बदलाव कर दिया। यानि जेल के अधिकारी और पैरोल के दौरान वक्त जहां बिताया हो वहां के जिलाधिकारी अगर अच्छे चाल-चलन का प्रमाणपत्र दे दें तो राज्य सरकार अपने विवेक का प्रयोग कर दस साल से ज्यादा सजा वाले किसी भी कैदी को साल में दो बार पैरोल और एक बार फरलो दे सकती है। बलात्कारी और हत्यारे से अच्छा चाल-चलन हरियाणा सरकार की नजर में और किसका होगा। तभी तो उन पर इस कदर मेहरबान है सरकार। अब खट्टर साहब से यह कौन पूछे कि इस तरह की मेहरबानी और कितने कैदियों पर की है उन्होंने।
खुला दरवाजा
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल को सजायाफ्ता बलात्कारी और कातिल को पैरोल देने पर गुस्सा आता है तो आए। इसी तरह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी और अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघुवीर सिंह को सिख कैदियों के लिए पैरोल सुविधा नहीं मिलने के कारण हरियाणा सरकार से नाराजगी है तो वे अपनी नाराजगी अपने पास रखें। हमें सुप्रीम कोर्ट के जज रहे मशहूर न्यायविद वीआर कृष्ण अय्यर की इस चर्चित टिप्पणी को नहीं भूलना चाहिए कि जेलों में सिर्फ गरीब लोग रहते हैं, अमीर और रसूखदार नहीं।
लोकसभा का चुनाव देख दलबदलू नेता काम पर लग गए हैं। कभी हां, कभी ना कहते हुए चिराग पासवान को भाजपा गले लगा चुकी है। इसी तरह सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर भी सपा से नाता तोड़ राजग में चले गए। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा छोड़कर सपा में आए थे। पर अपेक्षित सफलता अखिलेश को तो मिली ही नहीं, राजभर भी खोटे सिक्के ही साबित हो गए। दारासिंह चौहान ने तो सपा की विधानसभा सीट से भी इस्तीफा दे दिया।
अब चर्चा है कि भाजपा के साथ लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। कांगे्रस छोड़ बाकी सारे दलों का अनुभव है उनके पास। उत्तर प्रदेश के ऐसे ही दलबदलू तीन पिछड़े और एक दलित नेता पर भाजपा ने डोरे डाले हैं। चर्चा है कि ये चारों किसी भी दिन भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इनमें से इस समय कोई भी किसी भी सदन का सदस्य नहीं है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। भाजपा का असली दारोमदार इसी सूबे पर टिका है। पार्टी ने 2014 में 73 और 2019 में इसी सूबे से 64 सीटें जीती थी। सीटें कम न हो जाएं, इस डर से हर दलबदलू नेता के लिए दरवाजा खोल दिया है।
नायडू की डूबी चुनावी नैया
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भाजपा में वापसी की रणनीति बनाई थी। भाजपा उनके साथ तेलंगाना और आंध्र दोनों जगह मिलकर चुनाव लड़ने को फायदे का सौदा मान रही थी। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव पिछले काफी समय से भाजपा से नाराज चल रहे हैं। उन्होंने भी गैर कांगे्रसी गैर राजग दलों का तीसरा गठबंधन बनाने की मुहिम चलाई थी। जो सिरे नहीं चढ़ पाई। लिहाजा वे अब नए गठबंधन ‘इंडिया’ से बाहर हैं। आंध्र में जगनमोहन रेड्डी पहले से ही नवीन पटनायक की राह पर चल रहे हैं।
भाजपा को ऐसे में नायडू के साथ गठबंधन करना घाटे का सौदा नजर आया तो कदम पीछे खींच लिए। उल्टे उनकी विरोधी और रिश्ते में उनकी साली पुरंदेश्वरी को आंध्र भाजपा का अध्यक्ष बना दिया। भाजपा को अपने सर्वेक्षण में पता चला कि तेलंगाना में अब नायडू का कोई जनाधार नहीं। ऊपर से राज्यसभा में समर्थन चाहिए तो काम चंद्रशेखर राव और जगनमोहन रेड्डी आएंगे। नायडू के चक्कर में उन्हें नाराज क्यों किया जाए। राव की बेटी कविता तो वैसे भी दिल्ली शराब घोटाले में केंद्रीय जांच एजंसियों के जाल में उलझी है। तभी तो कहते हैं कि राजनीति सपाट नहीं होती, उसमें दांव-पेच होते हैं अहम।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)