प्रधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की अगुवाई में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि दिल्ली के मामले में संसद राज्य सूची और समवर्ती सूची पर कानून बना सकती है। इस दृष्टि से राज्य सूची और समवर्ती सूची दोनों अहम हैं। अगर संसद समवर्ती सूची में चल रही है, तो दिल्ली सरकार के पास क्या शक्ति है? इस पर हमें विचार करना है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 73 बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह कहता है कि समवर्ती सूची में भी केंद्र सरकार राज्य की कार्यकारी शक्ति नहीं छीन सकती है। दिल्ली के संबंध में अनुच्छेद 254 राज्य सूची पर भी लागू होता है। आम तौर पर अनुच्छेद 254 केवल समवर्ती सूची में संसद द्वारा अधिनियमित कानून को प्राथमिकता देता है। अगर इससे फर्क पड़ता है, तो संसद के पास कार्यकारी मामलों में भी शक्ति है।

दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह सिर्फ अधिकार और शक्तियों के बंटवारे का ही विवाद या मामला नहीं है बल्कि एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में दखल का भी है। दिल्ली सरकार के पास अधिकार होने से अधिकारी दिल्ली की जनता और सरकार के प्रति जवाबदेह होंगे। नौकरशाह सरकार और मंत्रिमंडल के प्रति जवाबदेह और जिम्मेदार होना चाहिए।

क्योंकि निर्णायक तौर पर तो विधायिका जनता के प्रति ही जिम्मेदार है। जिम्मेदारियों और जवाबदेही की ये कड़ियां न जुड़ें तो प्रशासन और व्यवस्था काम ही नहीं कर पाएंगे। एक कड़ी भी कमजोर हुई तो व्यवस्था बैठ जाएगी। भारत में तो हमारा प्रशासनिक और संवैधानिक ढांचा संघीय व्यवस्था से भी ज्यादा सटीक है। दो स्तरीय हिस्सा स्वायत्ता और संप्रभुता है। केंद्र, राज्य और फिर दोनों के साझा स्तर पर भी।

दिल्ली सरकार ने कहा कि सिविल सेवाओं को नियंत्रण में रखे बिना कोई सरकार कैसे काम कर सकती है। इससे पूरी तरह अवज्ञा और अराजकता होगी। इस शक्ति के बिना काम नहीं कर सकते। इसके बिना लोगों की इच्छा पूरी नहीं कर सकते। ऐसे हालात हैं कि केंद्र दिल्ली के लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं। सिविल सर्विस के बिना कैसी सरकार। विडंबना है कि दिल्ली नगर निगम के पास तो सिविल सेवाओं के संबंध में अधिकार हैं, लेकिन दिल्ली सरकार के पास नहीं।

सिंघवी ने कहा कि लोगों की इच्छा को पूरा करने वाली कोई भी सरकार अगर अस्तित्व में है तो उसे पद सृजित करने, उन पदों पर कर्मचारियों को नियुक्त करने और विश्वास के अनुसार उन्हें बदलने की क्षमता होनी चाहिए। जब तक इस सरकार के पास शक्ति नहीं है, सरकार कार्य नहीं कर सकती है। जनता स्तर पर प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार नीति बनाती है। लेकिन कोई भी सरकारी कार्यान्वयन केवल सिविल सेवाओं पर निर्भर करेगा।