संसद बात करने की जगह है। इसे बात करने की जगह बने रहना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो संसद पर कलंक लग जाएगा। यह मानना गलत है कि संसद का काम केवल विधेयक पारित करना है। एक संसदीय प्रणाली में, कार्यकारी सरकार को हमेशा लोकसभा में बहुमत वाला माना जाता है। इसलिए, कानून पारित करने का प्रावधान संसदीय प्रणाली में किया गया है। हालांकि, अगर कानून बहस के बिना पारित किया जाए, तो यह संदिग्ध होगा। बहस के जरिए ही संसद द्वारा पारित विधेयक को वैधता मिलती है।
संसद का शीतकालीन सत्र चार दिसंबर, 2023 को शुरू हुआ था। इसे 21 दिसंबर को समाप्त होना था। सरकार ने महत्त्वपूर्ण विधेयकों को पारित करने सहित महत्त्वपूर्ण एजंडे रखे। विपक्ष ने बहस के लिए मुद्दों की एक लंबी सूची रखी। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को आश्वासन दिया कि वे संसद के सुचारू संचालन में सहयोग करेंगे। पीठासीन अधिकारियों ने अपनी पारंपरिक बातें रखीं और दोनों सदनों में शांति से सत्र शुरू हुआ।
एक सप्ताह से अधिक समय तक दोनों सदनों में कामकाज हुआ और विधेयक पारित किए गए। महुआ मोइत्रा को लोकसभा से अनुचित रूप से निष्कासित कर दिया गया था। यह काफी विस्मयकारी था, लेकिन इससे व्यवधान पैदा नहीं हुआ।राज्यसभा में अर्थव्यवस्था की स्थिति पर लंबी चर्चा हुई। मैंने माननीय वित्त मंत्री से एक प्रश्न पूछने के साथ अपना भाषण समाप्त किया। उनके जवाब ने मुझे हैरान कर दिया। मैं अभी भी यह समझने की कोशिश कर रहा हूं कि उन्होंने क्या कहा या क्या उनके कहने का मतलब यह था और मैं अर्थशास्त्र या अंग्रेजी या दोनों की समझ की कमी के लिए खुद को दोषी ठहराता हूं।
सुरक्षा में चूक
सांसदों ने 13 दिसंबर को वर्ष 2001 में संसद पर हमले में शहीद हुए सुरक्षाकर्मियों को श्रद्धांजलि दी। उस दिन दोनों सदनों में काम हो रहा था। दोपहर एक बजे से कुछ पहले दो लोग लोकसभा की दर्शक दीर्घा से कूद गए और रंगीन गैस के कनस्तर खोल दिए। वे बहुत कुछ बुरा कर सकते थे। वहां हंगामा और भ्रम की स्थिति थी।
जल्दी ही, सांसदों ने दोनों लोगों को काबू में कर लिया और मार्शल उन्हें वहां से ले गए। यह सुरक्षा का गंभीर उल्लंघन था। कुछ ही घंटों के भीतर, यह पता चल गया कि कर्नाटक के भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा, जो अपने दक्षिणपंथी विचारों के लिए जाने जाते हैं, द्वारा दो ‘आगंतुकों’ को पास के लिए अनुशंसित किया गया था। (अगर वह कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस या सपा से संबंधित होते तो भगवान भी उनकी रक्षा नहीं कर सकते थे।)
अगले दिन, जैसा कि अपेक्षित था, विपक्ष ने माननीय गृह मंत्री से भीषण उल्लंघन पर एक बयान की मांग की। उम्मीद की जा सकती थी कि सरकार स्वत: संज्ञान लेते हुए बयान देगी, लेकिन जोरदार मांग के बाद भी सरकार ने बयान देने से मना कर दिया। यह स्वाभाविक रूप से एक हंगामा और निरंतर व्यवधान का कारण बना।
मिसालें
एक साधारण से बयान में स्वीकार किया गया कि सुरक्षा का उल्लंघन गंभीर था, एक मामला दर्ज किया गया, जांच चल रही है, और उचित समय पर एक और बयान दिया जाएगा। अनजाने कारणों से कोई आधिकारिक बयान नहीं था, कोई चर्चा नहीं थी, कुछ भी नहीं था। सरकार ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और झुकने से इनकार कर दिया। मिसालें इसके विपरीत थीं।
जब गुरुवार, 13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हमला हुआ था- सरकार की ओर से संसद में विदेश मंत्री ने 18 दिसंबर को एक बयान दिया;संसद में 18 और 19 दिसंबर को चर्चा हुई; गृहमंत्री आडवाणी ने 18 और 19 दिसंबर को बयान दिए; औरप्रधानमंत्री वाजपेयी ने संसद में 19 दिसंबर को वक्तव्य रखा। पुन: जब 26-29 नवंबर, 2008 को मुंबई पर आतंकवादी हमला हुआ, 11 दिसंबर, 2008 को शीतकालीन सत्र के पहले दिन गृह मंत्री (पी चिदंबरम) ने लोक सभा में एक विस्तृत वक्तव्य दिया और यही वक्तव्य राज्य सभा में राज्य मंत्री ने दिया।दोनों सदनों में गंभीर चर्चा हुई।
कोई बहस नहीं, कोई चिंता नहीं
इस बार तमाम उदाहरणों के बावजूद, सरकार ने एक संदिग्ध तर्क के पीछे आड़ ली कि माननीय अध्यक्ष संसद की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार थे और जब तक जांच रपट प्राप्त नहीं हो जाती, सरकार कोई बयान नहीं देगी।इसके अलावा, माननीय प्रधानमंत्री और माननीय गृह मंत्री कई दिनों तक दोनों सदनों से दूर रहे, जबकि माननीय गृह मंत्री ने एक टीवी चैनल से इस विषय पर विस्तार से बात की।
संसद के शीतकालीन सत्र का विघटन स्पष्ट रूप से सरकार के लिए कोई चिंता का विषय नहीं था। जब विपक्षी सदस्यों ने दोनों सदनों को बाधित किया, तो सरकार को सांसदों के निलंबन के लिए आगे बढ़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई। 20 दिसंबर को जब सत्र समय से पहले समाप्त हुआ, तब तक दोनों सदनों के अभूतपूर्व 146 सांसदों को निलंबित किया जा चुका था।
निलंबन की दैनिक रस्म के बीच, सदनों ने बिना किसी सार्थक बहस के 10/12 विधेयक पारित किए, जिनमें शामिल हैं आइपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए तीन विवादास्पद विधेयक। सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि ऐसा लगता है कि सरकार यह सोचती है कि एक बाधित और गैर-कार्यात्मक संसद का देश के शासन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
पिछले कुछ वर्षों में, मेरा डर बढ़ गया है कि भारत की संसद अप्रासंगिक हो जाएगी और कई ‘लोगों’ की संसदों की तरह हो जाएगी, जो आज्ञा का पालन किया करेंगे। शीतकालीन सत्र 2023 के विघटन ने मेरे संदेह और भय को गहरा कर दिया है। फिर भी उम्मीद बनी हुई है, और मैं आपको नए साल की शुभकामनाएं देता हूं!