बिहार के सीएम नीतीश कुमार का 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की नई तारीख फिर तय हो गई है। वे लगातार इसके लिए प्रयास कर रहे थे। नीतीश कुमार टीएमसी नेता ममता बनर्जी, एनसीपी नेता शरद पवार, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, सपा नेता अखिलेश यादव के अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे, तमिलनाडु के सीएम स्टालिन को एकजुट कर पटना में 23 जून को रैली कराने जा रहे हैं। नीतीश की इस कोशिश से ऐसा लग रहा है कि पटना एक बार फिर देश की राजनीति को नई दिशा देने में अगुवा बनने जा रहा है। इससे पहले यह रैली 12 जून को होने वाली थी, लेकिन नेताओं के व्यस्त रहने से टल गई थी।

1965 में लोहिया और 1974 में जेपी की रैलियों के बाद चली गई थी कांग्रेस की सत्ता

पिछले अप्रैल में कोलकाता में नीतीश से मुलाकात के दौरान ममता बनर्जी ने यह सुझाव दिया था कि 1974 के जेपी आंदोलन की तरह विपक्षी एकता की आवाज पटना से निकले। इस आवाज के पीछे जून का भी संयोग है। 1974 में जून महीने में ही समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाने के आह्वान के साथ आंदोलन शुरू किया था। 1965 में राम मनोहर लोहिया ने पटना में राजनीतिक बदलाव का आगाज किया था। तब पटना कांग्रेस विरोधी आवाज के लिए एक केंद्र बन गया था। लोहिया के आंदोलन के बाद नौ राज्यों में कांग्रेस की सत्ता चली गई थी।

27 अक्टूबर 2013 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी मैदान में हुंकार रैली की थी। तब भाजपा मोदी को आगे बढ़ाने के लिए माहौल तैयार कर रही थी। तब नीतीश ने “हुंकार से अहंकार टपकता” है कहकर विरोध किया था। जबकि सच यही है कि उनकी हुंकार रैली से उनके पीएम तक पहुंचने के लिए रास्ता तय हुआ था।

2003 में लालू प्रसाद यादव ने पटना में एक रैली कर परिवर्तन का आह्वान किया था। उस दौरान लालू प्रसाद यादव की बिहार में जबर्दस्त सियासी ताकत थी। भाजपा नेता अटल बिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भी पटना में रैली करके सियासी आवाज उठा चुके हैं। पटना में विपक्ष की राजनीतिक रैलियों का असर दिल्ली की सत्ता पर पड़ता रहा है।

इस बार विपक्ष के शीर्ष नेताओं को एकजुट कर नीतीश कुमार 23 जून को पटना के उसी गांधी मैदान से मोदी सरकार को सत्ता से हटाने का आह्वान करेंगे, जिससे जेपी, लोहिया, अटल और आडवाणी तक आवाज उठा चुके हैं।