Odisha Politics: लगभग ढाई दशक के राज के बाद साल 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनवा में बीजेडी को बड़ा झटका लगा है। पार्टी प्रमुख नवीन पटनायक अब राज्य की सत्ता से बाहर हैं और शासन बीजेपी के हाथों में हैं। राज्यसभा के दो सांसदों का पार्टी छोड़ दलबदल का खेल करना भी बीजेडी के लिए एक नई चुनौती लाया। आज की स्थिति में पार्टी के सामने प्रासंगिक बने रहने तक की चुनौती है। पार्टी को लोकसभा में शून्य मिला है और राज्यसभा में जो 9 सांसद थे, उनमें से भी दो ने पार्टी छोड़ नवीन पटनायक को झटका दिया है, जिसके बाद बिखरती बीजेडी को संभालना पूर्व सीएम नवीन पटनायक की सबसे बड़ी चुनौती है।

दरअसल, लोकसभा चुनावों में एक भी सीट न मिलने के बाद संसद में बीजेडी की ताकत राज्यसभा तक सीमित हो गई थी, जहां उसके नौ सांसद थे। हालांकि, पार्टी के दो सांसदों, ममता मोहंता और सुजीत कुमार के एक महीने में ही बीजेपी में शामिल हो जाने के बाद अब पार्टी के उच्च सदन के सदस्यों की संख्या घटकर सात रह गई है।

NDA सरकार के बदला है BJD ने रुख

चुनावी हार के बाद के घटनाक्रमों ने राष्ट्रीय राजनीति में नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय पार्टी की सिकुड़ने का संकेत दिया है। सांसद मोहंता और सुजीत कुमार द्वारा किए गए दावों के बावजूद, बीजेडी हलकों में उनके इस कदम को “पार्टी को कमजोर करने की एक बड़ी योजना” के रूप में देखा जा रहा है, खासकर तब जब इसने केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली NDA सरकार के प्रति अपना रुख बदल लिया है। बीजेडी के अंदरूनी सूत्रों को आने वाले दिनों में कुछ और दलबदल की आशंका है।

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कभी मोदी सरकार के थे संकटमोचक

2014 के चुनावों के बाद बीजेडी को एनडीए के बाहर मोदी सरकार के “विश्वसनीय सहयोगी” के तौर पर देखा जाता था। ओडिशा में शासन करते हुए पार्टी ने लगभग हर मुद्दे पर मोदी सरकार को अपना समर्थन दिया, जिसमें राज्यसभा में महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराना भी शामिल था, यह ऐसा वक्त था जब मोदी सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था।

नवीन पटनायक खुद संभाल रहे हैं कमान

हालांकि, 2024 के चुनावों में बीजेपी के हाथों हार का सामना करने के बाद, जब उसने लगातार पांच कार्यकाल के बाद राज्य में सत्ता खो दी, तो बीजेडी ने एक “मजबूत और जीवंत विपक्ष” की भूमिका निभाने का फैसला किया, और BJP सरकार को अपना मुद्दा-आधारित समर्थन समाप्त करने की घोषणा की। संसद में पार्टी की रणनीतियों को तैयार करने में अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए पटनायक बीजेडी के संसदीय दल के प्रमुख भी बने।

सुजीत कुमार ने भ्रष्टाचार को बताया अहम मुद्दा

मोहंता पिछले महीने हुए राज्यसभा उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर दोबारा सांसद चुने गए। कुमार पिछले शुक्रवार को बीजेडी छोड़ने के कुछ ही देर बाद भाजपा में शामिल हो गए, जबकि बीजेडी ने उन्हें “पार्टी विरोधी गतिविधियों” के लिए निष्कासित कर दिया था। सुजीत कुमार ने अपने इस कदम के लिए बीजेडी में व्याप्त भ्रष्टाचार और कालाहांडी क्षेत्र में विकास की कमी को जिम्मेदार ठहराया, जहां से वे आते हैं।

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उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेडी शासन के दौरान व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण कालाहांडी में विकास की गति हासिल नहीं हो सकी। बीजेडी के कई नेता भ्रष्टाचार में लिप्त थे। मैंने इन मुद्दों को बीजेडी नेतृत्व के समक्ष लाने की कोशिश की, लेकिन ऐसा करने में असफल रहा, जिसके कारण मुझे यह निर्णय लेना पड़ा। कुमार का राज्यसभा का कार्यकाल अप्रैल 2026 में समाप्त होने वाला था, इसलिए उन्हें बीजेपी के टिकट पर फिर से नामांकित किए जाने की उम्मीद है। ओडिशा विधानसभा में बीजेपी के पूर्ण बहुमत को देखते हुए, कुमार के मोहंता की तरह निर्विरोध चुने जाने की संभावना है।

बीजेडी के लिए अहम रहे सुजीत कुमार

48 वर्षीय सुजीत कुमार ने वीर सुरेन्द्र साईं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में स्नातक (बीई) की डिग्री और संबलपुर विश्वविद्यालय से विधि में स्नातक (एलएलबी) की डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एमबीए और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के हार्वर्ड केनेडी स्कूल से लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर की डिग्री भी प्राप्त की है।

अपने चुनाव प्रबंधन के लिए जाने जाने वाले सुजीत कुमार ने 2014 के चुनावों में पश्चिमी ओडिशा की कई सीटों पर पर्दे के पीछे से बीजेडी की चुनावी तैयारियों की देखरेख की थी। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बीजेडी को लॉन्च करने में भी उनकी अहम भूमिका थी। अप्रैल 2020 में बीजेडी द्वारा उन्हें उच्च सदन में भेजे जाने से पहले, कुमार ने नवीन पटनायक सरकार के तहत राज्य योजना बोर्ड के विशेष सचिव और विशेष विकास परिषदों के सलाहकार के रूप में काम किया था।

गौरतलब है कि सुजीत कुमार के पिता सत्य नारायण सेठ कालाहांडी जिले के अपने गृह नगर भवानीपटना में आरएसएस के सक्रिय सदस्य थे। दो पार्टी सांसदों के पार्टी छोड़ने के बाद, कई बीजेडी नेताओं ने “पार्टी नेतृत्व की कार्यशैली” और राज्यसभा के लिए उम्मीदवारों की पसंद को दोषी ठहराया, जिसके कारण यह “बड़ी शर्मिंदगी” हुई।

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पार्टी के अंदर से उठने लगे सवाल

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नाम न बताने की शर्त पर बीजेडी के एक नेता ने कहा कि पार्टी ने कभी भी नवीन बाबू के उत्तराधिकारी को तैयार नहीं किया, जो पार्टी के दैनिक कामकाज की देखरेख कर सके। जबकि पार्टी अध्यक्ष के प्रति वफ़ादार कई नेताओं को या तो बर्खास्त कर दिया गया या पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, पिछले पांच सालों में कई संभावित दूसरे दर्जे के नेताओं की अनदेखी की गई। कई वरिष्ठ और मेहनती नेताओं की अनदेखी करते हुए राज्यसभा के लिए उम्मीदवार चुने गए।

हालांकि, बीजेडी प्रवक्ता कलिकेश सिंह देव ने कहा कि कोई भी ताकत बीजेडी को ओडिशा के लोगों से दूर नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि जहां भी बीजेपी को बहुमत मिलता है, वे ऐसे हथकंडों और पैसे और ताकत के इस्तेमाल से लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश करते हैं, जो संविधान की भावना के खिलाफ है। यह सिर्फ ओडिशा के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

एक्सप्रेस से बातचीत में बीजेडी नेता ने कहा कि अब समय आ गया है कि पटनायक को हस्तक्षेप करना चाहिए और बहुत देर होने से पहले पर्याप्त सुधारात्मक उपाय करने चाहिए।