बीते सप्ताह सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एससी और एसटी कोटे का बंटवारा करने की कानूनी बहस को फिर से खोल दिया था। फिलहाल यह मामला 7 जजों की संविधान पीठ को भेजा गया है। बता दें कि एससी और एसटी कोटे के बंटवारे की चिंताओं के बीच अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में भी कोटे के अंदर कोटे की व्यवस्था जांचने के लिए तीन साल पहले ही एक कमीशन बनाया जा चुका है।

जानिए क्या है कोटे के भीतर कोटा? केन्द्र सरकार नौकरियों और शिक्षा में ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी का आरक्षण देती है। हालांकि इस 27 फीसदी कोटे के बंटवारे की जरूरत इसलिए महसूस की जा रही है क्योंकि ओबीसी की केन्द्रीय लिस्ट में शामिल 2600 वर्ग में से कुछ समुदाय ही बड़े स्तर पर कोटे का लाभ ले रहे हैं। यही वजह है कि कोटे के भीतर कोटे का प्रावधान करके ओबीसी जातियों में कोटे का समान बंटवारा ही उद्देश्य है।

कौन-कौन हैं कमेटी में शामिलः ओबीसी कोटे के बंटवारे की व्यवस्था की जांच कर रही कमेटी का गठन 11 अक्टूबर, 2017 को किया गया था। इस कमेटी की अध्यक्षता दिल्ली हाईकोर्ट की रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश रहीं जी रोहिणी कर रही हैं। इनके अलावा सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज के निदेशक डॉ. जेके बजाज और दो अन्य सदस्य हैं। शुरुआत में इस कमेटी का कार्यकाल 12 सप्ताह रखा गया था, जो कि 3 जनवरी 2018 को समाप्त हो रहा था। हाल ही में इस कमेटी के कार्यकाल को बढ़ा दिया गया है।

नवंबर 2019 तक सरकार इस कमीशन पर सरकार 1.70 करोड़ रुपए का खर्च कर चुकी है, जिसमें सदस्यों की सैलरी और अन्य खर्चे शामिल हैं। यह कमीशन मुख्यतः तीन संदर्भ में बनाया गया था। जिसमें पहला संदर्भ ओबीसी कोटे में आरक्षण के लाभ के बराबर बंटवारे की जांच शामिल है। दूसरा ओबीसी कोटे के बंटवारे की प्रक्रिया, पात्रता, शर्तें और योग्यता आदि तय करना और तीसरा केन्द्रीय सूची में शामिल जातियों और समुदायों की समानार्थी पहचान करने और फिर उन्हें उप-श्रेणियों में बांटने का काम शामिल है।

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30 जुलाई, 2019 को कमीशन द्वारा भेजे गए पत्र में बताया गया है कि रिपोर्ट का ड्राफ्ट तैयार हो गया है और इसके राजनैतिक तौर पर बड़ा असर हो सकता है साथ ही इसे न्यायिक समीक्षा से भी गुजरना पड़ सकता है। फिलहाल इस कमीशन का कार्यकाल 31 जनवरी, 2021 तक है और इस कमीशन का बजट नेशनल कमीशन फॉर बैकवार्ड क्लासेज (NCBC) द्वारा वहन किया जा रहा है।