Karnataka High Court: कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में दर्ज एक ऐसे मामले को खारिज कर दिया, जिसमें बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और दलितों का अपमान करने का आरोप लगाया गया था। हाई कोर्ट ने पूरे मामले को सुनने के बाद इसको खारिज कर दिया। कोर्ट ने आर्टिकल 19 का जिक्र करते हुए कहा है कि संविधान का अनुच्छेद 19 देश के प्रत्येक नागरिक को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
दरअसल, जैन सेंटर ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (डीम्ड यूनिवर्सिटी) के छात्रों और संकाय सदस्यों ने एक नाटक का मंचन किया थ। जिसमें कथित तौर पर डॉ. बीआर अंबेडकर और दलितों का अपमानजनक तरीके से उल्लेख किया गया था। जिसके बाद उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। जब यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो उच्च न्यायालय ने इसको खारिज कर दिया।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एसआर कृष्ण कुमार ने दिनेश नीलकांत बोरकर और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और उनके खिलाफ शुरू किए गए अभियोजन को रद्द कर दिया।
इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत नाटक/लघु नाटक व्यंग्य/मनोरंजन की प्रकृति का था, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत संवैधानिक रूप से संरक्षित किया गया है, जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है और आरोपित एफआईआर स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए अपराधों के मूल तत्वों को पूरा नहीं करती है।
विश्वविद्यालय ने निमहंस कन्वेंशन सेंटर में जैन विश्वविद्यालय युवा उत्सव-2023 का आयोजन किया था, जिसमें छात्रों ने कई कार्यक्रम प्रस्तुत किए, जिनमें याचिकाकर्ता छात्रों ने एक लघु नाटक भी प्रस्तुत किया। जिसके बाद पुलिस ने आईपीसी की धारा 153-ए, 149 और 295-ए तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(आर)(एस) और (वी) के तहत मामला दर्ज किया था।
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तथ्यों और साक्ष्यों पर गौर पर करने के बाद बेंच ने कहा कि आरोपित एफआईआर ऐसे व्यक्ति द्वारा दर्ज नहीं की गई है जो एससी/एसटी समुदाय का सदस्य है और इस बात का कोई संकेत नहीं है कि याचिकाकर्ताओं का एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य को किसी सार्वजनिक स्थान पर अपमानित करने या डराने के इरादे से अपमान करने का कोई विशेष इरादा था।
अदालत ने शिकायत, एफआईआर के साथ-साथ लघु नाटक/नाटक की प्रतिलिपि का अवलोकन किया और कहा कि यह इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त है कि अपराध के लिए आवश्यक तत्व स्पष्ट रूप से अनुपस्थित हैं, खासकर जब उक्त नाट्य/लघु नाटक केवल/विशुद्ध मनोरंजन के उद्देश्य से किया गया था और किसी समुदाय या जाति को नुकसान पहुंचाने या अपमानित करने या किसी विशेष धर्म या धार्मिक विश्वास का कोई संदर्भ देने के इरादे से नहीं किया गया था।
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया और कहा कि मेरा विचार है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, जिसके लिए वर्तमान याचिका में इस न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप जरूरी है।
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