Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट ने माना है कि किसी बच्चे को उसकी मां से न मिलने देना भारतीय दंड संहिता के तहत ‘क्रूरता’ के बराबर है। इसके साथ ही कोर्ट ने जालना की रहने वाली एक महिला के ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया।
औरंगाबाद में जस्टिस न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस रोहित जोशी की पीठ ने 11 दिसंबर के फैसले में कहा कि निचली अदालत के आदेश के बावजूद महिला की चार साल की बेटी को उससे दूर रखा जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि चार साल की छोटी बच्ची को उसकी मां से दूर रखना भी मानसिक उत्पीड़न के बराबर है, जो क्रूरता के समान है क्योंकि इससे निश्चित रूप से मां के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचेगा।
हाई कोर्ट ने कहा कि ससुराल वालों का ऐसा व्यवहार भारतीय दंड संहिता की धारा 498-अ के तहत परिभाषित क्रूरता के समान है। पीठ ने कहा कि मानसिक उत्पीड़न दिन-प्रतिदिन आज तक जारी है। यह एक गलत काम है। इसमें कहा गया है कि यह प्राथमिकी रद्द नहीं की जाएगी, क्योंकि यह अदालत के हस्तक्षेप के लिए उपयुक्त मामला नहीं है।
महिला के ससुर, सास और ननद ने कथित क्रूरता, उत्पीड़न और आपराधिक धमकी के लिए महाराष्ट्र के जालना जिले में उनके खिलाफ दर्ज 2022 की प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी। शिकायतकर्ता के अनुसार, उसकी शादी 2019 में हुई और 2020 में उसकी एक बेटी हुई। पति और उसके परिवार के सदस्यों ने उसके माता-पिता से पैसे मांगना शुरू कर दिया और उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया और उसके साथ गाली गलौच की।
मई 2022 में महिला को कथित तौर पर उसके ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया और उसे अपनी बेटी को अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं दी गई। इसके बाद उसने अपनी बेटी की ‘कस्टडी’ के लिए मजिस्ट्रेट अदालत में आवेदन दायर किया। महिला ने हाई कोर्ट को बताया कि मजिस्ट्रेट कोर्ट ने 2023 में पति को बच्चे की कस्टडी मां को सौंपने का आदेश दिया, लेकिन आदेश का पालन नहीं किया गया और बच्ची पति के पास ही रही।
पीठ ने कहा कि हालांकि बच्चा पति के पास था, लेकिन आवेदक (ससुराल वाले) उसके ठिकाने की जानकारी छिपा कर उसकी मदद कर रहे थे। कोर्ट ने टिप्पणी की कि जो लोग न्यायिक आदेशों का सम्मान नहीं करते, वे राहत के हकदार नहीं हैं। तीनों ने अपनी याचिका में क्रूरता और उत्पीड़न के आरोपों से इनकार किया और दावा किया कि उन्हें झूठे मामले में फंसाया गया है।
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