Yasin Malik To Supreme Court: तिहाड़ जेल में बंद जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह एक “राजनीतिक नेता है, आतंकवादी नहीं”। साथ ही दावा किया कि अतीत में सात प्रधानमंत्रियों ने उसके साथ बातचीत की है।

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ के समक्ष वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए मलिक ने सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इस दलील का हवाला दिया कि आतंकवादी हाफिज सईद के साथ उनकी तस्वीरें थीं और इसे सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दैनिकों और टेलीविजन चैनलों ने कवर किया था। मलिक ने कहा कि इस बयान ने मेरे खिलाफ एक सार्वजनिक आख्यान तैयार कर दिया है। केंद्र सरकार ने मेरे संगठन को यूएपीए के तहत आतंकवादी संगठन के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया है। यह ध्यान देने योग्य है कि 1994 में एकतरफा युद्धविराम के बाद, मुझे न केवल 32 मामलों में जमानत दी गई, बल्कि किसी भी मामले को आगे नहीं बढ़ाया गया।

मलिक ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, एचडी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह और यहां तक ​​कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के पहले पांच वर्षों में भी सभी ने युद्ध विराम का पालन किया। अब अचानक मौजूदा सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में मेरे खिलाफ 35 साल पुराने उग्रवादी मामलों की सुनवाई शुरू कर दी है। यह युद्ध विराम समझौते के खिलाफ है। मेहता ने तर्क दिया कि वर्तमान मामले में युद्ध विराम का कोई महत्व नहीं है।

पीठ ने कहा कि वह मामले के गुण-दोष पर निर्णय नहीं कर रही है, बल्कि केवल यह तय कर रही है कि क्या उसे गवाहों से वर्चुअली जिरह करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

मलिक ने कहा कि वह सीबीआई की इस दलील का जवाब दे रहे थे कि उसे जम्मू की अदालत में शारीरिक रूप से पेश नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह एक “खतरनाक आतंकवादी” है।

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उन्होंने कहा कि सीबीआई की आपत्ति यह है कि मैं सुरक्षा के लिए खतरा हूं। मैं इसका जवाब दे रहा हूं। मैं आतंकवादी नहीं हूं और सिर्फ एक राजनीतिक नेता हूं। सात प्रधानमंत्रियों ने मुझसे बात की है। मेरे और मेरे संगठन के खिलाफ किसी भी आतंकवादी को समर्थन देने या किसी भी तरह का ठिकाना मुहैया कराने के लिए एक भी एफआईआर दर्ज नहीं है। मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज हैं, लेकिन वे सभी मेरे अहिंसक राजनीतिक विरोध से संबंधित हैं।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मलिक को जम्मू में उनके खिलाफ चल रहे कुछ मामलों में शारीरिक रूप से पेश होने से मना कर दिया, लेकिन उन्हें तिहाड़ जेल से गवाहों से वर्चुअल तरीके से जिरह करने को कहा।

यह आदेश उस मामले में आया है जिसमें सीबीआई ने पूर्व केंद्रीय मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के 1989 के अपहरण मामले और 1990 के श्रीनगर गोलीबारी मामले की सुनवाई जम्मू से नई दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की है। सीबीआई ने जम्मू की एक निचली अदालत के 20 सितंबर, 2022 के आदेश को भी चुनौती दी, जिसमें आजीवन कारावास की सजा काट रहे मलिक को अपहरण मामले में अभियोजन पक्ष के गवाहों से जिरह करने के लिए व्यक्तिगत रूप से अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया गया था।

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