सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मकान का किराया अदा न करना भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय अपराध नहीं है। इस कानूनी व्यवस्था के साथ अदालत ने एक मकान मालिक द्वारा किरायेदार के खिलाफ दर्ज एफआइआर को रद्द कर दिया है। मकान मालिक ने किरायेदार के खिलाफ धोखाधड़ी और हेराफेरी का मामला पुलिस में दर्ज करा दिया था, क्योंकि उसने किराया अदा नहीं किया था।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि किराए का भुगतान करने में विफलता के परिणाम दीवानी प्रकृति के हो सकते हैं, पर आपराधिक नहीं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर किरायेदार की अपील को स्वीकार करते हुए सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने किरायेदार के खिलाफ मकान मालिक की तरफ से दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया था। पीठ ने कहा कि मकान मालिक के पास दीवानी प्रक्रिया से अपना बकाया किराया वसूल करने का विकल्प खुला है।
एफआइआर को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि जब अपीलकर्ता किरायेदार ने संपत्ति को खाली कर दिया और किराया बकाया है, तो इस सवाल को दीवानी कार्यवाही में तय करने के लिए खुला छोड़ दिया गया है।