सिद्धायनी जैन

अक्सर प्रदूषण की बात करते हुए ध्वनि प्रदूषण के दुष्परिणामों की चर्चा नहीं होती। तेज आवाज सामान्यतया किसी की जरूरत नहीं होती, लेकिन लोग अपने मौज-मजे के लिए तेज आवाज का ‘आनंद’ लेते और दूसरों के लिए परेशानी पैदा करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई जलसों में ऐसा हुआ है कि तेज आवाज वाले संगीत पर नाच रहे लोग अचानक या तो गंभीर रूप से बीमार हो गए या उनकी मौत हो गई।

वैज्ञानिकों और चिकित्सकों का मानना है कि लगातार शोर में रहने के कारण व्यक्ति को भय मिश्रित बेचैनी होने लगती है; उसके रक्तचाप में गड़बड़ी हो जाती और दिल की सक्रियता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। ये स्थितियां किसी भी अप्रिय घटना को जन्म दे सकती हैं। हो सकता है कि आनंद के अतिरेक में नाच रहे व्यक्ति को पता ही न चलता हो कि जिसे वह नृत्य के कारण पैदा हुई थकान समझ रहा है, वह दरअसल शोर के कारण उत्पन्न हुई स्थिति है, जो उसके शरीर के प्राणतत्त्व से खिलवाड़ करने लगी है। यह खतरा उन लोगों के लिए और बढ़ जाता है जो पहले से ही हृदय संबंधी किसी परेशानी, रक्तचाप की अस्थिरता या मानसिक तनाव का सामना कर रहे हैं।

दरअसल, तेज आवाज खासकर शहरी जीवन की एक ऐसी बुराई बनती जा रही है, जिसका अभिशाप भुगतने के लिए हर नागरिक विवश है। सड़कों पर चारों ओर वाहनों की चिल्ल-पों होती है। चूंकि सबको कहीं न कहीं पहुंचने की जल्दी होती है, इसलिए जरा-सा जाम लगते ही वाहन चालक हार्न बजाने लगते हैं।

बाहर के शोर से बचने के लिए लोग अक्सर अपनी गाड़ी के शीशे चढ़ाकर सामान्य से अधिक आवाज में संगीत चला लेते हैं। रेलों, बसों में यात्रा करते या सड़कों पर चलते युवा अपने कानों पर हेडफोन लगाए होते हैं। कई बार इन हेडफोन की आवाज इतनी तेज होती है कि पीछे से आ रही कार का लगातार बजता हार्न भी नहीं सुनाई देता।

ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि जो आवाज उसके कानों में जा रही होगी, उसकी ध्वनि तरंगों की तीव्रता कितनी होगी? कई शोधों से पता चला है कि लोगों में लगातार बढ़ रहे चिड़चिड़ेपन और सड़कों पर वाहन चालकों में होने वाली झड़पों का कारण यह शोर ही है। हमारे आसपास बढ़ता शोर लगातार खतरे का कारण बन रहा है, लेकिन लोग हैं कि अपने आनंद को उन्माद में बदलने की जिद के आगे कुछ समझने को तैयार नहीं हैं।

मनुष्य के सुनने की क्षमता सीमित है। एक सामान्य मनुष्य को एक डेसीबल तीव्रता वाली आवाज आसानी से सुनाई दे जाती है। डेसीबल आवाज के स्तर को नापने की इकाई है। सामान्य तौर पर तीस डेसीबल से अधिक की आवाज को ध्वनि प्रदूषण माना जाता है। यह स्तर जब 120 डेसीबल से अधिक हो जाता है तो दिल की धड़कन तेज हो जाती है। दिल तेजी से धड़कने लगता है, तो अजीब-सी बेचैनी होने लगती है। सुनने वाले का रक्तचाप बढ़ जाता है और इन स्थितियों का असर शरीर के अन्य अंगों पर भी पड़ने लगता है। बुजुर्गों या गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए यह स्थिति कई बार जानलेवा हो जाती है।

समारोहों में चलने वाले ‘डीजे’ अक्सर 120-130 डेसीबल तक शोर पैदा करते हैं। धार्मिक जुलूसों, बरातों में सड़कों पर बजने वाले डीजे कई बार इस स्तर से भी ऊपर चले जाते हैं। सड़क किनारे बने मकानों के निवासी कई बार इस शोर के कारण अपने मकान के खिड़की-दरवाजों में कंपन महसूस करते हैं। इन दिनों चुनाव की गहमागहमी है। रैलियों और जुलूसों के दौर में इस तरह का शोर और बढ़ जाएगा। प्रचार के लिए किराए पर लिए गए वाहन लगातार गली-गली में ऊंची आवाज में प्रचार करते हुए निकलेंगे। ऐसे में, लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को मिलने वाली चुनौतियों की चिंता कौन करेगा?

ध्वनि विस्तारकों के कारण होने वाले शोर के स्तर का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जब कोई कुत्ता लगातार भौंकता है, तो 60 से 80 डेसीबल की आवाज उत्पन्न करता है। इसीलिए आपने महसूस किया होगा कि कोई श्वान अगर लगातार भौंकता है तो एक अजीब किस्म की चिड़चिड़ाहट महसूस होने लगती है। ऐसे में उनकी पीड़ा का अनुमान लगाया जा सकता है, जिनके घरों के सामने कोई बरात या जुलूस रुकता है और डीजे पर ऊंची आवाज में बजने वाले गाने पर लोग देर तक नाचते रहते हैं।

कुछ न्यायालयों ने सड़कों पर डीजे के शोर के संबंध में निर्णय भी दिए हैं, लेकिन ऐसे निर्णयों की पालना कराने वाली एजंसियां अपेक्षित कार्यवाही नहीं करतीं। इसका कारण यह भी है कि लोग ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ आमतौर पर शिकायत नहीं करते और दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करना और उन्हें अदालत तक ले जाना पुलिस के लिए भी अपना कार्यभार बढ़ाने जैसा लगता है।

करीब आठ वर्ष पहले प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों ने मध्यप्रदेश के खरगौन में बकायदा डीजे वालों की मीटिंग लेकर उन्हें माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए पाबंद किया था कि किसी जुलूस, रैली, जलसे या यात्रा में 10 डेसीबल से अधिक आवाज पर डीजे नहीं चलेगा, अन्यथा दोषी को छह माह का कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

इसके करीब दो वर्ष बाद पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी ध्वनि प्रदूषण को गंभीरता से लेते हुए विवाह समारोह आयोजित करने वालों को डीजे बजाने से संबंधित एक निर्देशिका जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि डीजे निर्धारित मानक के स्तर तक ही चलाया जाए। पता नहीं इन सीखों की पालना कितनी हुई है।

दुनिया भर में शोर चिंता का सबब बनता जा रहा है। यह केवल प्रदूषण नहीं, बल्कि उपद्रव है, क्योंकि दूसरों की शांति को बाधित करता है। सन 2005 में स्पेन में एक सर्वेक्षण हुआ था, जिसमें पाया गया कि लोग अच्छी-खासी रकम खर्च करके भी ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति पाना चाहते हैं। अमेरिका में आवाजों के स्तर के लिए मानक बनाए गए हैं। ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण के नियम बनाने के लिए यहा प्रांतों की सरकारों और स्थानीय निकायों को विशेष अधिकार दिए गए हैं।

कनाडा और यूरोपीय संघ के देशों में भी ऐसे कानून हैं, जो ध्वनि प्रदूषण से आम आदमी की रक्षा करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी 85 डेसीबल से अधिक की आवाज को शोर मानते हुए बढ़ते ध्वनि प्रदूषण पर कई बार चिंता प्रकट की है। किसी शायर ने लिखा है कि ‘ये खामोश मिजाजी तुम्हें जीने नहीं देगी, इस दौर में जीना है तो कोहराम मचा दो।’ मगर ध्वनि प्रदूषण के दुष्परिणामों को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि यह शोर, जो हमारे आसपास पसरता जा रहा है, सचमुच हमें शांति से जीने नहीं देगा।