Amethi-Raebareli Lok Sabha Seats: कांग्रेस कार्यकर्ता और समर्थक नेहरू-गांधी परिवार की पारंपरिक सीटों अमेठी और रायबरेली को लेकर चिंतित हैं। हालांकि, कांग्रेस पार्टी अब जल्द ही दोनों लोकसभा सीटों पर संस्पेंस समाप्त करने की तैयारी में है। कांग्रेस पार्टी के नेता जयराम रमेश ने कहा कि पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को फैसला लेने का अधिकार दिया है।

जयराम रमेश ने कहा कि अमेठी और रायबरेली पर सीटों का सस्पेंस अगले 24 घंटे में खत्म हो जाएगा। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि ना तो कोई डरा हुआ है औ ना ही कोई भाग रहा है। कांग्रेस ने मंगलवार को एक नई लिस्ट जारी की थी। इसमें अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित नहीं करके सस्पेंस बरकरार रखा है।

राहुल गांधी को अमेठी से चुनाव लड़ने में क्या परेशानी है?

राहुल गांधी साल 2019 के लोकसभा इलेक्शन में अमेठी की लोकसभा सीट को बीजेपी की उम्मीदवार स्मृति इरानी से हार गए थे। राहुल गांधी के लिए यह और भी बुरा होगा अगर वह दूसरी बार अमेठी से हार जातें हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी के नेता कह रहे हैं कि राहुल गांधी ने वायनाड से पर्चा भरकर पहले ही अमेठी से हार मान ली है। इसके अलावा एक सवाल यह भी है कि अगर राहुल गांधी वायनाड और अमेठी दोनों जीतते हैं, तो उन्हें एक सीट छोड़नी होगी। एक सीट ने उन्हें 2004 में पहली बार लोकसभा में एंट्री दिलाई और दूसरी ने उन्हें 2019 में सांसद बना दिया।

प्रियंका गांधी के बारे में क्या?

अगर प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव लड़ती हैं, तो वह कांग्रेस से चुनावी राजनीति में प्रवेश करने वाली नेहरू-गांधी परिवार की आठवीं सदस्य होंगी। इस बार प्रियंका गांधी चुनाव लड़ती हैं तो गांधी परिवार के तीनों सदस्य राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी संसद में होंगे। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी हाल ही में राज्यसभा सदस्य बनी हैं। प्रियंका गांधी अमेठी से चुनाव लड़ती हैं, तो इसे एक महिला नेता को दूसरे (इरानी) के खिलाफ खड़ा करने के लिए कांग्रेस द्वारा एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जाएगा। उन्होंने दोनों ही लोकसभा सीट पर प्रचार किया है। उनको दोनों लोकसभा सीटों में से किसी एक से भी चुनाव लड़ने में कोई परेशानी नहीं होगी।

अमेठी लोकसभा सीट

अमेठी संसदीय क्षेत्र 1967 में बनाया गया था और 2019 के लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस का गढ़ था। इस सीट पर जब तक केवल दो ही कांग्रेसी दलों का शासन रहा था। वह भी केवल चार साल के लिए। सबसे पहले 1977 में आपातकाल के बाद था, जब जनता पार्टी का एक उम्मीदवार जीता और 1980 तक लोकसभा में उसका प्रतिनिधि बना रहा। 1980 में संजय गांधी ने अमेठी से जीत हासिल की, लेकिन एक साल बाद एक विमान हादसे में उनकी मौत हो गई। इसकी वजह से 1981 में उपचुनाव कराना पड़ा। उनके भाई राजीव गांधी ने चुनाव जीता और निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1984 में इस सीट पर कब्जा किया और उन्हें उनकी भाभी मेनका गांधी ने चुनौती दी, जो एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़ रही थीं।

राजीव गांधी ने 1989 में महात्मा गांधी के पोते जनता दल के राजमोहन गांधी के खिलाफ फिर से अमेठी जीती। 1991 में राजीव गांधी चुनाव जीते लेकिन अमेठी में मतदान के कुछ ही दिन बाद उनकी हत्या कर दी गई। हालांकि, वोटों की गिनती के बाद उन्हें विजेता घोषित कर दिया गया, लेकिन उपचुनाव कराना पड़ा। कांग्रेस के सतीश शर्मा ने 1991 में निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और 1998 तक इस सीट पर रहे। 1998 में राजकुमार संजय सिंह ने भाजपा के टिकट पर अमेठी से जीत हासिल की।

जब सोनिया गांधी ने 1999 में अमेठी से चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो सिंह को एक बार फिर गांधी से भारी चुनावी हार का सामना करना पड़ा। सोनिया गांधी 48 फीसदी के जीत अंतर के साथ 3,00,000 से अधिक वोटों से जीतीं। राहुल गांधी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में अमेठी को अपनी राजनीतिक एंट्री के लिए चुना और सोनिया गांधी रायबरेली सीट पर चली गईं। राहुल गांधी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता और 2009 में फिर से जीत हासिल की। इसके बाद राहुल गांधी ने 2014 में भी जीत की हैट्रिक लगाई।

रायबरेली लोकसभा सीट

1952 में फिरोज गांधी ने पहली बार रायबरेली से चुनाव लड़ा। इंदिरा गांधी ने यह सुनिश्चित किया कि परिवार की विरासत 1967 से 1977 तक कायम रहे। 1980 में इंदिरा गांधी ने रायबरेली और मेडक में जीत हासिल की। लेकिन उन्होंने मेडक सीट चुनी और रायबरेली से इस्तीफा दे दिया। जब सोनिया गांधी रायबरेली आईं तो उन्हें इंदिरा गांधी की पसंदीदा ‘बहू’ के रूप में देखा गया। पांच बार सांसद रहने के बाद जब सोनिया गांधी ने रायबरेली छोड़ने का फैसला किया, तो उन्होंने मतदाताओं को एक खुला पत्र लिखा। इसमें उन्होंने लिखा कि स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के कारण मैं अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ूंगी। इस फैसले के बाद मुझे सीधे तौर पर आपकी सेवा करने का मौका तो नहीं मिलेगा, लेकिन निश्चित रूप से मेरा दिल और आत्मा हमेशा आपके साथ रहेंगे।