12 दिसंबर, 1995 को राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को सर्वश्रेष्ठ सांसद के रूप में सम्मानित किया था, जिसमें कई वरिष्ठ बुद्धिजीवी और राजनीतिज्ञ शामिल थे। उस सम्मान समारोह में कुल मिलाकर यह कहा गया कि सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने अपने संसदीय जीवन में सदैव राष्ट्रीय विवेक की अभिव्यक्ति की है।

ज्ञात हो कि स्व. चंद्रशेखर 17 अप्रैल, 1962 में राज्यसभा में आए थे। उस समय उनकी उम्र 35 वर्ष थी। जिस समय उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार दिया गया था, तब उनकी उम्र 70 वर्ष थी। इन 35 वर्षों के इतिहास में वह लगातार राज्यसभा या लोकसभा में रहते हुए संसदीय व्यक्तित्व की उत्कृष्टता साबित करते रहे। उनके सांसदत्व की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी ईमानदारी और खरापन।

चंद्रशेखर बनाम नीतीश कुमार

अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बात कर लेते हैं। नीतीश कुमार का राजनीति में आगमन वर्ष 1974 में हुआ था, लगभग 50 वर्ष पहले। उन्होंने बिहार में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के साथ-साथ जयप्रकाश आंदोलन में हिस्सा लिया और पांच बार दलबदल किया। अभी वह नौवीं बार शपथ लेकर मुख्यमंत्री हैं। उन्‍हें इतना लंबा राजनीतिक जीवन जीने के बावजूद राजनीति का ‘पलटूराम’ कहा जाता है।

राष्ट्र निर्माण में कई राजपुरुषों ने सत्तामोह को नहीं पनपने दिया

राष्ट्र के निर्माण में एकाध नहीं, अनेक ऐसे राजपुरुष रहे हैं जिन्होंने सत्तामोह कभी नहीं किया और जनहित के लिए सदैव जनता के ही साथ बने रहे। ऐसे नेताओं की पहली पंक्ति के नामों में मोहनदास करमचंद गांधी, सुभाषचंद्र बोस आद‍ि शामिल हैं। सच बात तो यह है कि उस समय की राजनीति और राजनीतिज्ञों का मकसद औपनिवेशिक शासक के विरुद्ध लड़ाई में जीत कर जनता को गुलामी की जंजीरों से न‍िकालना था। उनकी सोच अपने लिए नहीं, बल्कि भारत के भविष्य के लिए थी। उनका अपना कोई स्वार्थ या अपने लिए कोई पद पाने की इच्‍छा नहीं थी।

पर आज? आज तो ऐसा ही लगता है कि राजनीति केवल सत्तारूढ़ होकर जनता के खून की कमाई दौलत से मौज करने का साधन भर रह गई है। चूंकि हमारे देश की जनता पूरी तरह गरीबी के कारण शिक्षित नहीं हो सकी है, अतः राजनीतिज्ञों की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर गुमराह हो जाती है। आज राजनीति में ऐसे लोगों को आमंत्रित करके बुलाया जाता है, जो राजनीति का ककहरा भी नहीं जानते, लेकिन जनता को गुमराह करने के लिए उन्हें चुनाव लड़ाया जाता है। उन्हें जिताकर विधायक, मंत्री और सांसद बना दिए जाते हैं। अब जनता करे, तो क्या!

जनवरी से बिहार में जो राजनीतिक दुर्गंध फैली, वह तो हद है। राजनीति का इतना गंदा चरित्र आजादी के बाद शायद इस देश की जनता को पहली बार देखने को मिला। फिर 12 फरवरी को बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार ने व‍िश्‍वास मत भी हास‍िल कर ल‍िया। इस दौरान भी नेताओं के रंग बदलने का खेल द‍िखा।

Nishikant Thakur, Nitish Kumar, Morality in Politics
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)