भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जल्द ही समाप्त होने वाला है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा का सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर पांच साल का कार्यकाल अब अंत होने वाला है। जल्द ही, बीजेपी एक नया अध्यक्ष चुनेगी जिसके लिए मंथन और विचार-विमर्श भी शुरू हो गया है।
2019 के लोकसभा चुनावों के बाद जब जेपी नड्डा ने अमित शाह के बाद पार्टी अध्यक्ष का पद संभाला तो उन्हें कई बड़ी जिम्मेदारियां निभानी पड़ीं। अमित शाह ने अपने कार्यकाल का समापन शानदार तरीके से किया क्योंकि भाजपा ने 303 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी। नड्डा को पहली बार जून 2019 में बीजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था और जनवरी 2020 में उन्हें सर्वसम्मति से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया।
जेपी नड्डा ने भाजपा को 26 चुनावी जीत दिलाईं
अपनी इस भूमिका में जेपी नड्डा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ अच्छा रिश्ता बनाया। पार्टी में उन्हें एक अच्छे श्रोता होने और शॉक एब्जॉर्बर के रूप में काम करने के लिए सराहा गया, जो बिना किसी द्वेष के कठिन फैसले लेते थे। 64 वर्षीय जेपी नड्डा ने भाजपा को 26 चुनावी जीत दिलाईं (लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव में) जो जनसंघ के दिनों से पार्टी का नया रिकॉर्ड है। भाजपा 2023 के अंत तक मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को फिर से जीतने में सफल रही।
RSS-BJP के रिश्तों पर नड्डा का विवादित बयान
लोकसभा चुनाव के दौरान जेपी नड्डा ने तब हलचल मचा दी थी, जब उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि भाजपा अपने कामकाज को चलाने में सक्षम है और उसे पहले की तरह आरएसएस की जरूरत नहीं है। इससे संघ और भाजपा के बीच मतभेद उजागर हुए और इसे पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारणों में से एक बताया गया। बीजेपी की सीटें 303 लोकसभा सीटों से घटकर 242 रह गईं, साथ ही इसके पिछड़े वर्ग के समर्थन आधार का एक हिस्सा विपक्ष की ओर चला गया।
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नए बीजेपी अध्यक्ष के सामने क्या होंगी चुनौतियां?
अगले भाजपा अध्यक्ष के लिए दक्षिण में पार्टी का प्रभुत्व स्थापित करना प्राथमिक कार्यों में से एक होगा। पार्टी ने जहां उत्तर, पश्चिम, पूर्व और पूर्वोत्तर में शाह और नड्डा के नेतृत्व में तेज़ी से विकास किया और खुद को मजबूत किया, दक्षिण में पार्टी की स्थिति अभी भी कमज़ोर बनी हुई है।
कर्नाटक में 2023 में भाजपा सत्ता से बेदखल हो गई लेकिन केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में उसे अपनी पैठ बनाने में संघर्ष करना पड़ा और वह आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ गठबंधन में सबसे कनिष्ठ भागीदार है। वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने स्वीकार किया है कि पार्टी को अभी भी वहां हिंदी भाषी नेताओं वाली उत्तर भारतीय पार्टी के रूप में देखा जाता है और यह एक बाधा बनी हुई है। हालांकि पार्टी ने 2016 में अपने दक्षिण मिशन के लिए एक खाका तैयार किया था, लेकिन यह कभी भी प्रभावी रूप से काम नहीं कर पाया। यह आंध्र, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में आरएसएस के मजबूत नेटवर्क के बावजूद है जो कर्नाटक की तरह एक प्राकृतिक मंच के रूप में काम कर सकता है।
बीजेपी का दक्षिण भारत में विस्तार
नए भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति एक नए चरण की शुरुआत होगी जिसमें पार्टी दक्षिण भारत में विस्तार करना चाहेगी। इससे इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि पार्टी जेपी नड्डा के उत्तराधिकारी को इसी क्षेत्र से चुन सकती है। हालांकि नेतृत्व ने अपने पत्ते गुप्त रखे हैं, लेकिन कर्नाटक से केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी और तेलंगाना से किशन रेड्डी और ओबीसी मोर्चा प्रमुख के लक्ष्मण के नाम पार्टी हलकों में चर्चा में हैं।
भाजपा पूर्वोत्तर में भी आगे बढ़ने की कोशिश करेगी। वहां और दक्षिण में विस्तार के लिए पार्टी के लिए ईसाइयों और आदिवासियों के बीच पैठ बनाना महत्वपूर्ण होगा। ये समुदाय तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों और पूर्वोत्तर की राजनीति में सफलता की कुंजी होंगे। भाजपा के एक नेता ने कहा कि नए अध्यक्ष को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पार्टी को अधिकाधिक युवाओं का समर्थन प्राप्त हो और वह उसे बरकरार रखे तथा एक मजबूत दूसरी पंक्ति का नेतृत्व विकसित हो। पढ़ें- देश दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लेटेस्ट अपडेट्स