प्रशांत किशोर को कई लोगों ने कहा था कि कांग्रेस एक दलदल है। उसमें जाने का ख्याल मत पालो। लेकिन फिर भी वो देश की सबसे पुरानी पार्टी को चलाने के इच्छुक थे। वो अपरोक्ष तौर पर कांग्रेस को हैंडल करना चाहते थे। उनकी एंट्री की प्रियंका सबसे बड़ी पैरोकार थीं। लेकिन आखिर में कुछ ऐसा हुआ जो पीके दिल्ली छोड़कर बिहार की तरफ लौट आए।

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इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक प्रियंका गांधी को लगता था कि लगातार खत्म होती जा रही पार्टी में पीके जान फूंक सकते हैं। पीके का ख्याल था कि गांधी परिवार एक है और सोनिया गांधी के साथ प्रियंका और राहुल गांधी एक राय होकर फैसला लेते हैं। लेकिन ये उनका एक भ्रम ही था।

पीके को अपनी बातचीत के बीच में पता चला कि प्रियंका गांधी बाहर से बेशक कांग्रेस की कद्दावर नेता दिखाई देती हैं। लेकिन उनके पास फैसले लेने की ताकत नहीं है। दूसरी तरफ राहुल के सलाहकारों ने तय कर दिया कि पीके की कांग्रेस में कोई स्थिर जगह न बन सके। वो यहां से वहां घूमते रह जाएं।

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चुनाव रणनीतिकार को झटका तब लगा जब उनकी बातचीत चल रही थी कि प्रियंका अमेरिकी की तरफ निकल गईं तो राहुल अपने पुराने शौक स्कूबा ड्राईविंग को ताजा करने चल पड़ा। उसके बाद उन्हें नेपाल की शादी में भी शरीक होना था। पीके को बताया गया कि उनकी पक्की जगह कांग्रेस में तभी बन पाएगी जब सितंबर में नया अध्यक्ष काम संभालेगा।

उसके बाद पीके के पास सिवाय बिहार की तरफ कूच करने के सिवाय कोई चारा नहीं रहा। अब उनकी योजना राजनीतिक दलों को ताकत देने की बजाए खुद को मजबूत बनाने की है। वो बिहार के लोगों से संवाद की कोशिश में हैं। बावजूद इसके कि उन्हें पता है कि लालू-नीतीश कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं।

हालांकि प्रशांत किशोर का कहना है कि कांग्रेस के पावर्ड एक्शन ग्रुप का सदस्य नहीं बनना चाहते थे, क्योंकि वो समूह कांग्रेस अध्यक्ष के कार्यकारी आदेश के तहत काम करेगा। पीके ने कहा कि कांग्रेस को यह तय करने की जरूरत है कि वो आगे कैसे काम करना चाहती है। कांग्रेस को किसी प्रशांत किशोर की आवश्यकता नहीं है, पार्टी के पास और भी अधिक सक्षम लोग हैं। वो जानते हैं कि उन्हें क्या करना है।