कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ नेशनल हेराल्‍ड मामले में कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले सुब्रमण्‍यम स्‍वामी एक जमाने में राजीव गांधी के करीबी दोस्‍त हुआ करते थे। ये वही स्‍वामी हैं, जिन्‍होंने बोफोर्स कांड के वक्‍त खुलकर राजीव गांधी का पक्ष लिया था। स्‍वामी ने सदन में खुलकर कहा था कि राजीव गांधी ने पैसा नहीं लिया है। एक इंटरव्यू में उन्‍होंने खुद इस बात को स्‍वीकार किया था कि राजीव गांधी और वह घंटों साथ रहा करते थे। एक जमाना वो भी था, जब स्‍वामी आयरन लेडी इंदिरा गांधी से टकरा गए थे और कोर्ट से जीतकर भी आए थे।

सुब्रमण्‍यम स्‍वामी के पिता सीताराम सुब्रमण्यम जाने-माने गणितज्ञ थे। वह एक समय में केंद्रीय सांख्यिकी इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हुआ करते थे। अपने पिता की तरह स्वामी भी गणितज्ञ बनना चाहते थे। उन्होंने हिंदू कॉलेज से गणित में स्नातक की डिग्री ली। इसके बाद वह भारतीय सांख्यिकी इंस्टीट्यूट में पढ़ने के लिए कोलकाता चले गए थे। स्वामी के जीवन का विद्रोही गुण पहली बार कोलकाता में जाहिर हुआ। उस वक्त भारतीय सांख्यिकी इंस्टीट्यूट, कोलकाता के डायरेक्टर पीसी महालानोबिस थे, जो स्वामी के पिता के प्रतिद्वंद्वी थे। लिहाजा उन्होंने स्वामी को खराब ग्रेड देना शुरू किया। स्वामी ने 1963 में एक शोध पत्र लिखकर बताया कि महालानोबिस की सांख्यिकी गणना का तरीका मौलिक नहीं है, बल्कि यह पुराने तरीके पर ही आधारित है।

सुब्रमण्‍म स्वामी ने सिफ 24 साल की उम्र में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली थीं और 27 साल की उम्र में वह हार्वर्ड में गणित पढाने लगे थे। 1968 में अमृत्य सेन ने उन्‍हें दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स में पढ़ाने का निमंत्रण दिया था। इसके बाद वह दिल्ली आ गए और 1969 में आईआईटी दिल्ली में पढ़ाने लगे।

सुब्रमण्‍यम स्‍वामी ने आईआईटी के सेमिनारों में पंचवर्षीय योजनाओं का खुलकर विरोध भी किया। उन्‍होंने विदेशी पूंजी निवेश पर निर्भरता को भी भारत के लिए नुकसान दायक बताया। उनका दावा था कि भारत
इसके बिना भी ऊंची विकास दर हासिल कर सकता है।

इंदिरा गांधी की नाराजगी के चलते सुब्रमण्‍यम स्वामी को दिसंबर 1972 में आईआईटी दिल्ली की नौकरी गंवानी पड़ी थी। वह इसके खिलाफ अदालत गए और 1991 में अदालत का फैसला स्वामी के पक्ष में आया। वे एक दिन के लिए आईआईटी गए और फिर पद से इस्तीफा दे दिया था।

नानाजी देशमुख ने स्वामी को जनसंघ की ओर से राज्यसभा में 1974 में भेजा था। आपातकाल के 19 महीने के दौर में सरकार उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी थी। इस दौरान उन्होंने अमेरिका से भारत आकर संसद सत्र में हिस्सा भी ले लिया और वहां से फिर गायब भी हो गए थे।

1977 में जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में रहे थे। 1990 के बाद वे जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे। 11 अगस्त, 2013 को उन्होंने अपनी पार्टी का विलय भारतीय जनता पार्टी में कर दिया।

सोनिया गांधी को मुश्किल में डालने वाले स्वामी ने 1999 में वाजपेयी सरकार को गिराने की कोशिश की थी। इसके लिए उन्होंने सोनिया और जयललिता की अशोक होटल में मुलाकात भी कराई। हालांकि, ये कोशिश नाकाम हो गई। इसके बाद वह हमेशा गांधी परिवार के खिलाफ ही नजर आए।

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