मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में स्वतंत्र विदर्भ राज्य को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खामोशी पर सवाल उठने लगे हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा को चुनाव में बहुमत मिलने में संदेह है इसलिए चुनाव नतीजों के बाद उसे शिवसेना की फिर जरूरत पड़ सकती है। दूसरी ओर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे स्वतंत्र विदर्भ का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। इसलिए मोदी को मजबूरी में इस मसले पर चुप्पी साधनी पड़ी है। वह किसी भी सूरत में शिवसेना को नाराज नहीं करना चाहते हैं।

भाजपा छोटे राज्यों की हिमायती रही है और स्वतंत्र विदर्भ की मांग कई सालों से की जाती रही है। भाजपा लगभग दो दशक पहले भुवनेश्वर की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में स्वतंत्र विदर्भ का प्रस्ताव रख चुकी है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा नेता नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस क्षेत्र की जनता से अलग विदर्भ राज्य का वादा कर चुके हैं। मगर विदर्भ के प्रमुख शहर नागपुर की सभा में नरेंद्र मोदी ने विदर्भ के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा। कांग्रेस नेता भी स्वतंत्र विदर्भ का वादा करते रहे हैं। 1953 में फजल अली की अध्यक्षता वाला राज्य पुनर्रचना आयोग भी अलग विदर्भ राज्य की सिफारिश कर चुका है। हालांकि कुछ विशेषज्ञ आर्थिक तौर पर स्वतंत्र विदर्भ को व्यावहारिक नहीं मानते हैं।

अपने विरोधियों के बयानों पर तुरंत टिप्पणी करने वाले मोदी की विदर्भ पर चुप्पी से मोदी विरोधी पूछ रहे हैं कि जिस भाजपा ने 14 साल पहले बिना मांगे छत्तीसगढ़ दे दिया, वह विदर्भ पर खामोश क्यों है? माना जा रहा है कि इसके पीछे शिवसेना का विदर्भ राज्य को लेकर मुखर विरोध है। उसने स्वतंत्र विदर्भ की मांग को राज्य के टुकड़े करने की साजिश से जोड़ कर इस मामले को भावनात्मक रंग दे दिया है। शिवसेना के इस विरोध ने मोदी को खामोश कर दिया है क्योंकि भाजपा को लगता है कि चुनाव नतीजों के बाद उसे शिवसेना की फिर जरूरत पड़ सकती है। राज्य के भाजपा नेता भी कश्मकश में हैं क्योंकि राजनैतिक हलकों में यह माना जाता है कि जिसने स्वतंत्र विदर्भ की मांग की, उसे चुनाव हारना पड़ा है।

विदर्भ लगभग एक दशक तक कांग्रेस का गढ़ था। 11 जिलों वाले विदर्भ में विधानसभा की 62 और लोकसभा की दस सीटें हैं। लोकसभा 2014 के चुनावों में यहां कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी। कांग्रेस के इस गढ़ में भाजपा ने सेंधमारी शुरू कर दी है। 2009 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 24 सीटें मिली थीं और भाजपा को 19। राष्ट्रवादी मात्र चार सीटों पर सिमट गई थी। भाजपा का यहां जनाधार बढ़ रहा है और वह विदर्भ की 62 में से 40 सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है। विदर्भ को लेकर जरा सी चूक भाजपा को महंगी पड़ सकती है इसलिए राजनैतिक मजबूरी ने मोदी को चुप्पी साधने पर मजबूर कर दिया है।

विदर्भ में कुपोषण और गरीबी बहुत है इसलिए क्षेत्र के विकास के लिए लंबे समय से इसे अलग राज्य का दर्जा देने की मांग उठती रही है। नागपुर और अमरावती के संतरों को लेकर मशहूर विदर्भ में कपास मुख्य फसल है। महाराष्ट्र में बीते एक दशक में दो लाख किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। इनमें से 70 फीसद किसान विदर्भ के थे। 2006 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विदर्भ के किसानों के लिए 3750 करोड़ रुपए का पैकेज दिया था। भष्ट्र सरकारी अफसरों ने उसका बड़ा हिस्सा हड़प कर लिया। इन अफसरों पर सरकार ने जांच और कार्रवाई शुरू की और 400 अधिकारियों को मुअत्तल कर दिया गया।