केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (सीआरपीसी), इंडियन पेनल कोड (आईपीसी) और इंडियन एविडेंस एक्ट (आईईए) में फेरबदल चाहती है।
यह बात उन्होंने सोमवार (12 जुलाई, 2021) को गुजरात के गांधीनगर में नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (एनएफएसयू) के सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर रिसर्च एंड एनालिसिस ऑफ नारकोटिक्स ड्रग्स एंड सायकोट्रोपिक सब्स्टैंसेज के उद्घाटन पर कही। वह बोले कि “थर्ड डिग्री टॉर्चर के दिन अब जा चुके हैं” और अब पुलिस की जांच-पड़ताल में वैज्ञानिक सबूत/साक्ष्य आधार होना चाहिए। उनके मुताबिक, केंद्र सरकार सीआरपीसी, आईपीसी और आईईए को आधुनिक बनाने और आज के समय की जरूरत के हिसाब से करने के लिए उनमें बदलाव लाने पर योजना बना रही है।
बकौल शाह, “भारत सरकार एक बहुत बड़ा संवाद कर रही है कि हम सीआरपीसी, आईपीसी और एविडेंस एक्ट…तीनों में आमूल-चूल परिवर्तन करना चाहते हैं और कालबाहियां हो गई हैं, उन चीजों को निकाल कर आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए हम नई धाराएं जोड़ना चाहते हैं…मेरा बहुत पुराना सुझाव है कि छह साल के ऊपर सजा वाले सभी अपराधों में फॉरेंसिक साइंस का विजिट अनिवार्य करना है। दिखने में यह बहुत सुनहरा सपना है, पर मैनपावर कहां है?”
गृह मंत्री के अनुसार, “मैं कई बार कह चुका हूं कि थर्ड डिग्री के दिन जा चुके हैं…पूछताछ, वैज्ञानिक प्रमाण के जरिए एक कड़े इरादे वाले व्यक्ति को को तोड़ा जा सकता है और दोषी ठहराया जा सकता है, पर इसके लिए फॉरेंसिक से जुड़ा काम सही से होना चाहिए।”
उन्होंने आगे बताया कि देश के हर जिले या फिर प्रत्येक पुलिस रेंज में कम से कम एक एफएसएल मोबाइल वैन होनी चाहिए…पर इसके लिए हमें योग्य छात्रों की जरूरत होगी और यह तभी संभव हो सकेगा, जब एनएफएसयू हर सूबे में अपने कॉलेज खोलेगा। हम इसके लिए और इंतजार नहीं कर सकते हैं।
आपराधिक मामलों में वैज्ञानिक आधार पर जांच-पड़ताल की जरूरत पर शाह ने कहा, “मैं हाल ही में आईपीएस ट्रेनी को संबोधित कर रहा था और मैंने उन्हें बताया कि हमारी पुलिस को दो किस्म के आरोपों का सामना करना पड़ता है। पहला कि उसने कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि दूसरा कि पुलिस विभाग की ओर से ज्यादा ही ऐक्शन ले लिया गया…हम सामान्य कार्रवाई चाहते हैं और यह तभी संभव हो सकेगा, जब हम वैज्ञानिक प्रमाण को अपनी जांच में अहम आधार बनाएंगे। थर्ड डिग्री के दिन गए, अब हमें वैज्ञानिक शोध और तकनीक के आधार पर दोषारोपण और जांच को सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए।”