आज से 10 साल पहले ठीक इसी दिन गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी संघवाद के मुद्दे को लेकर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन पर निशाना साधने में जुटे थे। मौका था लखनऊ में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का, जिसमें मोदी ने यूपीए के खिलाफ एक प्रस्ताव भी पास किया था। इसका शीर्षक था- ‘यूपीए: हमारे संघवाद के लिए बड़ा खतरा’। इस प्रस्ताव में मोदी ने कांग्रेस पर राज्यों की कानून बनाने की शक्तियों को हड़पने का आरोप लगाया था।

इसके अलावा उन्होंने कांग्रेस पर जांच एजेंसियों और संवैधानिक और कानूनी तंत्रों के गलत इस्तेमाल का भी आरोप लगाया था। साथ ही राज्यपाल को भी राजनीतिक मोहरा बनाकर काम कराने की बात कही थी। प्रस्ताव में यहां तक कहा गया था कि इस वक्त कांग्रेस के शासन से मुक्त राज्य देशभर में अपनी अस्वीकृति की आवाज सुना रहे हैं। लेकिन उनकी आवाज बहरे कानों पर गिर रही है।

हालांकि, इसके मुकाबले अगर आज की स्थिति देखी जाए, तो यही आरोप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी एनडीए सरकार पर लगते हैं। दो मई को चुनाव के नतीजे आने के बाद से तो कई राज्यों ने 10 साल पुराने उसी प्रस्ताव की भावनाओं को दोहराया है। साथ ही मोदी सरकार पर केंद्र और राज्यों के बीच स्वास्थ्य, बंगाल से लेकर लक्षद्वीप और सीबीआई से लेकर वैक्सीन नीति के इन अलग-अलग मुद्दों पर टकराव की रेखा को और कड़ा करने के आरोप भी लगाए गए हैं।

इसका सबसे ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल है, जहां ममता बनर्जी के सत्ता में लौटने के चार दिन बाद केंद्रीय टीमें चुनाव नतीजे आने के बाद हुई हिंसा की जांच के लिए पहुंच गईं। इसके बाद 10 मई को भाजपा के सभी 77 नए विधायकों को सीआईएसएफ की सुरक्षा दी गई थी। 17 मई को सीबीआई ने तृणमूल के दो मंत्रियों और दो नेताओं को नारदा केस में पकड़ा था। 20 मई को ममता बनर्जी ने आरोप लगा दिया था कि पीएम और डीएम की मीटिंग के बीच मुख्यमंत्रियों को नहीं बोलने दिया गया। हाल ही में यास तूफान की समीक्षा बैठक में ममता के न पहुंचने और बंगाल के मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी होने के बाद यह टकराव और बढ़ गया है।

बंगाल अकेला ऐसा राज्य नहीं जो कि केंद्र से टकराव की स्थिति में है। इसके अलावा झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन भी रिकॉर्ड पर कह चुके हैं कि कोरोना पर हुई बातचीत में पीएम ने उनकी नहीं सुनी। इसके अलावा तमिलनाडु सरकार ने 17 मई को शिक्षा मंत्री द्वारा बुलाई गई उस बैठक का बायकॉट कर दिया था, जिसमें मंत्रियों की जगह शिक्षा सचिवों को बातचीत के लिए बुलाया गया था।

उधर अब लक्षद्वीप में भी प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल की ओर से लाए गए ड्राफ्ट प्रस्ताव पर सरकार और विपक्ष के बीच टकराव बढ़ा है। इतना ही नहीं वैक्सीन खरीद के मुद्दे पर तो राज्य कई बार केंद्र से खुद ही नियंत्रण अपने हाथ में लेने की बात कह चुके हैं। सीबीएसई 12वीं की परीक्षा को रद्द करने का पीएम का फैसला भी तब आया, जब कुछ राज्यों ने इस परीक्षा का छोटा स्वरूप निकालने की मांग रख दी थी।

गौरतलब है कि केंद्र और कुछ राज्यों के खराब रिश्तों पर भाजपा नेता भी चिंतित हैं। भाजपा के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे राज्य जहां विपक्ष के सीएम हैं, वहां केंद्र के साथ रिश्ते इतने खराब हैं। केंद्र और प्रधानमंत्री को इन्हें ठीक करने के लिए आगे आना चाहिए। सरकार की कुछ नीतियों के चलते अब विपक्षी पार्टियां भी एकजुट होने लगी हैं। जैसे वैक्सीन के मुद्दे पर केरल के सीएम पिनरई विजयन और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक तक कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखकर नीति पर समस्या के बारे में बता चुके हैं।