दिल्ली-एनसीआर और उसके आसपास के इलाके हर साल मानसून में अच्छी खासी बारिश देखते हैं, लेकिन अफसोस कि उस बारिश का ज़्यादातर हिस्सा नालियों में बहकर बर्बाद हो जाता है। मगर अब हालात बदलने वाले हैं। भारत की पहली रीजनल रैपिड रेल यानी नमो भारत कॉरिडोर के जरिए इस बारिश के पानी को सहेजने और उसका सही उपयोग करने की एक बेहद स्मार्ट और पर्यावरण हितैषी योजना लागू की गई है।

दिल्ली से मेरठ के बीच चलने वाली यह तेज रफ्तार रेल सिर्फ आवागमन नहीं बल्कि जल संरक्षण की भी नई मिसाल बन रही है। नेशनल कैपिटल रीजन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (NCRTC) ने इस कॉरिडोर पर करीब 900 रेन वॉटर हार्वेस्टिंग पिट्स (जल संचयन गड्ढे) तैयार किए हैं, जो बारिश के पानी को जमीन के नीचे जमा करने का काम करेंगे। यह पिट्स वायाडक्ट, एलिवेटेड ट्रैक और स्टेशनों की छतों पर इकट्ठा होने वाले पानी को जमा करेंगे और उसे सीधे भूजल रिचार्ज के लिए भेजेंगे।

स्टेशनों और ट्रैकों के नीचे जमीन में विशेष चैंबर बनाए गए हैं

यह पूरी प्रक्रिया सुनने में जितनी सरल लगती है, तकनीकी रूप से उतनी ही सोच-समझकर डिजाइन की गई है। नमो भारत कॉरिडोर के स्टेशनों और ट्रैकों के नीचे जमीन में विशेष चैंबर बनाए गए हैं। वायाडक्ट और छतों से बारिश का पानी पाइपों के माध्यम से इन चैंबरों में आता है। इन चैंबरों में फिल्ट्रेशन सिस्टम लगा होता है, जिसमें पत्थर, बजरी और रेत की परतें होती हैं। इससे गंदगी और मिट्टी छान ली जाती है, और साफ पानी नीचे भूजल स्तर में चला जाता है।

NCRTC ने सिर्फ पिट्स पर ही ध्यान नहीं दिया है, बल्कि पूरे कॉरिडोर पर जल संरक्षण को लेकर एक व्यापक योजना बनाई है। गाजियाबाद के दुहाई डिपो और मेरठ के मोदीपुरम डिपो में इस दिशा में खास तैयारियां की गई हैं। दुहाई डिपो में 20 रेन वॉटर पिट्स बनाए गए हैं, जबकि 2 बड़े कृत्रिम तालाब भी विकसित किए गए हैं, जिनकी गहराई 4–5 मीटर तक है। इन तालाबों की कुल क्षमता लाखों लीटर पानी सहेजने की है।

ये तालाब सिर्फ पानी सहेजने के लिए नहीं, बल्कि डिपो परिसर में लगाए गए पौधों की सिंचाई के लिए भी उपयोग में लाए जाएंगे। इससे न सिर्फ पानी बचाया जाएगा बल्कि डिपो को हरियाली और पर्यावरण-अनुकूल बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।

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दिल्ली और उसके आसपास का इलाका कई सालों से जल संकट से जूझ रहा है। भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है। 2023 की केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में कई इलाके ऐसे हैं जहां भूजल स्तर 40 मीटर से भी नीचे पहुंच चुका है। वहीं, मानसून में भारी बारिश के बावजूद उसका कोई स्थायी फायदा नहीं हो पाता। ऐसे में इस तरह की पहल पर्यावरणीय रूप से भी ज़रूरी है और जनहित में भी।

दिल्ली-एनसीआर में औसतन हर साल 700 से 800 मिलीमीटर बारिश होती है। यदि इस पानी का 40 से 50% भी सही तरीके से भूजल में पहुंचा दिया जाए, तो हर साल करोड़ों लीटर पानी धरती में लौटाया जा सकता है। NCRTC की योजना इस प्राकृतिक संसाधन को बेहद स्मार्ट तरीके से इस्तेमाल करने की है, जिससे हर मानसून को जल संकट से लड़ने का अवसर बनाया जा सके।

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NCRTC ने साफ किया है कि कॉरिडोर के हर स्टेशन और हर एलिवेटेड हिस्से पर जल संचयन पिट्स अनिवार्य हैं। इसके अलावा अगले चरण में यह योजना स्टेशन पर इस्तेमाल होने वाले पानी (जैसे कि वॉशरूम, सफाई आदि में उपयोग) को भी री-सायकल और रीयूज करने की दिशा में बढ़ेगी। नमो भारत कॉरिडोर की यह योजना सिर्फ NCR के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक मॉडल परियोजना बन सकती है। जब रेलवे और मेट्रो जैसी बड़ी परियोजनाएं जल संरक्षण के लिए गंभीर कदम उठाती हैं, तो उससे स्थानीय स्तर पर बड़ा असर देखने को मिलता है।

सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, हर साल सिर्फ दिल्ली में 500 से 600 करोड़ लीटर बारिश का पानी बेकार चला जाता है। यदि इस प्रयास को दिल्ली मेट्रो, नोएडा मेट्रो और अन्य शहरी परियोजनाओं में अपनाया जाए तो देश के कई बड़े शहर जल संकट से निकल सकते हैं। नमो भारत कॉरिडोर की यह जल संचयन योजना हमें यह सिखाती है कि विकास और पर्यावरण की चिंता एक साथ की जा सकती है। यदि तकनीक और योजना साथ हों तो हर बूंद बारिश की सोने से कम नहीं। NCRTC का यह कदम एक हरी, स्वच्छ और टिकाऊ शहरी विकास की दिशा में बहुत बड़ा और जरूरी कदम है।