शिवसेना ने रविवार को एक नए विवाद को जन्म देते हुए मांग की कि मुसलमानों के मताधिकार को वापस ले लेना चाहिए। उसका तर्क है कि इस समुदाय का इस्तेमाल अकसर वोटबैंक की राजनीति के लिए किया जाता रहा है और इस कदम से इसपर रोक लगेगी।
पार्टी के मुखपत्र सामना में रविवार को प्रकाशित संपादकीय में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिाहादुल-मुस्लिमीन (एमआईएम) और उसके नेताओं ओवैसी बंधुओं पर निशाना साधते हुए कहा कि वे अल्पसंख्यक समुदाय का शोषण करने के लिए जहर उगलते रहते हैं।
शिवसेना ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के प्रति कथित अन्याय के नाम पर वोट बैंक की राजनीति की जाती है। उनके शैक्षणिक और स्वास्थ्य के मुद्दों पर राजनीति की जाती है। इस तरह की राजनीति पहले कांग्रेस करती थी और अब वे लोग कर रहे हैं, जो खुद को धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं।
अगर मुस्लिम समुदाय केवल राजनीति के लिए इस्तेमाल होता रहा, तो उसका कभी विकास नहीं हो सकता। उनका कोई भविष्य नहीं होगा अगर वे वोट बैंक की राजनीति में इस्तेमाल होंगे। इसलिए बालासाहेब ने एक बार कहा था कि मुसलमानों के मताधिकार वापल ले लिए जाने जाने चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो कथित धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा लगाए दलों की असलियत सभी के सामने आ जाएगी।
शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को हैदराबाद आने की चुनौती देने पर एआईएमआईएम सांसद असादुद्दीन ओवैसी को आड़े हाथ लेते हुए संपादकीय में लिखा गया है, ओवैसी हमें हैदराबाद आने की चेतावनी देते हैं। लेकिन हमें उनसे पूछना है कि हैदराबाद क्या भारत का हिस्सा नहीं है। क्या वह लाहौर, कराची व पेशावर में है। पत्र में कहा गया कि मराठियों का गौरव सरहद पार पाकिस्तान और अफगानिस्तान और कंधार तक स्थापित है।
(इनपुट भाषा से)