मुंबई में हुई संसद की प्राक्कलन समिति की प्लैटिनम जुबली बैठक इस बार चर्चा का कारण बन गई है, लेकिन कामकाज को लेकर नहीं, बल्कि खर्च को लेकर। महाराष्ट्र कांग्रेस और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस आयोजन पर सरकार की आलोचना की है। उनका आरोप है कि जब राज्य आर्थिक संकट से गुजर रहा है, तब ऐसे भव्य आयोजन का कोई मतलब नहीं बनता। यह बैठक मुंबई के विधान भवन में आयोजित की गई थी, जिसका उद्घाटन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने किया।
इंडिया टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक दो दिनों तक चले इस कार्यक्रम में देश भर से करीब 600 मेहमान मुंबई पहुंचे थे। आरोप है कि इन मेहमानों को चांदी की थाली में 5,000 रुपये का खाना परोसा गया। ये सभी थालियां किराए पर ली गई थी और उसकी कीमत 550 रुपये बताई गई।
कांग्रेस बोली- राज्य लगभग दिवालिया, तब ऐसा भोज क्यों दिया
महाराष्ट्र कांग्रेस विधायक दल के नेता विजय वडेट्टीवार ने इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि राज्य की हालत ऐसी है कि सरकार किसानों की कर्जमाफी, बोनस और कल्याणकारी योजनाओं के लिए पैसे नहीं जुटा पा रही है, लेकिन दूसरी तरफ, मेहमानों पर हजारों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब राज्य लगभग दिवालिया है, तो ऐसी फिजूलखर्ची क्यों?
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने भी वडेट्टीवार की बात का समर्थन किया और राज्य सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यह पता लगाया जाना चाहिए कि इस आयोजन के लिए पैसा कहां से आया, और क्या यह किसी अन्य सरकारी योजना से लिया गया था?
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सामाजिक कार्यकर्ता कुंभार ने भी इस आयोजन को जनता के पैसों की बर्बादी बताया। उन्होंने दावा किया कि 600 मेहमानों पर कुल 27 लाख रुपये खर्च किए गए, जिसमें चांदी की थाली, एसी टेंट, झूमर, लाल कालीन और आलीशान होटलों में ठहरने की व्यवस्था शामिल थी। उन्होंने कहा कि जो समिति देश भर में मितव्ययिता का उपदेश देती है, वही खुद भव्य भोज कर रही है, जो विडंबना है।
कुंभार ने सोशल मीडिया पर भी इस आयोजन की कड़ी आलोचना की और कहा कि इस तरह के खर्चों से जनता में गुस्सा बढ़ रहा है।
हालांकि, इस बीच सरकार से जुड़े कुछ सूत्रों ने सफाई देते हुए कहा कि मेहमानों को असली चांदी की नहीं, बल्कि चांदी की परत वाली प्लेट में खाना परोसा गया था। साथ ही, खाने की प्रति व्यक्ति लागत 4,000 रुपये से कम बताई गई है।
फिलहाल राज्य विधानमंडल की तरफ से इस विवाद पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन इस मुद्दे ने सरकार की प्राथमिकताओं पर जरूर सवाल खड़े कर दिए हैं।