कोविड-19 के संकट के दौरान पूरी दुनिया में निराशा और उम्मीद के मिलेजुले रंग दिखे हैं। इस संकट के दौरान एक अश्वेत की पुलिसिया दमन के कारण मौत ने जहां आहत अमरेकियों को सड़कों पर उतरने पर मजबूर कर दिया, वहीं यूरोप तक रंगभेद के खिलाफ ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ जैसे आंदोलन शुरू हो गए। यही नहीं, इस आंदोलनात्मक सिलसिले ने रंगभेद से जुड़े दूसरे सवालों को भी इस दौरान एक निर्णायक मुकाम तक पहुंचाया। इसमें सबसे दिलचस्प है कि गोरे रंग को बढ़ावा देने वाली कंपनियों का विरोध। इस विरोध को देखते हुए दुनिया की सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनिलीवर गोरेपन को बढ़ावा देने वाली अपनी फेस क्रीम ‘फेयर एंड लवली’ का नाम बदलने पर मजबूर हुई।

गोरेपन की इस क्रीम और कंपनी को लेकर विरोध का सिलसिला वैसे पुराना है। पर अब जबकि रंगभेद को लेकर विरोध का मानस ज्यादा गहरा रहा है तो कंपनी ने अपनी व्यापारिक समझ और राय बदलनी जरूरी समझी। कंपनी ने कहा है कि वह गोरा या गोरेपन जैसे शब्दों का इस्तेमाल अपने उत्पादों और विज्ञापनों में नहीं करेगी। कंपनी को लगता है कि सुंदरता को लेकर पूरी दुनिया में नजरिया बदल रहा है और ‘फेयर’, ‘वाइट’ और ‘लाइट’ जैसे शब्द सुंदरता का एकतरफा नजरिया पेश करते हैं। लिहाजा इसमें बदलाव हमारे समय की एक जायज मांग है।

यूनिलीवर की प्रतिस्पर्धी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन ने भी कहा है कि वह गोरेपन को बढ़ावा देने वाली अपनी क्रीम की बिक्री बंद करने जा रही है। यह सिलसिला अभी और आगे बढ़ने की उम्मीद है और यह रंगभेद के खिलाफ संघर्ष के खाते में एक बड़ी कामयाबी है।