संघ प्रमुख मोहन भागवत का यह कहना कि ‘अहंकार नहीं करना चाहिए कि सबकुछ मैंने किया’ एक ऐसा बयान है जिसके मायने कई निकाले जा रहे हैं। कहने को उनकी तरफ से किसी का नाम नहीं लिया गया, लेकिन ऐसा माना जा सकता है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसा। इस बात की पुष्टि इसलिए भी की जा सकती क्योंकि भागवत के बाद संघ के बड़े नेता इंद्रेश कुमार ने कह दिया कि जिस पार्टी ने भक्ति की, लेकिन वो अहंकारी हो गई, इसलिए उसे 241 पर रोक दिया।
मनभेद मतभेद में बदल रहे क्या?
भागवत के उस बयान के बाद इंद्रेश के स्टेटमेंट ने साफ कर दिया कि RSS और बीजेपी के बीच में सबकुछ सही नहीं चल रहा है। मतभेद तो पहले भी कई हो चुके हैं, कई मुद्दों को लेकर अलग विचारधाएं दिखी हैं, लेकिन वो कभी भी मनभेद में नहीं बदले हैं। लेकिन इस बार ऐसा क्या हो गया है कि सामने से आकर संघ के बड़े नेता बीजेपी और उसके हाईकमान को चुनौती देने का काम कर रहे हैं। कहना चाहिए लगातार आईना दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
मोदी केंद्रित राजनीति भागवत को नहीं रास
मोहन भागवत ने कहा है कि सच्चा सेवल मर्यादा का पालन करता है। उसमें यह अहंकार नहीं होता कि मैंने यह काम किया है। जो ऐसा नहीं करता है, सिर्फ उसे ही सच्चा सेवक कहा जा सकता है। अब इस बयान को पीएम मोदी से जोड़कर इसलिए देखा जा रहा है क्योंकि आगामी चुनाव में सबकुछ मोदी केंद्रित हो चुका था। ‘मोदी का परिवार’ से लेकर ‘मोदी की गारंटी’ तक कुछ ऐसे प्रचार के तरीके बन चुके थे जहां पर मुद्दों से बड़ा मोदी का चेहरा दिखा।
संघ का सिपाही, भागवत के लिए चुनौती?
खुद पीएम मोदी ने भी तमाम भाषणों में अपने नाम का जिक्र कई मौकों पर किया। माना जा रहा है कि उसी बात से मोहन भागवत आपत्ति रखते हैं और उन्होंने सच्चे सेवक की परिभाषा देने का काम किया है। दिलचस्प बात यह है कि अगर 12 साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने सीएम नरेंद्र मोदी का राजधर्म का पाठ पढ़ाया था तो इस बार संघ प्रमुख ने मर्यादा और सच्चे सेवक का ज्ञान देने का काम किया है। लेकिन सवाल वही है- आखिर पीएम मोदी जो खुद संघ के इतने करीब रहे हैं, उनको लेकर इस प्रकार की बयानबाजी कैसे शुरू हो चुकी है?
मोदी हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा, भागवत कहां?
अब वैसे तो इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन एक कारण हिंदुत्व भी माना जा रहा है। पिछले दस सालों में बीजेपी ने हिंदुत्व की राजनीति आक्रमक तरीके से की है, लेकिन उसमें राष्ट्रवाद को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा सबकुछ क्योंकि मोदी केंद्रित हो चुका है, ऐसे में हिंदुत्व का दूसरा पर्याय भी मोदी ही बन चुके हैं। राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम कोई भूला नहीं है जब मुख्य पुजारी के रूप मे पीएम मोदी ने ही सारे रीति-रिवाज के साथ पूजा संपन्न की थी।
संघ की पिच, बीजेपी का कब्जा, बदले समीकरण?
जानकार मानते हैं कि पिछले दस सालों में पीएम मोदी हिंदुत्व का एक अहम एपीसेंटर बन गए हैं, उसी वजह से देखा गया है कि हिंदुत्व को लेकर जो नेरेटिव पहले नागपुर से सेट होते थे, अब वो दिल्ली में हो रहे हैं। यह बताने के लिए काफी है कि जिस पिच पर RSS को कभी सबसे ज्यादा मजबूत माना जाता था, वहां भी अब श्रेय पीएम मोदी को दिया जाने लगा है। कहीं ना कहीं इस बदली हुई स्थिति ने भी मोहन भागवत को असमंसज में लाने का काम किया है।
बीजेपी, संघ से ज्यादा ताकतवर बन गई?
एक समझने वाली बात यह भी है कि 2019 के बाद से बीजेपी ने बड़े फैसले तो लिए ही हैं, उन फैसलों में संघ की भागीदारी भी कम होती गई है। बात चाहे 370 हटाने की हो या फिर राम मंदिर निर्माण की, संघ की भूमिका को कोई नहीं नकार सकता है, लेकिन वर्तमान स्थिति में हर कोई इन दोनों के लिए फैसले के लिए मोदी को श्रेय देने का काम करता है, हर किसी के लिए मोदी सरकार ही तारीफ का पात्र बनती है। कई सालों बाद ऐसी स्थिति देखने को मिल रही है जहां पर संघ, बीजेपी के सांय में दबती दिखाई दे रही है।
मोदी की कार्यशैली संघ के संस्कारों के खिलाफ?
रिश्तों में हो रहे इन बदलावों के लिए बीजेपी की कार्यशैली में आया बड़ा परिवर्तन भी जिम्मेदार है। अटल युग की बीजेपी में हर फैसला सभी से चर्चा के बाद लिया जाता था। बैठकें होती थीं, मुद्दे उठते थे और कई बार कई दिनों बाद किसी बात पर सहमति बन पाती थी। लेकिन आज की बीजेपी में फैसले लेने की ताकत कुछ हाथों में सीमित रह चुकी है। इस प्रकार की बीजेपी संघ की कार्यशैली के विरोध में है जो किसी भी एक शख्स के हाथ में ज्यादा ताकत नहीं देना चाहती है। लेकिन पिछले 10 सालों में ऐसा ही देखने को मिला है जहां पर वोटरों से भी मोदी का ही सीधा कनेक्ट है, सरकार की योजनाओं में भी मोदी का चेहरा है और हर बड़े कार्यक्रम के साथ भी मोदी को ही सेंटर में रखा जाता है। ऐसे में संघ चाहकर भी मोदी की लोकप्रियता से मुकाबला नहीं कर पा रहा है। यह स्थिति ही मोहन भागवत के लिए चुनौती बन रही है, बीजेपी को तो समर्थन है, लेकिन एक शख्स का लगातार ताकतवर बनते जाना परेशान भी कर रहा है।