प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज ऐलान किया कि बीजेपी के सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से दिया जाएगा। आडवाणी को भारत रत्न देने की घोषणा पर सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक के राजनेताओं की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। जमात-ए-इस्लामी ने तो यह तक कह दिया कि सरकार बाबरी मस्जिद तोड़ने वाले नेता को भारत रत्न दे रही है। दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे एक स्वागत योग्य कदम बताया। इन सबसे इतर मोदी सरकार के इस फैसले के पीछे एक गहरी क्रोनोलॉजी झलकती है। कुछ दिनों पहले ही बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भी भारत रत्न देने का ऐलान हुआ था। तीन महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के ठीक पहले दो भारत रत्न देने का ऐलान सियासी समीकरण के लिहाज से काफी अहम है।
हाल ही में अयोध्या में बने राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम हुआ था। इसके बाद से ही देश में राम नाम की एक जोरदार अंडर करंट लहर चल रही है। वहीं जब भी राम मंदिर का जिक्र होता है, तो लाल कृष्ण आडवाणी का नाम जरूर उठता है। आडवाणी राम मंदिर आंदोलन के वक्त बीजेपी के सबसे बड़े नेताओं में से एक थे। उन्होंने ही सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक रथयात्रा निकाली थी। इसके अलावा एक नेता के तौर पर नरेंद्र मोदी को स्थापित करने में भी आडवाणी की अहम भूमिका थी।
हालांकि एक तथ्य यह भी है कि 2012 के बाद, जब मोदी को पीएम कैंडिडेट के तौर पर पेश किया जाने लगा था, आडवाणी ही सबसे ज्यादा असहज हुए थे। इसके बाद आडवाणी मार्गदर्शक मंडल में भेज दिए गए। बीजेपी पर यह आरोप भी लगने लगे थे, कि पार्टी की नई पीढ़ी आडवाणी के कामों को भूलकर उन्हें अपमानित कर रही है। ऐसे में ठीक राम मंदिर कार्यक्रम के बाद आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान करना बताता है कि बीजेपी ने इसके जरिए एक सियासी संदेश भी दिया है।
कर्पूरी ठाकुर को भी देंगे सम्मान
दरअसल, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और जननायक की पहचान रखने वाले कर्पूरी ठाकुर को, मरणोपरांत उनकी 100वीं जयंती पर भारत देने का ऐलान किया गया था। कर्पूरी ठाकुर को सम्मान देने का ऐलान हुआ, और हफ्ते भर के अंदर ही बिहार में विपक्षी गठबंधन की सरकार धराशाई हो गई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कभी कहा था कि वो मर जाना पसंद करेंगे, लेकिन बीजेपी के साथ दोबारा कभी एनडीए में नहीं जाएंगे। वही नीतीश आरजेडी से नाराज चल रहे थे, और कर्पूरी बाबू को सम्मान मिलने का ऐलान होते ही उन्हें एनडीए में जाने का बहाना मिल गया।
बिहार में सरकार गिरने से तो बीजेपी को फायदा हुआ ही, लेकिन उसका निशाना लोकसभा चुनाव हैं। पिछले लगभग दो साल से देश में जातिगत जनगणना का मुद्दा सुर्खियों में है। कांग्रेस सांसद और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में भी जातिगत जनगणना का जिक्र करके ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग को साधने के प्रयास कर रहे हैं। लालू प्रसाद यादव से लेकर नीतीश कुमार और यूपी में अखिलेश यादव, मंडल की राजनीति करने वाले लगभग सभी नेता, कर्पूरी ठाकुर को एक जननायक मानते रहे हैं।
पिछड़ों को लुभाने का दांव?
कर्पूरी की साधारण जीवनशैली से लेकर उनकी भ्रष्टाचार रहित छवि, उन्हें सीधे जनता से जोड़ती थी। लालू और नीतीश ने तो कर्पूरी को राजनीति का आदर्श बताकर राजनीतिक फायदा भी उठाया। ऐसे में कर्पूरी बाबू को भारत रत्न देने का ऐलान करके मंडल या जाति संबंधित राजनीति करने वाले नेताओं की पॉलिटिक्स को मोदी सरकार ने झटका दिया है और यह दिखाने की कोशिश की है कि ओबीसी और पिछड़ों को बढ़ावा देने के लिए सरकार कितनी संवेदनशील है, पीएम मोदी तो पहले ही खुद को ओबीसी बता चुके हैं।
कमंडल का भी रखा ध्यान
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के ऐलान करने के जरिए, जहां देश के पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश की गई है, तो दूसरी ओर सवर्णों और हिंदुत्व के एजेंडे को साधने के लिए राम लहर के बीच लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया गया है। आडवाणी वैसे तो सिंधी हैं, लेकिन राम मंदिर आंदोलन ने उनकी छवि एक हिंदुत्ववादी नेता के तौर पर स्थापित कर दी थी। उन्हें देश के बहुसंख्यक समाज, या कहें कि सवर्णों के बीच काफी पॉपुलैरिटी हासिल हुई थी। 90 के दशक में आडवाणी के लिए ही सबसे पहले ‘हिंदू हृदय सम्राट’ जैसे विशेषण का इस्तेमाल हुआ था। भले ही उस समय मंडल की राजनीति का दबदबा था, लेकिन आडवाणी का कमंडल फॉर्मूला उस दौरान भी बीजेपी के विस्तार में अहम साबित हुआ था।
आडवाणी ने बहुसंख्यक समाज के सवर्ण वर्ग को बीजेपी से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई थी। उसमें से एक बड़ा धड़ा नरेंद्र मोदी से इस बात को लेकर नाराज भी रहा था कि मोदी और अमित शाह की नई कलेवर वाली बीजेपी ने आडवाणी को साइडलाइन कर दिया है। इन सबके बीच आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान, सवर्णों के जख्मों पर मरहम लगाने और उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लुभाने का संकेत देता है।
बीजेपी के कई बड़े नेता पिछले कुछ दिनों में यह दावा करते रहे हैं कि रामलहर में बीजेपी 400 क्या, 450 सीटों का आंकड़ा भी पार कर सकती है। हालांकि उस सपने को साकार करने के लिए पार्टी और सरकार जमकर काम कर रही है। इसी का संकेत भारत रत्न से जुड़े दोनों ऐलानों में दिखता है, चाहें वो जननायक कर्पूरी ठाकुर हों, या फिर लाल कृष्ण आडवाणी।