लॉकडाउन में दो महीने पहले ही जेठ की चिलचिलाती धूप में वह दिल्ली से 1000 किलोमीटर पैदल चलकर और ट्रक पर चढ़कर बिहार के रोहतास जिले के मेदिनीपुर अपने गांव पहुंचा था। उसने 14 दिव क्वारंटीन के दौरान खराब खान-पान का भी विरोध किया था। यह उसकी जीने की इच्छा थी लेकिन 32 साल के सिकंदर यादव ने अब खुदकुशी कर ली।
‘द टेलिग्रीफ’ के मुताबिक, सोमवार (29 जून) को उसकी लाश गांव के बाहर एक कॉलेज बिल्डिंग के पास पेड़ से लटकी मिली। वह पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान था। उसे कोई रोजगार नहीं मिल पा रहा था जिससे कि वो अपनी बूढ़ी मां और घर को लोगों को खाना खिला सके।
सिकंदर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बिहार में ही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना लॉन्च करने के नौ दिन बाद आत्महत्या की है। बिहार के खगड़िया जिले से पीएम मोदी ने पिछले दिनों नरेगा जैसी एक राष्ट्रव्यापी योजना- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना- का आगाज किया था जिसका उद्देश्य 67 लाख प्रवासियों को रोजगार प्रदान करना था।
सिकंदर के चाचा अक्षय लाल यादव ने बताया, “वह 17 मई को दिल्ली से गांव आया था। हमारी पंचायत के बसंत हाई स्कूल में 14-दिवसीय क्वारंटीन के बाद 31 मई को घर आया था। उसके पास पैसे नहीं बचे थे, इसलिए उसने तुरंत रोजगार की तलाश शुरू कर दी थी।”
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उन्होंने बताया, “वह दिल्ली की एक जीन्स फैक्ट्री में मशीन ऑपरेटर था लेकिन यहां आकर उसे कुछ काम नहीं मिल पा रहा था। वह मजदूरी भी नहीं कर पा रहा था क्योंकि उसने कभी भी कठोर श्रम का काम नहीं किया था।” नासरीगंज के एसएचओ राजेश कुमार ने बताया कि सिकंदक री मौत प्रथम द्रष्टया आत्महत्या लग रही है लेकिन वो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने पर ही आधिकारिक रूप से कुछ बयान देंगे।
सिकंदर की अभी शादी नहीं हुई थी। उसके परिवार में मां देवंती कुवर के अलावा बड़े भाई सत्येंद्र यादव, उनकी पत्नी और उनके चार बच्चे शामिल हैं। यानी परिवार में खाने वाले आठ लोग थे जबकि राशन कार्ड में मात्र तीन लोगों का ही नाम शामिल था। सिकंदर, सत्येंद्र और उनकी मां का ही नाम राशन कार्ड में दर्ज है। यह परिवार भूमिहीन है और एक कच्चे मकान में रहता है।
सिकंदर के बड़े भाई भी मजदूर हैं लेकिन लॉकडाउन की वजह से पिछले कुछ महीनों से बेरोजगार बैठे हैं। गुस्से से भरे सत्येंद्र ने कहा, “वायरस ने मेरे भाई को नहीं मारा; लॉकडाउन, बेरोजगारी और भोजन प्रदान करने में सरकार की विफलता ने उसे मारा है।”