मनोज कुमार मिश्र
केंद्र की भाजपा की अगुआई वाली राजग की सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवाआईसी) के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना को इसी 23 मई को दिल्ली का 21 वां उपराज्यपाल नियुक्त किया। उन्होंने 26 मई, 2022 को कामकाज संभाल लिया। वे दिल्ली के पहले गैर नौकरशाह उपराज्यपाल हैं। इससे पहले मौजूदा केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर समेत कई केन्द्र शासित प्रदेशों में गैर नौकरशाह नियुक्त करने का सफल प्रयोग किया।
दिल्ली में उपराज्यपाल ही असली शासक है, इसे केंद्र सरकार ने बार-बार विभिन्न आदेशों से साबित किया है। गैर आरक्षित विषयों पर उपराज्यपाल की भूमिका केवल सलाह की होने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पिछले साल संविधान संशोधन करके उपराज्यपाल के अधिकार बढ़ाए गए। पिछले दिनों संविधान संशोधन करके तीन नगर निगमों को एक किया गया और निगमों पर पूरा नियंत्रण केंद्र सरकार का कर दिया गया।15 जून को राजेन्द्र नगर विधानसभा के उपचुनाव होने हैं। फिर नए परिसीमन के बाद दिल्ली नगर निगम के चुनाव होंगे। उसमें उपराज्यपाल के घर-दफ्तर (राजनिवास) की कोई सीधी भूमिका न होने के बावजूद इस बदलाव का असर कहीं न कहीं दिख सकता है।
सक्सेना केवीआइसी के अध्यक्ष के अलावा केंद्र सरकार की अनेक महत्त्वपूर्ण समितियों के सदस्य रहे हैं। आम तौर पर उपराज्यपाल का कार्यकाल पांच साल का होता है लेकिन वास्तव में यह केंद्र सरकार पर निर्भर करता है कि वह कब तक बदलाव नहीं करती है।आजादी के बाद 20 साल तक दिल्ली में मुख्य आयुक्त ही दिल्ली का शासक होता था। 1966 में मुख्य आयुक्त रहे आदित्य नाथ झा पहले उपराज्यपाल बने। तब से अब तक 21 बार उपराज्यपाल की नियुक्ति हुई। उनमें जगमोहन और तेजेन्द्र खन्ना दो-दो बार उपराज्यपाल बनाए गए।
अब तक उपराज्यपालों में चार आइसीएस, 12 आइएएस, दो आइपीएस, एक आइएसएफ और दो पूर्व रक्षा अधिकारी रहे हैं। केंद्र में किसी भी दल की सरकार रही है, उसने उपराज्यपाल के पद को ताकतवर ही बनाया है। चार जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ यह फैसला दे चुकी है कि दिल्ली में गैर आरक्षित विषयों में दिल्ली सरकार फैसला लेने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है, लेकिन यह कह कर कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश ही रहेगा, राज्य नहीं बन सकता है, उसकी हद तय कर दी। इसके बाद दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल को दरकिनार करना शुरू कर दिया।
दिल्ली को पूर्ण राज्य का आंदोलन चलाने वाली भाजपा की केंद्र में 1998 से 2004 तक सरकार रही। उस दौरान और दोबारा 2014 से भाजपा की सरकार रहने के दौरान भाजपा नेता इस पर चुप्पी लगाए रहे। कांग्रेस के दबाव में और 2003 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता को जबाब देने के लिए तब के गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने 18 अगस्त, 2003 को दिल्ली राज्य विधेयक (2003 विधेयक संख्या 68) को प्रस्तुत कर दिया।
उसमें भी नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) को प्रस्तावित शासन से अलग किया गया था और पुलिस व लोक प्रशासन को उप राज्यपाल के माध्यम से काम करवाने की व्यवस्था थी। उसे मंत्रालय की स्थायी समिति में विस्तार से अध्ययन को भेजा गया। उस समिति की दो ही बैठक हो पाईं और लोकसभा भंग हो गई। तब से इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। 2013 में कांग्रेस के समर्थन से और 2015 से अपने बूते सरकार बनानेवाली आप से केंद्र सरकार का टकराव चलता ही रहा है। ऐसे में दिल्ली के उपराज्यपाल की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो गई है। ऐसे समय में गैर नौकरशाह को उपराज्यपाल बनाकर केंद्र सरकार ने एक प्रयोग किया है।