मणिपुर हिंसा को लेकर सर्वोच्च अदालत ने दिशा निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने सीबीआई से जुड़े मामलों का ट्रायल असम में करने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने पीड़ितों की सुविधा को देखते हुए कहा कि वो अपने बयान ऑनलाइन दर्ज करा सकते हैं। हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर कोई पीड़ित असम जाकर अपना बयान दर्ज कराने का इच्छुक है तो वो ऐसा कर सकता है।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने ये आदेश जारी किया। सॉलीसिटर जनरल ने इससे पहले उनको आश्वस्त किया था कि असम में इंटरनेट सुविधाओं को चाकचौबंद हैं। किसी भी पीड़ित को ऑनलाइन बयान दर्ज कराने में परेशानी नहीं आएगी। सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस और वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट से दरख्वास्त की थी कि पीड़ितों को बार बार असम न जाना पड़े, ये चीज उच्चतम न्यायालय सुनिश्चित करे।

मणिपुर हाईकोर्ट के फैसले के बाद से बिगड़े हालात

मणिपुर में हिंसा फैलने की वजह मैतेई समुदाय का आक्रोश है। मैतेई समुदाय को हाईकोर्ट ने आदिवासी दर्जा देने का आदेश दिया था। इस बात से समुदाय खुश था। लेकिन सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के साथ अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर की।

सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग सरकारी जमीन पर नशीले पदार्थों की खेती कर रहे हैं। इसके बाद वहां हिंसा शुरू हो गई। उसके बाद हालात बेलगाम हो गए। इस दौरान दो महिलाओं को नग्न करके घुमाने का सामना आया।

हिंसा के बाद से ही मणिपुर राष्ट्रीय सुर्खियों में आने लगा था। लेकिन महिलाओं के साथ ज्यादती की घटना ने केंद्र के साथ सुप्रीम कोर्ट को भी हिलाकर रख दिया। पीएम नरेंद्र मोदी के साथ गृह मंत्री अमित शाह को संसद में बयान तक देना पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई कड़े कदम उठाए। सुप्रीम कोर्ट का रुख मणिपुर को लेकर खासा तल्ख था। हालांकि बीजेपी की सरकारें हिंसा के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं मानती। सीएम एन बिरेन सिंह ने बीते दिन अमित शाह से मिलने के बाद सारा दोष कांग्रेस पर मढ़ दिया।