मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष चुने गए हैं। उन्होंने तिरुवंतपुरम के सांसद शशि थरूर को हरा दिया है। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने जानकारी दी कि खड़गे को कुल 7897 वोट मिले, जबकि शशि थरूर को 1072 वोट मिले। ऐसे में खड़गे ने करीब 8 गुना से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। पिछले कुछ वक्त से चर्चा में रहे इस चुनाव के बाद कांग्रेस को नया अध्यक्ष तो मिल गया है, लेकिन जिन चुनौतियों से पार्टी गुजर रही है वे अब भी मौजूद हैं, ऐसे में सवाल यह बनता है कि नए अध्यक्ष के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी के सामने कौन सी चुनौतियां होंगी ?
1. आम जनता से जुड़ाव: मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को लोगों से जोड़ने और फिर से चुनाव जीतने की शुरुआत करने की है। ढाई दशकों में कांग्रेस अध्यक्ष पद पर काबिज होने वाले गांधी परिवार से बाहर के वे पहले सदस्य हैं, ऐसे में पार्टी के भीतर की चुनौतियों से लड़कर उन्हें जिस रास्ते आम जनता तक पहुंचना है वो बहुत आसान नहीं दिखाई देता है।
2. आगामी चुनावों में पार्टी की भूमिका: चुनावी मोर्चे पर खड़गे के लिए पहली बड़ी चुनौती उनके गृह राज्य कर्नाटक में होगी। जबकि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव बस कुछ ही हफ्ते दूर हैं। वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 11 राज्यों में चुनाव होंगे और खड़गे के सामने सबसे बड़ी परीक्षा पार्टी को कम से कम प्रमुख राज्यों में जीत दिलाने की होगी।
त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में जहां फरवरी-मार्च में मतदान होगा, वहीं कर्नाटक में विधानसभा चुनाव मई में होने हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में 2023 के नवंबर-दिसंबर में मतदान होना है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि मल्लिकार्जुन खड़गे इन चुनावों में कांग्रेस को किस तरह पेश करते हैं।
3. गांधी परिवार से इतर स्वतंत्र छवि: मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने अध्यक्ष पद की कुर्सी संभालने के बाद एक महत्वपूर्ण चुनौती अपनी छवि को एक आज़ाद अध्यक्ष के तौर पर पेश करने की होगी, उन्हें पार्टी के भीतर भी और आम जनता के बीच ये संदेश देना होगा कि वह नेहरू-गांधी परिवार के प्रतिनिधि नहीं हैं। 1970 के दशक के बाद यह पहली बार है कि गांधी परिवार के सदस्य पार्टी में सक्रिय होंगे लेकिन पार्टी की बागडोर नहीं संभालेंगे।
हालांकि गांधी परिवार लगातार ये जताने का प्रयास करता रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष की भूमिका गांधी परिवार से ज़्यादा है, इसका एक उदाहरण बुधवार को राहुल गांधी द्वारा दिए गए उस बयान से लिया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष पार्टी में सर्वोच्च अधिकारी हैं और हर नेता उन्हें रिपोर्ट करता है।
खड़गे की सबको साथ लेकर चलने की क्षमता की भी परीक्षा होगी। कांग्रेस को दशकों बाद दलित समुदाय से अध्यक्ष मिल रहा है। वह जगजीवन राम के बाद यह पद संभालने वाले दूसरे दलित नेता हैं। यह देखना होगा कि क्या कांग्रेस इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगी और इसे हिंदी पट्टी की राजनीति से जोड़ पाएगी?
दलित समुदाय से आने वाले कांग्रेस के दूसरे अध्यक्ष बने खड़गे, देखें ये VIDEO
4. विपक्ष को एकजुट करने की चुनौती: कांग्रेस पार्टी के बिना विपक्ष की कल्पना नहीं की जा सकती लेकिन क्या कांग्रेस ने पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्रीय पार्टियों और अन्य विपक्षी पार्टियों के बीच जो विश्वास खोया है उसे पाने में खड़गे नए अध्यक्ष के तौर पर कुछ अलग भूमिका निभा पाएंगे? चुनावी गिरावट के बावजूद, कांग्रेस अभी भी विपक्ष में एकमात्र ऐसी पार्टी है जो पूरे राष्ट्रीय स्तर पर है। भाजपा को चुनौती देने के लिए उस जगह को तराशना होगा। साथ ही विपक्षी दलों को भी साथ लाने की चुनौती होगी।
5. संगठनात्मक सुधार: खड़गे के लिए एक और बड़ी परीक्षा संगठनात्मक सुधार होंगे। खड़गे जी-23 को खारिज कर रहे थे। उन्होंने हाल ही में एक साक्षात्कार में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “वो तो बात खत्म हो गई, वे सभी मेरा समर्थन कर रहे हैं, वे अब प्रस्तावक बन गए हैं। जब कुछ खत्म हो जाता है, तो उसे क्यों उछाला जाता है?”
खड़गे ने बार-बार कहा है कि पार्टी की उदयपुर घोषणा को लागू करना उनका मुख्य एजेंडा है। यह देखना होगा कि वह पार्टी को “एक व्यक्ति, एक पद” नियम लागू करने, युवा चेहरों (50 वर्ष से कम आयु वालों) को नेतृत्व के पदों पर लाने, जवाबदेही तय करने, “एक परिवार” जैसे निर्णयों को लागू करने में कितना सफल होते हैं ।