यहां मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के जिले इटावा में परिवार नियोजन को लेकर पुरुष कतई संजीदा नहीं हैं। यही कारण है कि परिवार नियोजन का भार सिर्फ महिलाओं के कंधों पर ही है। डा.भीमराव आंबेडकर राजकीय संयुक्त चिकित्सालय के महिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. अशोक कुमार ने बुधवार को बताया कि पुरुष वर्ग में आज भी जागरूकता की काफी कमी है।
पुरुषों में यह भ्रांतियां हैं कि नसबंदी कराने से नपंसुकता व कमजोरी आ जाती है जबकि ऐसा नहीं होता है। उन्होंने बताया कि पहले कि अपेक्षा आज के समय में नसबंदी की प्रक्रिया काफी सरल है। बिना चीरे के ही 15 मिनट में ही नसबंदी हो जाती है। मरीज को दो घंटे रोकने के बाद उसकी छुट्टी कर दी जाती है।
उन्होंने कहा कि चार वर्षाें में जहां 26 पुरुषों के द्वारा नसबंदी कराई गई वहीं महिलाओं की संख्या 8290 है। भले ही सरकारों के द्वारा परिवार नियोजन को लेकर प्रचार प्रसार के साथ अभियान चलाए जाते हैं लेकिन जिले में यह अभियान पूरी तरह से कारगर साबित नहीं हो रहा है। नसबंदी के जो लक्ष्य दिए जाते हैं उन लक्ष्यों को भी स्वास्थ्य विभाग आधे से ज्यादा पूरा नहीं कर पा रहा है। ऐसे में परिवार नियोजन को बढ़ावा कैसे मिल सकेगा।
सरकार की ओर से जागरूकता अभियान और संसाधन उपलब्ध कराने के बाद भी जिले में परिवार नियोजन की दर 3.1 है। महिलाओं के द्वारा गर्भ निरोधक गोलियां व नसबंदी से भी अब धीरे-धीरे मुंह मोड़ा जा रहा है। पिछले चार सालों में जिले को जो लक्ष्य दिया गया है उसमें भी यह लक्ष्य आधा भी पूरा नहीं हो सका है। वर्ष 2012-13 में 7832 नसबंदी का लक्ष्य रखा गया था जिसमें 1959 महिलाओं व दो पुरुषों ने ही नसबंदी कराई थी और कुल 25 फीसद लक्ष्य ही पूरा हुआ था। वर्ष 2013-14 में 3550 लक्ष्य के सापेक्ष 2312 नसबंदी हुई थीं। इसमें सिर्फ एक पुरुष ने ही नसबंदी कराई थी। इस वित्तीय वर्ष का फीसद 65 रहा था।
वर्ष 2014-15 में पुरुषों की कुछ संख्या बढ़ी थी इसमें 17 पुरुषों की नसबंदी हुई थी। वहीं महिलाओं का लक्ष्य जो 3550 रखा गया था उसमें 2200 नसबंदी ही हो सकीं थी और नसबंदी का फीसद 62 फीसदी रहा था। वित्तीय वर्ष 2015-16 में भी 3550 नसबंदी का लक्ष्य रखा गया था। जिसके सापेक्ष कुल 1825 नसबंदी हुई थीं। इसमें 6 पुरुषों के द्वारा नसबंदी कराई गई थी। पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार 11 फीसद नसबंदी कम हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो फिर भी महिलाएं परिवार नियोजन के प्रति कुछ जागरूक दिख रहीं है लेकिन इटावा शहर में महिलाओं में जागरूकता की कमी हैं।
शहर में 428 नसबंदी का लक्ष्य रखा गया था जिसमें से मात्र 178 महिलाओं ने ही नसबंदी कराई थी। माना जा रहा है कि परिवार नियोजन के प्रति जहां पुरुषों में पहले से ही जागरूकता का काफी कमी है वहीं अब महिलाएं भी अब धीरे-धीरे इससे मुंह मोड़ रही हैं। जानकारों का कहना है कि पुरुषों में नसबंदी को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां हैं जिसके कारण वह नसबंदी से दूर रहते हैं और इसमें महिलाओं को वह आगे कर देते हैं। एनआरएचएम के जिला प्रबंधक संदीप दीक्षित का कहना है कि नसबंदी के लिए इटावा में एक वर्ष के अंदर चार कैंप आयोजित किए जाते हैं जिसमें नसबंदी की जाती हैं।
उन्होंने बताया कि सभी कैंप जिला अस्पताल में आयोजित होते हैं। उन्होंने बताया कि नसबंदी कराने वाली महिला को 1400 रुपए और पुरुष को 2 हजार रुपए दिए जाते हैं। पुरुषों की धनराशि भी महिलाओं से अधिक है लेकिन इसके बाद भी पुरुष वर्ग नसबंदी कराने में काफी पीछे है। उनका कहना है कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुष नसबंदी ज्यादा आसान है, क्योंकि इसमें असफल होने की आशंका कम रहती हैं। सामान्य वर्ग की अपेक्षा मजदूर वर्ग के लोग नसबंदी कराना काफी मुनासिब समझते हैं।
उन्होंने बताया कि इटावा में परिवार नियोजन की दर 3.1 है जबकि 2007-08 में यह दर 3.3 थी। उन्होंने बताया कि कपल के अनुसार परिवार नियोजन की दर को निकाला जाता है। संदीप दीक्षित का कहना है कि आशाओं के अलावा लखनऊ से जो सेहत संदेश वाहिनी की वैन आती है उसके माध्यम से भी ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता फैलाई जाती है।

