तीस जनवरी भारतीय इतिहास की वो तारीख है जिस दिन भारत ने देश-दुनिया का एक महान नेता यानी महात्मा गांधी को खो दिया। 30 जनवरी, 1948 को अतिवादी नाथूराम गोडसे ने बिड़ला हाउस की जनसभा में जाते वक्त गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। महत्मा गांधी वो नेता थे, जिन्होंने सत्य और अहिंसा की राह पर चलते हुए भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने में एक अहम भूमिका निभाई। हालांकि आज के दौर में खुद को गांधीवादी कहने और उनके जैसे होने में बहुत बड़ा फर्क है। मगर 21वीं सदी में चंद लोग ऐसे भी हैं जो ना सिर्फ महात्मा गांधी के रास्ते पर चले बल्कि उन्हें अपना आदर्श माना।

दिल्ली पुलिस के स्पेशल सीपी रॉबिन हिबु ऐसी ही एक शख्सियत हैं जो महत्मा गांधी से खासे प्रभावित हैं। हिबु एक ऐसे पुलिस अधिकारी हैं जो आदिवासी समुदाय से आते हैं और उनके नाम देश का पहला आदिवासी आईपीएस होने का भी रिकॉर्ड है। वो यूएन रहे, राष्ट्रपति से दो बार सम्मानित हो चुके हैं, दर्जनों पुरस्कारों के अलावा उन्हें बहुत से दूसरे सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। हालांकि देश के पहले आदिवासी आईपीएस को करियर के शुरुआती दौर में नस्लीय टिप्पणी, भेदभाव और अन्य कड़वे अनुभवों से भी गुजरना पड़ा। मगर उन्होंने महात्मा गांधी के बताए रास्ते को नहीं छोड़ा।

नवभारत टाइम्‍स (एनबीटी) अखबार ने उनसे बाचतीच की, जहां उन्होंने बीती यादों को ताजा किया। साल 1893 में गांधी को अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव के कारण चलती से ट्रेन से धक्का दे दिया गया, ऐसी घटना रॉबिन हिबु ने भी झेली। वो बताते हैं, ‘जब जेएनयू में एडमिशन हुआ तब पहली बार आदिवासी क्षेत्र से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आना हुआ। बात 1991 की है जब ब्रह्मपुत्र मेल की बोगी नंबर सात की सीट नंबर 17 पर बैठा था। रात को उसी बोगी में फौजी चढ़ आए। नींद आई ही थी कि टिकट होने के बाद भी जबरन सीट खाली करा ली गई।’

एनबीटी से बातचीत में रॉबिन हिबु आगे कहते हैं, ‘आपत्तिजनक टिप्पणी कर मुझे टॉयलेट के पास पटक दिया गया। दिल्ली का वो पहला सफर पूरी रात टॉयलेट के पास सामान के साथ बैठकर गुजारना पड़ा। स्टेशन पर उतरा और अरुणाचल प्रदेश भवन जाना था। एक पुलिकर्मी से पता पूछा तो पहले उसने एक के बाद एक कई सवाल दाग दिए। फिर भला बुरा कहकर भगा दिया गया।’

हिबु के मुताबिक उस दिन अरुणाचल प्रदेश भवन में कमरा नहीं मिला और पूरा दिन सामान के साथ बाहर ही बैठा रहा। रात में किसी तरह सब्जियों के बोरों से भरे गोदाम में लेटने की जगह मिली। वहां खुद झाड़ू लगाई और अखबार बिछाकर कुछ देर लेटा। रेहड़ी पर जाकर कुछ खाया। मुश्किलों भरों के कुछ दिनों के बाद जेएनयू के नर्मदा हॉस्टल में कमरा मिला। जेएनयू गुरुकुल की तरह था।