महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा के 30 साल पुराने गठबंधन में दरार आ गई है। सीएम पद के बंटवारे को लेकर दोनों पार्टियों के बीच सहमति नहीं बन पायी। जिसके बाद शिवसेना ने अलग विचारधारा वाली एनसीपी और कांग्रेस का समर्थन लेकर सरकार बनाने की कोशिश की, लेकिन शिवसेना को उसमें भी फिलहाल सफलता नहीं मिली है। बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन करने से लेकर राकांपा प्रमुख शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारने और वैचारिक रूप से विपरीत छोर वाली पार्टी मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन करने तक, शिवसेना का ‘‘दुश्मनों के साथ दोस्ती’’ का एक इतिहास रहा है।

इसलिए जो लोग शिवसेना के अतीत से परिचित हैं, उन्हें शिवसेना द्वारा सोमवार को राजग से अलग होने और कांग्रेस तथा राकांपा से समर्थन मांगने पर जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ। शिवसेना को उग्र हिंदुत्ववादी विचारधारा वाली पार्टी के रुप में जाना जाता है। बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की स्थापना की थी और पार्टी के शुरुआती पांच दशकों के दौरान कांग्रेस ने उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन किया।

धवल कुलकर्णी ने अपनी किताब ‘द कजिन्स ठाकरे-उद्धव एंड राज एंड इन द शैडो ऑफ देयर सेना’ में लिखा है कि 1960 और 70 के दशक में कांग्रेस ने वामपंथी मजदूर संगठनों के खिलाफ शिवसेना का इस्तेमाल किया। पार्टी ने 1971 में कांग्रेस(ओ) के साथ गठबंधन किया और मुंबई और कोंकण क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के लिये तीन उम्मीदवार उतारे लेकिन किसी को भी जीत नहीं मिली। शिवसेना ने 1977 में आपातकाल का समर्थन किया।

उन्होंने लिखा है कि जनता पार्टी के साथ गठबंधन का प्रयास विफल होने के बाद 1978 में शिवसेना ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) के साथ गठबंधन किया। विधानसभा चुनाव में उसने 33 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से सभी को हार का सामना करना पड़ा। वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने अपनी किताब ‘जय महाराष्ट्र’ में लिखा है कि 1970 में मुंबई महापौर का चुनाव जीतने के लिए शिवसेना ने मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन किया। इसके लिए शिवसेना सुप्रीमो ने मुस्लिम लीग के नेता जी एस बनातवाला के साथ मंच भी साझा किया।

शिवसेना ने 1968 में मधु दंडवते की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ गठजोड़ किया। शिवसेना और कांग्रेस के बीच संबंध 80 के दशक में इंदिरा गांधी के निधन के बाद खत्म हो गए। राजीव गांधी, सोनिया गांधी के समय ये संबंध खराब ही रहे। इस दौरान शिवसेना ने उग्र हिंदुत्ववादी पार्टी की पहचान बनाई और भाजपा के करीब आई। हालांकि, शिवसेना ने राष्ट्रपति चुनावों में कांग्रेस सर्मिथत उम्मीदवारों प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया। ठाकरे परिवार और पवार के बीच संबंध भी पांच दशक पुराने हैं। दोनों राजनीतिक रूप से तगड़े प्रतिद्वंदी रहे हैं लेकिन निजी जीवन में पक्के दोस्त भी रहे हैं।