महाराष्ट्र में एनडीए की सरकार है लेकिन इस गठबंधन में शामिल दलों के बीच समय – समय पर तनातनी देखने को मिली है। हाल ही में कांग्रेस पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हुए पुणे कांंग्रेस के अध्यक्ष रह चुके संंजय जगताप के दल बदलने से एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी भी चिंतित मालूम पड़ते हैं।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, संजय जगताप का पार्टी बदलना पुणे में शिंदे सेना और एनसीपी को भी हिला सकता है क्योंकि उनके बीजेपी में आने से पुणे ग्रामीण में भाजपा की मजबूत पकड़ बनने की संभावना बढ़ जाएगी। इससे पहले इस इलाके पर बीजेपी की पकड़ कमजोर मानी जाती रही है।

पुणे में घट रहा कांग्रेस का प्रभाव

द इंंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पुणे लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी का गढ़ रहा है लेकिन शरद पवार द्वारा अलग पार्टी बनाने के बाद इस इलाके पर उसकी पकड़ कमजोर होती गई। हालांकि फिर भी यह पुणे में कांग्रेस का प्रभाव महसूस किया जा सकता है। पिछले साल हुए चुनाव में पुणे में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा। पुणे में न कांग्रेस न तो कोई लोकसभा सीट जीत सकी और न ही विधानसभा सीट जबकि साल 2019 में पुणे में कांग्रेस के तीन विधायक जीते थे।

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कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता अनंत गाडगिल द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहते हैं कि कांग्रेस के वफादार परिवारों का पार्टी छोड़ना चिंता का विषय है। पार्टी नेतृत्व को इस पर विचार करना होगा। संगठन को बहुत नुकसान हुआ है और कांग्रेस की विचारधारा को त्यागकर राजनीति में अपना अस्तित्व बचाने की कोशिश कर रहे लोगों की मानसिकता बदलने के लिए प्रयास करने होंगे।

नौ साल तक पुणे कांग्रेस के अध्यक्ष रहे संजय जगताप

संजय जगताप पुणे में नौ सालों तक कांग्रेस पार्टी का फेस रहे। वह साल 2016 पुणे कांग्रेस के जिला अध्यक्ष चुने गए थे। उन्होंने बीजेपी का दामन थामने से दो दिन पहले ही कांग्रेस पार्टी छोड़ी। उनके बीजेपी में शामिल होने पर कांग्रेस के एक लोकल लीडर ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि कांग्रेस ने जगताप पर इतना भरोसा किया कि उन्हें नौ साल तक पार्टी की कमान दी और अब वो पार्टी छोड़कर मुख्य विरोधी बीजेपी के साथ चले गए हैं। उनके दल बदलने से कांग्रेस को नुकसान हुआ है। वे लंबे टाइम तक पुणे कांग्रेस में टॉप पर थे।

कैसे पुणे की राजनीति को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही बीजेपी?

पुणे जिले की राजनीति में पैठ बनाने के लिए  बीजेपी लगातार प्रयास कर रही है, हालांकि उसे अभी तक खास सफलता नहीं मिली है। इसी लिए बीजेपी का फोकस ऐसे सियासी परिवारों को साधने पर है, जो पुणे की राजनीति में रसूख रखते हैं। साल 2019 में बीजेपी पूर्व मंंत्री हर्षवर्धन पाटिल को अपने साथ लाने में सफल रही थी लेकिन वह साल 2024 में NCP (SP) में चले गए।

साल 2024 विधानसभा चुनाव से ही बीजेपी पुणे में अपने बेस बढ़ाने के लिए सफल प्रयास कर रही है। कुछ महीने पहले ही बीजेपी ने कांग्रेस के तीन बार के विधायक सागरम थोपटे (पूर्व कांग्रेस मंत्री अनंतराव थोपटे के पुत्र) को पार्टी में शामिल कर लिया था। वे पुणे के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से हैं।

अब संजय जगताप बीजेपी में शामिल हो गए हैं, वह भी पुरंदर के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से संंबंध रखते हैं। संजय जगताप ने बीजेपी में शामिल होने के बाद कहा, “हमारे परिवार ने हमेशा कांग्रेस की विचारधारा में विश्वास किया लेकिन पिछले कुछ सालों में चीजें बदल गईं। हमने महसूस किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में बीजेपी सभी को साथ लेकर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रही है।”

एनसीपी अजित पवार पर क्या पड़ेगा प्रभाव?

पिछले कुछ चुनावों से बीजेपी बारामती में पवार परिवार के गढ़ पर भगवा पताका फहराना चाहती है। साल 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां से धनगर समुदाय के नेता आरएसपी के महादेव जानकर को निवर्तमान सुप्रिया सुले के खिलाफ चुनाव लड़ाया था लेकिन वो मामूली अंतर से चूक गए। साल 2019 में RSP के तत्कालीन विधायक कंचन कुल की पत्नी बीजेपी ने उतारा लेकिन उन्हें भी सलता नहीं मिली। पिछले लोकसभा चुनाव में अजित पवार की पत्नी चुनाव लड़ीं लेकिन वो भी सुप्रिया सुले को हरा नहीं पाईं।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रिया सुले को पुरंदर और भोर विधानसभा से बढ़त मिली, यहां क्रमशः जगताप और थोराट परिवार को प्रभावशाली माना जाता है। इन क्षेत्रों में बीजेपी भी कमजोर मानी जाती रही है। 2024 के विधानसभा चुनावों मेंं बीजेपी खडकवासला और दौंड सीट पर जीती जबकि राकांपा बारामती, इंदापुर और भोर जीतने में सफल रही। शिवसेना पुरंदर विधानसभा सीट पर विजयी पताका फहराने में कामयाब रही।

अब बारामती लोकसभा की छह में से चार सीटों पर बीजेपी के पास अपर हैंड है। ऐसे में अजित पवार के लिए यह चिंता का विषय होना लाजिमी है। एनसीपी के एक स्थानीय नेता नेे द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि वे बदलते सियासी हालातों से परिचित हैं और अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए पर्याप्त मजबूत हैं। उन्होंने कहा कि हर सियासी दल अपना आधार बढ़ाना चाहता है। बीजेपी यही कर रही है।

शिंदे सेना को क्या है खतरा?

जिले में जहां एनसीपी के पास आठ विधानसभा सीटें हैं तो वहीं शिंदे सेना के पास सिर्फ एक। इस सीट पर पूर्व मंत्री विजय शिवतारे ने संंजय जगताप को हराया था। अब संजय जगताप बीजेपी में आ गए हैं। उनसे विजय शिवतारे और शिवसेना को परोक्ष रूप से खतरा है।

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