Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में बीएमसी यानी बृहन्मुंबई महानगरपालिका का चुनाव काफी अहम माना जाता है। इस पर लगभग पिछले तीन दशक से शिवसेना का राज है, और बीजेपी इसे खत्म करने के लिए इस बार पूरी ताकत झोंक रही है। 15 जनवरी को बीएमसी के चुनाव होने है। उससे पहले बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है, जिसकी सबसे बड़ी वजह ठाकरें भाइयों यानी उद्धव और राज ठाकरे का साथ आना है।

लंबे समय से शिवसेना यूबीटी चीफ उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे की राहें अलग थीं लेकिन बदले राजनीतिक समीकरणों के बीच दोनों ने हाथ मिला दिया है। एमएनएस और शिवसेना यूबीटी का ये गठबंधन बीजेपी और महायुति के लिए बीएमसी चुनाव के लिहाज से एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है।

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पलटवार की रणनीति पर काम कर रही बीजेपी

हालांकि, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सार्वजनिक रूप से ठाकरे भाइयों के साथ आने के असर को कम करके आंका है लेकिन बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि पार्टी की कोर कमेटी भाइयों के खिलाफ ‘काउंटर रणनीतियों’ पर काम कर रही है। ठाकरे भाइयों द्वारा ‘मराठी मानुष’ के मुद्दे को आगे बढ़ाने का वादा किए जाने के बाद बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों ने माना कि भले ही स्थानीय चुनाव में महायुति का प्रदर्शन अच्छा रहा है लेकिन फिर भी बीएमसी चुनाव “आसान” नहीं होंगे।

बीजेपी के ही एक सूत्र ने कहा है कि जब भी नए गठबंधन बनते हैं, उसका कुछ न कुछ असर जरूर होता है। ठाकरे भाइयों का साथ आना मराठी और मुस्लिम वोट बैंक को साधने पर उनके फोकस के कारण कुछ उत्साह पैदा कर सकता है।

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किस वोट बैंक से बीजेपी को खतरा?

मराठी भाषी लोगों को ठाकरे परिवार का मुख्य समर्थन आधार माना जाता है। ये लोग मुंबई की आबादी का लगभग 26% हैं। वहीं मुसलमान, जो शहर की आबादी का करीब 11% हैं। मुसलमानों को लेकर अनुमान है, कि वे आम तौर पर उस गैर बीजेपी पार्टी को वोट करते हैं, जो कि जीतने की क्षमता रखती दिखती है।

मराठी और मुस्लिम के इस कॉम्बिनेशन के जरिए शिवसेना और एमएनएस एक चक्रव्यूह बना रही है जिससे बीजेपी की चिंताएं बढ़ती दिखती हैं। इसके अलावा लगभग 11% दलित आबादी का एक हिस्सा भी बीजेपी के स्थायी वोट बैंक का हिस्सा नहीं माना जाता है। ऐसे में यह पक्ष भी काफी हद तक उसके खिलाफ ही जाता है।

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शिवसेना यूबीटी और MNS के पक्ष में दिख रहे आंकड़े

आंकड़ों के अनुसार, नवंबर 2024 के विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बावजूद उद्धव और राज ठाकरे मिलकर एक प्रभावशाली राजनीतिक ताकत बनते हैं। इन चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) को भारी नुकसान हुआ था और मनसे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही थी। विधानसभा चुनावों के वार्ड-वार आंकड़ों के अनुसार, शहर के 227 बीएमसी वार्डों में से 67 वार्डों में मनसे को विजयी उम्मीदवार के अंतर से अधिक वोट मिले थे। इनमें से 39 वार्डों में विपक्षी महाविकास आघाड़ी (एमवीए) आगे थी, जबकि 28 वार्डों में महायुति आगे थी। इन वार्डों के भौगोलिक विश्लेषण से पता चलता है कि मनसे की ताकत मुंबई की मराठी पट्टी में है, जो वर्ली, दादर, माहिम, घाटकोपर, विक्रोली और दिंडोशी-मलाड तक फैली हुई है।

यहां मनसे उम्मीदवारों को एमवीए उम्मीदवारों के वोटों का एक-तिहाई से आधा तक समर्थन मिला। मनसे को 123 वार्डों में प्रभाव डालने वाला माना गया। यह इस बात को दर्शाता है कि 2024 के विधानसभा चुनावों में केवल 25 सीटों से 4% वोट शेयर मिलने के बावजूद मुंबई की राजनीति में उसकी पकड़ बनी हुई है।

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उद्धव के लिए क्या हैं समीकरण

उद्धव ठाकरे के लिए यह अंकगणितीय समीकरण एक रणनीति में बदल जाता है, क्योंकि नगर निगम चुनावों में कुछ सौ वोट भी किसी वार्ड का फैसला कर सकते हैं। भले ही विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मनसे बड़ी ताकत न हो, लेकिन दोनों दलों के समर्थन आधार एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। मनसे के साथ गठबंधन मराठी वोटों के बिखराव को रोककर उनके एकीकरण में मदद कर सकता है।

ठाकरे भाइयों का यह गठबंधन बीजेपी को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना पर अधिक निर्भर होने के लिए मजबूर कर सकता है। इसमें वो क्षेत्र ज्यादा अहम है, जहां मराठी भाषी आबादी अधिक है, जैसे बीएमसी, ठाणे, कल्याण-डोंबिवली, नासिक, पुणे और नवी मुंबई।

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MNS की वजह से MVA में भी दरार

हालांकि उद्धव-राज का साथ आना बिना विरोध के नहीं है। खासतौर पर कांग्रेस इस गठबंधन से असहज है, क्योंकि वह ‘कट्टर’ माने जाने वाली मनसे को महाविकास आघाड़ी में शामिल करने के पक्ष में नहीं थी। विधानसभा चुनावों में महायुति की बड़ी जीत के बाद विपक्षी गठबंधन में दरारें साफ दिखने लगीं।

महाराष्ट्र के लिए एआईसीसी प्रभारी रमेश चेन्निथला ने घोषणा की कि कांग्रेस बीएमसी चुनाव अकेले लड़ेगी। दूसरी ओर, महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा कि हम ठाकरे भाइयों के साथ आने पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन नगर निगम चुनावों में हमारा मुख्य प्रतिद्वंद्वी बीजेपी है।

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