Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति पिछले कुछ सालों से देश की मीडिया की सुर्खियां बनी हुई हैं। शिवसेना में टूट के बाद रविवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में भी एक ऐसा ही वाक्या घटित हुआ, जिसने एनसीपी को दो धड़ों में बांट दिया। यह पूरा घटनाक्रम ऐसे वक्त घटित हुआ जिसका पहले से शायद ही किसी को अंदाजा रहा होगा कि अजित पवार एक बार फिर से महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बन सकते हैं, लेकिन ऐसा ही हुआ। अजित पवार एनसीपी के आठ विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे की सरकार में शामिल हो गए। साथ ही डिप्टी सीएम पद की शपथ ली। अजित पवार का यह कदम शरद पवार के लिए भूचाल लाने वाला था।
आखिर यह पूरा घटनाक्रम क्यों और कैसे घटित हुआ अगर इस पर नजर दौड़ाए तो सूत्रों का मानना है कि NCP में टूट की पटकथा शुक्रवार को उस वक्त तैयार हो गई थी, जब अजित पवार ने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ दिया था। अजित ने स्पीकर को एक लेटर सौंपा। जिसमें अधिकांश राकांपा विधायकों के हस्ताक्षर थे। स्पीकर से अनुरोध किया गया कि वे विधायक दल के नेता (जयंत पाटिल राकांपा विधायक दल के नेता हैं) को बदल रहे हैं और अजित पवार नेता के रूप में नियुक्त कर रहे हैं।
स्पीकर को लिखे इस खत के आधार पर, अजित पवार ने विधायक दल के नेता के रूप में राज्यपाल को पत्र लिखा और कहा कि वे शिंदे-फडणवीस सरकार का समर्थन कर रहे हैं। इसके बाद शपथ ग्रहण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। पहले शपथ ग्रहण समारोह सोमवार (3 जुलाई, 2023) को होना था। माना जाता है कि इस गुप्त बातचीत की भनक शरद पवार को लग गई। ऐसे स्थिति में आनन-फानन में सोमवार की जगह रविवार को शपथ ग्रहण का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
शपथ लेने वाले अजित पवार समेत सरकार में शामिल होने वाले एनसीपी नेता करीब दो महीने से शरद पवार से मुलाकात कर रहे थे। वे शरद पावर को बता रहे थे कि अधिकतम विधायक भाजपा-शिवसेना सरकार के साथ जुड़ना चाहते हैं। विधायकों ने पवार को समझाने की कोशिश भी की, लेकिन पवार नहीं माने। इस घटनाक्रम के बाद विधायकों ने खुद फैसला लिया। वहीं बीजेपी की ओर से भी NCP नेताओं पर जल्द से जल्द फैसला लेने का प्रेसर था, क्योंकि एनसीपी प्रमुख शरद पवार इस अलांयस के लिए तैयार नहीं थे।
शरद पवार की राजनीतिक विरासत के वारिस के रूप में देखे जा रहे अजित पवार पार्टी में पिछले कुछ दिनों से अलग-थलग नजर आ रहे थे। शरद पवार ने अजित पवार को उस वक्त एक और बड़ा संदेश दिया था जब उन्होंने पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को बनाया था। यह बात कहीं न कहीं अजित पवार को अंदर ही अंदर कचोट रही थी। अजित पवार के पास विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद तो था, लेकिन संगठन पर पकड़ लगभग खत्म हो चुकी थी। अजित पवार के द्वारा उठाया गया यह कदम जहां उनकी शरद से नाराजगी को बताता है तो इसके पीछे और भी कई फैक्टर हैं।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पिछले दिनों के घटनाक्रम पर नजर दौड़ाएं तो तस्वीर और साफ हो जाती है। शरद पवार ने जिस वक्त पार्टी प्रमुख पद से इस्तीफा दिया था। उस वक्त एनसीपी के तमाम नेता नहीं चाहते थे कि शरद एनसीपी चीफ पद छोड़ें, लेकिन अजित पवार ने कहा था कि शरद पवार ने एनसीपी चीफ पद से इस्तीफा दे दिया है और अब वो अपना इस्तीफा वापस नहीं लेंगे। उन पर फालतू का दबाव न बनाया जाए। ऐसे में सबकी निगाहें अजित पवार के ऊपर थीं कि अब अजित पवार को ही पार्टी का सर्वेसर्वा बनाया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि यह शरद पवार का यह मास्टर स्ट्रोक था। जिसके कुछ दिन बाद ही उन्होंने अपना इस्तीफा वापस से लिया और उसके कुछ दिन बाद एनसीपी के स्थापना दिवस पर बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया, जो अजित पवार के लिए किसी झटके से कम नहीं था।
अजित पवार को प्रदेश संगठन में भी कोई पद नहीं मिला था। शरद पवार जिस तरह से बेटी सुप्रिया को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ा रहे थे और भविष्य की राजनीति को लेकर अजित को कोई भरोसा उनकी ओर से नहीं मिल रहा था। इन सबकी वजह से भी अजित पवार नाराज चल रहे थे।