महाकुंभ का समापन हो गया है और आज आखिरी स्नान था। इस महाकुंभ में 65 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई है। अखाड़े महाकुंभ क्षेत्र से जा चुके हैं। हालांकि कई आश्रम और उसके प्रमुख लोग अभी भी क्षेत्र में हैं। इस बीच परमार्थ निकेतन आश्रम के प्रेसिडेंट स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि ईमानदारी से कहूं तो मैं वापस नहीं जाना चाहता। उन्होंने कहा कि तमाम राजनीति और नकारात्मकता के बावजूद 65 करोड़ से अधिक भक्तों ने पवित्र स्नान किया।
ईमानदारी से कहूं तो मैं वापस नहीं जाना चाहता- स्वामी चिदानंद सरस्वती
परमार्थ निकेतन आश्रम के प्रेसिडेंट स्वामी चिदानंद सरस्वती ने समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा, “ईमानदारी से कहूं तो मैं वापस नहीं जाना चाहता। हमने यहां संगम पर सनातन के एक साथ आने की झलक देखी। मैं यहां आए सभी लोगों को नमन करता हूं- क्या भक्ति है! क्या विश्वास है। मैं सीएम योगी आदित्यनाथ और पीएम नरेंद्र मोदी की कड़ी मेहनत की भी सराहना करता हूं। तमाम राजनीति और नकारात्मकता के बावजूद, 65 करोड़ से अधिक भक्तों ने पवित्र स्नान किया। लोग अभी भी आ रहे हैं।”
चिदानंद सरस्वती ने कहा, “विदेशी लोग तो आश्चर्यचकित हैं कि इतने लोग एकसाथ कैसे आ सकते हैं। कमाल का भारत हैं। हमारे यहां तो ऐसा नहीं है। किसी को सोने की, खाने की नहीं पड़ी है। बस लक्ष्य एक डुबकी थी। एक डुबकी राष्ट्र के नाम लगाई। हमने संकल्प लिया कि जैसे हम सब यहां स्वच्छता के दर्शन कर रहे हैं, वैसे ही हम अपने गांवों को स्वच्छ बनाएंगे।”
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चिदानंद सरस्वती ने आगे कहा, “हम दो दिन और रुकेंगे। अब तक हम सब ने संगम में स्नान किया, अब हम संगम को स्नान कराएंगे। संगम को स्नान कराने का मतलब है, जो भी यहां पर कोई कुछ भी छोड़ गया है, सबको हम लोग मिलकर के साफ करेंगे। हम सबको आमंत्रित भी करते हैं कि आइए हम लोग मिलकर स्वच्छ संगम को स्नान कराएं।”
दिल्ली भी सजकर तैयार- चिदानंद सरस्वती
स्वच्छ यमुना को लेकर चिदानंद सरस्वती ने कहा, “अब प्रयागराज के बाद दिल्ली भी सजकर तैयार है। सबने की तैयारी है, अब यमुना की बारी है। समय आ चुका है कि अब हम सब जल्द ही यमुना में भी डुबकी लगाएं। सबने की तैयारी है, यमुना की बारी है। हम सब सफाई को लेकर ऐसा अभियान चलाएं कि 1 साल के अंदर प्रधानमंत्री मोदी जी यमुना में जाकर डुबकी लगाए। सनातन का यह महाकुंभ प्रेरणा दे रहा है और हमें सनातन को अपने जीवन में जगाना है। हमारी संस्कृति, हमारी जड़े, हमारा मूल्य बस हमें उससे जुड़े रहना है।”