Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बीजेपी 14 अप्रैल को अपना घोषणापत्र जारी करने वाली है। बीजेपी इसे ‘संकल्प पत्र’ के तौर पर पेश करती रही है, जिसमें पार्टी बताएगी कि अगर देश में जनता, तीसरी बार मोदी सरकार (Narendra Modi Government) बनाती है, तो पार्टी और पीएम मोदी का एजेंडा क्या होगा। पार्टी का घोषणापत्र पहले चरण की वोटिंग से चंद दिन पहले आ रहा है लेकिन इसके पहले कांग्रेस पार्टी ने 5 अप्रैल को अपना मेनिफिस्टो यानी ‘न्याय पत्र’ (Nyay Patra) जारी कर दिया था।

ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को, 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान टक्कर देने के लिए, विपक्षी दलों ने जो इंडिया गठबंधन बनाया है; उसका कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम सामने नहीं आया है। इसके चलते सवाल यह उठता है कि बीजेपी के खिलाफ यह कैसी एकता है, और क्या यह गठबंधन बिखराव के बीच कैसे बीजेपी के इलेक्शन मशीनरी का सामना कर पाएगा?

सबसे पहले कांग्रेस पार्टी ने चुनावी मेनिफेस्टो जारी किया। इसमें मुख्य तौर पर वो सारे मुद्दे थे जो कि वायनाड सांसद राहुल गांधी अपनी दोनों भारत जोड़ो यात्राओं में उठाते रहे थे। न्यूनतम आय से लेकर जातिगत जनगणना, युवाओं को रोजगार के अवसर जैसे वादे कांग्रेस के मेनिफेस्टो में प्रमुख रहे। कांग्रेस पार्टी ने इसको लेकर जोर शोर से प्रचार प्रसार किया, लेकिन उसने इसमें विपक्षी दलों के सहयोगी नेताओं को साथ लाना तक जरूरी नहीं समझा।

सपा और आरजेडी ने भी जारी किया अपना मेनिफेस्टो

कांग्रेस द्वारा मेनिफेस्टो जारी होने के बाद उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने भी अपना मेनिफेस्टो जारी किया। इसमें भी जनता के लिए कई बड़े ऐलान किए। इसी तरह शनिवार को बिहार में राष्ट्रीय जनता दल यानी RJD ने भी अपना मेनिफेस्टो जारी किया। इसमें सस्ता सिलेंडर देने से लेकर जातिगत जनगणना कराने और बिहार को स्पेशल स्टेट दिलाने के वादे शामिल रहे। सपा और आरजेडी ने यूपी बिहार को लेकर ऐसे दावे किए हैं, जिससे यह साफ पता चलता है कि वे केवल अपने-अपने राज्य को लेकर ही सीमित है, क्योंकि राजनीतिक विश्लेषकों ने यह तक कहा कि अगर इंडिया गठबंधन की सरकार बन भी जाती है तो क्या सारे दल कुछ मुद्दा पर सहमत हो भी पाएंगे?

Rahul Gandhi | Congress | Lok Sabha Elections 2024
देश के सबसे बड़े सूबे से गायब दिख रही कांग्रेस (सोर्स – जनसत्ता)

कांग्रेस और विपक्ष ने खोया एकता दिखाने का मौका

सभी राजनीतिक दल अपने-अपने राज्यों में मेनिफेस्टो जारी कर रहे हैं। सभी का कहना है कि वे जीतने के बाद कांग्रेस के साथ एक कॉमन मिनिमम मेनिफेस्टो पर काम करेंगे। यह दिखाता है कि इंडिया गठबंधन फिलहाल मुद्दों के मामले में एकजुट नहीं हो पा रहा है। कांग्रेस पार्टी, जो कि खुद को इंडिया गठबंधन में एक लीडर के तौर पर पेश करती रही है, उसके लिए जरूरी यह था कि वह सभी दलों को एक साथ एक मंच पर लाकर एक कॉमन मेनिफेस्टो पेश करती, जिससे विपक्षी दलों की एकता का संदेश जाता लेकिन कांग्रेस ने पहले ही अपनी ‘एकला चलो रे’ की राह चुन ली और सबसे पहले उसने ही अपना मेनिफेस्टो अकेले जारी कर दिया।

चुनाव प्रचार से दूरी मेनिफेस्टो भी अलग-अलग

जिस वक्त तक बिहार के सीएम नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन में शामिल थे, उस वक्त तक यह दावा किया जा रहा था कि इस गठबंधन से सीधे तौर पर बीजेपी को टक्कर मिलेगी क्योंकि नीतीश कुमार पूरे देश में घूम-घूम कर प्रचार करने की तैयारी कर चुके थे लेकिन सीट शेयरिंग के चलते उनका मोहभंग हो गया और वे एनडीए में चले गए। इसको लेकर यह सवाल उठ रहे हैं कि जो काम नीतीश करने वाले थे, वह काम राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी, एमके स्टालिन और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने क्यों नहीं किया।

पहले यह प्लान था कि सभी घटक दल एक दूसरे के चुनाव प्रचार और रैलियों में शामिल होंगें। इसके जरिए पीएम मोदी की नीतियों की आलोचना की जाएगी लेकिन 31 मार्च की दिल्ली की एक रैली को छोड़ दें, तो विपक्षी दल एक साथ एक मंच में पर आकर चुनाव प्रचार करने में भी विफल साबित होते दिखे हैं।

मुद्दों पर मेनिफेस्टों में दिखा बिखराव

कांग्रेस पार्टी का न्याय पत्र अपने ही पुराने वादों को नजरंदाज करता दिखा। जो कांग्रेस 6 महीने पहले ओल्ड पेंशन स्कीम की वापसी की तैयारी कर रही थी, लेकिन उसने अपने न्याय पत्र में ओपीएस को कोई जगह ही नहीं दी। वहीं बात सपा की करें तो पार्टी ने ओपीएस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है। यह दिखाता है कि इंडिया गठबंधन के घटक दल एक नाव पर सवार होने का दावा तो करते हैं लेकिन उनकी सोच हर मुद्दे पर अलग-अलग नजर आती है।

यूपी-बिहार जैसे राज्यों में अपने बड़े सहयोगी घटक दलों से कांग्रेस को सीट शेयरिंग के मामले में एक छोटा सा ही हिस्सा मिला हुआ है लेकिन अब वे घटक दल भी कांग्रेस को कोई ज्यादा भाव नहीं देते दिख रहे हैं। यह माना जा रहा है कि खुद को गठबंधन का लीडर बताने वाली कांग्रेस पार्टी, अगर सभी घटक दलों को एक साथ एक मंच पर लाकर घोषणापत्र जारी करती, तो संभवतः यह कदम इंडिया गठबंधन की एकता और मजबूती को पेश करता लेकिन ऐसा हो ही नहीं सका।

Rahul Gandhi | Congress | Lok Sabha Elections 2024
राहुल गांधी के अमेठी से लड़ने पर बरकरार है सस्पेंस – (सोर्स – जनसत्ता)

जेल से अरविंद केजरीवाल की 6 गारंटी

हाल ही में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद जब इंडिया गठबंधन की रैली हुई, तो उसमें जेल से ही पत्नी सुनीता केजरीवाल के जरिए दिल्ली के सीएम ने जनता के लिए 6 गारंटियों का ऐलान कर दिया, और यहां तक कह दिया कि उन्हें यह उम्मीद भी है कि इंडिया गठबंधन के घटक दल उनका साथ देंगे। दिल्ली, बिहार और यूपी जैसे राज्यों में इ़ंडिया गठबंधन का यह विरोधाभास स्पष्ट कर रहा है कि वे पीएम मोदी के खिलाफ अपने गठबंधन की एकता और मजबूती दिखाने में पूरी तरह से विफल साबित हो रहे हैंं।

विरोधाभास बनता जा रहा है इंडिया गठबंधन

अलग-अलग राजनीतिक दल अपने-अपने राज्यों के लिहाज से घोषणापत्र जारी कर रहे हैं, जो सवाल उठाता है कि क्या इन दलों की राजनीति अपने-अपने विधानसभा चुनावों के लिहाज से हो रही है। एक तरफ जहां विपक्षी दल मेनिफेस्टो के जरिए एकजुटता दिखाने में असमर्थ रहे, तो दूसरी ओर यही राजनीतिक दल अलग-अलग राज्यों में अपनी भूमिका बदल रहे हैं। जो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पंजाब में कट्टर दुश्मन नजर आती हैं, वे दिल्ली में आकर एक हो जाती हैं। इसी तरह दिल्ली में जो टीएमसी, कांग्रेस के साथ हाथ मिलाती दिखती है, उसी टीएमसी की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी राज्य में कांग्रेस को एक भी सीट देने को तैयार नहीं होती हैं।

इसी तरह बिहार से लेकर यूपी तक में कांग्रेस, सपा और आरजेडी द्वारा दिए गए सीट शेयरिंग के फॉर्मूलों से आंतरिक तौर पर आक्रोशित नजर आती है, जो बीजेपी और पीएम मोदी के उस दावे को मजबूत करता है कि इंडिया गठबंधन पूरी तरह बिखर चुका है।