Lok Sabha Elections 2024: साल 2014 में जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने जब दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास जाने का प्लान बनाया, तो उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए यूपी का रुख किया और वाराणसी संसदीय क्षेत्र को चुना। वे अच्छे से जानते थे कि बीजेपी को अगर सत्ता पानी है तो यूपी की आवाम की मेहरबानी हासिल करनी ही होगी। अब जब लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी पीएम मोदी और बीजेपी को हराने की प्लानिंग कर रही है, तो उसके समर्थक ऐसे ही आक्रामक अप्रोच की उम्मीद कर रहे थे लेकिन ऐसा फिलहाल तो होता नहीं दिख रहा है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस ने गठबंधन किया है। सपा 62 कांग्रेस 17 और TMC एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। पहले चरण के लिए 19 फरवरी को वोटिंग होनी है लेकिन अहम बात यह है कि कांग्रेस का कोई बड़ा नेता अभी तक, यूपी में प्रचार तक नहीं करता दिख रहा है।
देश के सबसे बड़े सूबे और सबसे ज्यादा लोकसभा सांसद देने वाले यूपी को लेकर कांग्रेस पार्टी का अप्रोच ऐसा लग रहा है, मानो केंद्रीय आलाकमान ने सारी जिम्मेदारी सीधे तौर पर प्रदेश ईकाई और सहयोगी दल समाजवादी पार्टी पर छोड़ दी है। इसके अलावा राजनीतिक विश्लेषक यह भी कयास लगा रहे हैं कि शायद पार्टी ने यूपी में सपा से गठबंधन के नाम पर बीजेपी को यूपी मे वॉक ओवर दे दिया है।
धुआंधार प्रचार कर रही है BJP
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बीजेपी, पश्चिमी यूपी में जमकर प्रचार कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) जिला-दर-जिला प्रचार कर रहे हैं और बूथ लेवल तक पर कार्यकर्ताओं को जनता से कनेक्ट करने के लिए उत्साहित कर रहे हैं। यहां तक कि लंबे वक्त से यूपी की राजनीति में साइलेंट बैठी पूर्व सीएम और BSP सुप्रीमो मायावती (Mayawati) तक का चुनावी कैंपेन का कार्यक्रम जारी हो चुका है लेकिन कांग्रेस अभी तक यूपी में चुनावी लिहाज से एक्टिव नहीं दिख रही है।
अखिलेश के भरोसे छोड़ दिया यूपी
भले ही लोकसभा चुनाव 2024 लेकर कांग्रेस का सपा के साथ पीडीए अलायंस हुआ है लेकिन अखिलेश यादव के साथ राहुल, प्रियंका या फिर सोनिया गांधी की एक भी संयुक्त बड़ी रैली नहीं हुई है। आखिरी बार कांग्रेस आलाकमान के साथ अखिलेश तब दिखे थे, जब यूपी में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो न्याय यात्रा जारी थी। उस यात्रा में भी अखिलेश यादव ने यह कंडीशन रख दी थी कि जब तक सीट शेयरिंग पर बात नहीं बनेगी, तब तक वे राहुल के साथ न्याय यात्रा में नहीं दिखेंगे।
राहुल गांंधी की उस ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ (Bharat Jodo Nyay Yatra) के बाद कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं का यूपी से गायब होना यह सवाल उठा रहा है कि क्या कांग्रेस ने पूरा यूपी बस अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के भरोसे ही छोड़ दिया है, जो कि भविष्य के लिहाज से कांग्रेस के संगठनात्मक पतन की वजह भी हो सकती है।
UP ने दिए हैं सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री
बता दें कि उत्तर प्रदेश ने देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिए हैं। देश के पहले पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू फूलपुर से चुनाव लड़कर लोकसभा जाते थे। पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री इलाहाबाद सीट से चुनाव लड़कर संसद पहुंचते थे। इसी तरह पूर्व पीएम इंदिरा गांधी रायबरेली सीट से चुनकर पीएम बनी थीं। इतना ही नहीं, पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह बागपत से चुनाव लड़ते थे। पूर्व पीएम राजीव गांधी यूपी के अमेठी से चुनाव लड़ते थे।
इसी तरह वीपी सिंह, फतेहपुर सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे। उनके अलावा चंद्र शेखर से लेकर अटल बिहारी वाजपयी और नरेंद्र मोदी तक यूपी के ही अलग-अलग संसदीय क्षेत्रों से जीतकर संसद पहुंचते रहे लेकिन पहली बार ऐसा लग रहा है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य यूपी की किसी भी सीट से चुनाव नहीं लड़ रहा है। हालांकि अभी अमेठी और रायबरेली को लेकर कांग्रेस ने अपनी पोजिशन स्पष्ट नहीं की है।
मुख्य विपक्षी दल होने का दावा कितना सही?
कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Chunav) के बाद हमेशा यह दावा करती रही है कि वह देश की मुख्य विपक्षी पार्टी है। यकीनन वह है भी, क्योंकि देश के सबसे जायादा राज्यों में बीजेपी से, कांग्रेस ही लड़ती है लेकिन दिलचस्प बात यह भी है कि उसे बीजेपी के खिलाफ ही, पिछले 10 वर्षों में सबसे ज्यादा हार का सामना करना पड़ा है। इतना ही नहीं, इंडिया गंठबंधन (India Alliance) की सीट शेयरिंग के फॉर्मूलें को देखें, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों को छोड़ दें तो उसे अन्य राज्यों में बीजेपी के खिलाफ लड़ने के लिए क्षेत्रीय दलों से सीट शेयरिंग करनी पड़ी है।
ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक यह तक दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस इस चुनाव में ऐतिहासिक तौर पर सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ने वाली है, जिसके चलते उसके मुख्य विपक्षी दल बनने के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा सकता है।