देश का सबसे पुराना दल कांग्रेस पार्टी के पास अब यूपी में चुनाव के लिए उम्मीदवार ही नहीं रह गये हैं। बड़े नेताओं के चुनाव नहीं लड़ने या राज्यसभा में होने से पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल नहीं रह गया है। इससे पार्टी के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। पार्टी नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाल रहे हैं, लेकिन पार्टी में जिस उत्साह की जरूरत है, वह नहीं दिख रहा है।

कार्यकर्ताओं में प्रियंका गांधी से उम्मीद थी, लेकिन उनके भी चुनाव लड़ने की संभावना नहीं दिख रही है। इससे कार्यकर्ता निराश हैं। यूपी से फिलहाल समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का गठजोड़ है। पार्टी के पास समस्या यह है कि सपा ने उसे सिर्फ 17 सीट ही दी है, लेकिन इन सीटों पर भी उतारने के लिए उसके पास उम्मीदवार नहीं हैं।

पिछले चुनाव 2019 में पूरे प्रदेश में सिर्फ सोनिया गांधी ही जीत सकी थीं, राहुल गांधी तक हार गये थे, जबकि पार्टी 67 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारी थी। अभी हाल ही में कांग्रेस की यूपी इकाई की गठित राज्य चुनाव समिति ने “सर्वसम्मति से सिफारिश” की कि गांधी परिवार के सदस्यों को अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ना चाहिए। इस बीच सोनिया गांधी राज्यसभा में चली गईं और राहुल गांधी के अमेठी से खड़ा होने की कोई संभावना नहीं दिख रही है। ऐसे में कार्यकर्ताओं का उत्साह कम होना ही था।

कांग्रेस को जीत के लिए समाजवादी पार्टी के सहारे की जरूरत है। लेकिन सपा से जिस तरह उसके सहयोगी उसे छोड़कर जा रहे हैं, उससे इस समय सपा भी खुद को बहुत मजबूत नहीं पा रही है। कुछ समय पहले तक समाजवादी पार्टी के साथ ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP), जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल, पल्लवी पटेल का अपना दल कमेरावादी और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता थे, लेकिन अब ये लोग सपा से दूरी बना लिए हैं। इससे उनकी हालत भी अच्छी नहीं है। तब वह कांग्रेस की क्या मदद कर सकेंगे।

कांग्रेस का संगठन भी कमजोर होने से उम्मीदवार के लिए जो नाम सामने आ रहे हैं, उन पर कोई फैसला नहीं हो पा रही है। इससे यूपी में कांग्रेस की हालत काफी कमजोर लग रही है।

अविभाजित उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 85 सीटें थीं। आजादी के बाद से कांग्रेस सिर्फ दो मौकों (1952 और 1984) पर यूपी में 80 से ज्यादा सीटें जीती हैं। इसी तरह 1957 और 1971 में ही कांग्रेस 70 से ज्यादा सीटें जीत सकी थीं। 1957 में 70 और 1971 में 73 सीटे जीती थीं। दो बार 1977 और 1998 में कांग्रेस पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल सकी थीं। इसके अलावा 1991 और 1996 में 5; 1999 में 10; 2004 में 9; 2014 में 2; और 2019 में सिर्फ 1 सीट ही कांग्रेस पार्टी के पास आ सकी।