Lok Sabha Elections 2024: वायनाड से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने केरल से श्रीनगर तक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के तहत पदयात्रा की तो उसका सकारात्मक असर पार्टी को दक्षिण भारत के दो और उत्तर भारत के एक राज्य के विधानसभा चुनावों के तहत सफलता मिली। हालांकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी मोदी लहर के चलते कुछ खास कमाल न कर सकी लेकिन मिले जुले रिस्पॉन्स के चलते राहुल ने सलाहकारों के कहने पर एक यात्रा (Nyay Yatra) मणिपुर से भी निकाल दी, जो लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले जनवरी 2024 में शुरू हुई थी और रविवार को मुंबई के धारावी में जाकर INDIA Alliance की एक विशाल रैली के साथ खत्म हो गई।
अब सवाल यह है कि आखिर राहुल गांधी को इस भारत जोड़ो न्याय यात्रा से हासिल क्या हुआ, और क्या इस यात्रा के बाद राहुल गांधी की कांग्रेस पीएम मोदी की इलेक्शन मशीनरी से लैस बीजेपी का मुकाबला करने में सफल हो पाएगी? भले ही यह दावा किया जाए कि राहुल की इस यात्रा से कांग्रेस का का कोई भी रानजीतिक मंतव्य नहीं है लेकिन सभी जानते हैं कि राहुल एक मिशन के तहत ही आम चुनाव से ठीक पहले यात्रा पर निकले थे और खास बात यह है कि उन्होंने यात्रा भी मणिपुर से शुरू की थी, जो कि दो समुदायों के बीच विवादों के चलते कर्फ्यू और खतरनाक हिंसा की जद में था।
राहुल की न्याय यात्रा के पहले भले ही कांग्रेस तीन अहम राज्यों में चुनाव हारी हो लेकिन 2024 को लेकर उसके कथित नेतृत्व में बना इंडिया गठबंधन मजबूत दिख रहा था, जिसके जनक बिहार के सीएम नीतीश कुमार रहे, लेकिन यात्रा खत्म होते होते नीतीश कुमार ने खेला कर दिया और वे जिस इंडिया गठबंधन के जनक थे उसे ही टाटा कहकर पीएम मोदी का सहयोग करने के लिए एनडीए में चले गए। राहुल ने इस न्याय यात्रा के दौरान क्या-क्या खोया और क्या पाया यह बड़ा सवाल है, चलिए इसे समझते हैं।
शुरुआत में ही दिग्गजों ने कांग्रेस को कहा – टाटा
मणिपुर में जिस दिन राहुल की न्याय यात्रा शुरू हुई, उसी दिन महाराष्ट्र कांग्रेस के बड़े नेता मिलिंद देवड़ा ने पार्टी छोड़ एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना का रुख कर लिया। राहुल आगे बढ़ें तो दो तीन दिन बाद हरियाणा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर ने पार्टी छोड़ बीजेपी से हाथ मिला लिया। अशोक तंवर को बीजेपी ने लोकसभा का टिकट हासिल कर लिया है। इस दौराना ही महराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण ने भी पार्टी छोड़ दी। राहुल की यात्रा आगे बढ़ी तो असम में टकराव के चलते उनके पूरे यात्रा ग्रुप के खिलाफ ही असम पुलिस ने केस दर्ज करा दिए।
राम मंदिर विवाद ने कराई किरकिरी, डैमेज कंट्रोल विफल
जनवरी में राहुल गाधी जब असम में यात्रा कर रहे थे तो उस दौरान ही राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा न जाने का ऐलान उन पर ही भारी पड़ा था। लोकसभा चुनाव के पहले जहां राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के जरिए बीजेपी खुद को प्रो हिंदू दिखाने के प्रयास कर रही थी, तो वहीं कांग्रेस पर तुष्टिकरण की राजनीति करने के आरोप लग रहे थे। हालांकि पार्टी का यह तर्क था कि धार्मिक कार्यक्रम में उसे जाने से परहेज हैं, क्योंकि वह सभी धर्मों को समान भावना से देखती है लेकिन फिर भी उसकी छवि का करारा झटका लग चुका था।
नतीजा ये राहुल गांधी एक डैमेज कंट्रोल की पॉलिसी के तहत असम के कामाख्या मंदिर में दर्शन को निकले लेकिन मंदिर में जाने को लेकर उनके साथ काफी विवाद हुए और वहीं पर मौजूद भक्तों ने ही राहुल गो बैक तक के नारे लगाए। हालांकि कांग्रेस इन्हें चंद बीजेपी कार्यकर्ताओं की हरकत बताकर इग्नोर करती दिखी।
बंगाल में इंडिया गठबंधन को झटका, बिहार में JDU छिटका
राहुल गांधी पश्चिम बंगाल को पहुंचे तो उनके और अधीर रंजन चौधरी के बयानों के चलते सत्ताधारी दल टीएमसी भड़क गई। नतीजा ये कि जो ममता बनर्जी एक वक्त कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पीएम कैंडिडेट बनाने का समर्थन कर रही थीं, उन्हीं ने कांग्रेस के साथ बंगाल की 42 सीटों पर किसी भी तरह के गठबंधन से इनकार कर दिया। लास्ट कोशिशें जारी रहीं, ये खबरें भी आईं कि टीएमसी से कांग्रेस 3-5 सीटों के गठबंधन पर बातचीत कर रही है लेकिन अचानक ममता बनर्जी ने अपने सभी 42 प्रत्याशी उतार दिए। नतीजा ये बंगाल में इंडिया गठबंधन का अस्तित्व खत्म ही हो गया।
राहुल जब बिहार के किशनगंज पहुंचने वाले थे, तो उससे पहले ही राज्य में सियासी उथल-पुथल हुई। RJD कांग्रेस के साथ गठबंधन कर CM की कुर्सी पर बैठे जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार ने गठबंधन तोड़ बीजेपी के साथ NDA का रुख कर लिया। कांग्रेस के हाथ से बिहार की सत्ता तो गई ही, साथ ही लोकसभा चुनाव के लिए इंडिया गठबंधन की आधारशिला रकने वाले नीतीश कुमार का साथ भी चला गया। जब तक वे थे तो ये विपक्षी दल ज्यादा मजबूत लग रहा था लेकिन बाद में स्थिति उल्टी पड़ गई।
UP और दिल्ली में सफलता
राहुल गांधी के लिए यूपी पहुंचे तो शुरू में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव के साथ सीट शेयरिंग का विवाद हो गया। अखिलेश यादव द्वारा ये तक कहा गया कि जब तक सीट शेयरिंग पर बात फिक्स नहीं होगी, तब तक वे इंडिया गठबंधन में शामिल नहीं होंगे। आखिरकार सपा कांग्रेस के बीच बात बनी। सपा ने कांग्रेस 17 सीटें देकर पीडीए के तहत इंडिया अलायंस को कुछ मजबूती मिलने के संकेत दिए। इसी तरह कांग्रेस को दिल्ली में आप के साथ गठबंधन के तहत 7 में से तीन सीटें मिली। पंजाब में दोनों दलों ने नंबर वन और नंबर दो होने के चलते अलायंस नहीं किया।
नेताओं ने खूब छोड़ी पार्टी
एक तरफ राहुल गांधी की न्याय यात्रा जारी थी, तो दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के नेता लगातार पार्टी छोड़ रहे थे। महाराष्ट्र से लेकर बिहार हिमाचल प्रदेश गुजरात समेत कई राज्यों में कई विधायकों और दिग्गज नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष रहे अर्जुन मोढ़वाडिया से लेकर यूपी कांग्रेस के बड़े नेता AICC सदस्य अजय कपूर, गुजरात कांग्रेस के नेता अंबरीश डेर ने भी कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। गुलाम नबी आजाद से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, हार्दिक पटेल जैसे नेता पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं, जिसके चलते पहले के मुकाबले राहुल की दूसरी पदयात्रा को ज्यादा कवरेज तक नहीं मिल सका।
कितना मजबूत है इंडिया गठबंधन
इंडिया गठबंधन के घटक दलों की रैली के साथ मुंबई में राहुल की न्याय यात्रा खत्म तो हुई लेकिन सवाल यही है कि क्या यह इंडिया गठबंधन उसी तरह एकजुट है जैसे वह दिखने का प्रयास कर रहा है, क्योंकि जम्मू कश्मीर में पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला कांग्रेस के खिलाफ आंखे तरेर चुके हैं। इसी तरह पंजाब में पार्टी के खिलाफ सीएम भगवंत मान ने एकजुटता दिखाने के बावजूद खतरनाक मोर्चा खोल रखा है।
और अंत में सबसे बड़ा सवाल यही कि राहुल गांधी और कांग्रेस को इस इंडिया गठबंधन की न्याय यात्रा से हासिल क्या हुआ और क्या वे लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पार्टी को उतना मजबूत करने में सफल हो पाए हैं, जिससे वे बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनावी समर में अपना दम दिखा सके।
इस मूल प्रश्न का असल जवाब तो 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के साथ ही मिल पाएगा।