दोनों पक्ष कहते हैं कि ये आम लोकसभा चुनाव नहीं है। नरेंद्र मोदी की नजर में विशेष इसलिए है कि ‘इंडी गठबंधन’ जीतेगा तो देश को ऐसी सरकार मिलेगी जो माताओं, बहनों के मंगलसूत्र और स्त्रीधन तक छीनने का काम करेगी। राहुल गांधी कहते हैं कि ये आम लोकसभा चुनाव नहीं है, विशेष है, इसलिए कि अगर मोदी तीसरी बार जीतते हैं तो न लोकतंत्र रहेगा और न संविधान। दोनों तरफ से मतदाताओं को डरा कर उनका वोट हासिल करने का काम हो रहा है। असलियत यह है कि मतदाता आज इतने भोले नहीं हैं कि इस तरह के प्रचार के शिकार बन जाएं।
मतदान का दूसरा दौर समाप्त होने के बाद क्या कहा जा सकता है इस चुनाव के बारे में? यहां कहना जरूरी है अपनी तरफ से कि मैं जो भी कहूंगी, गालियां पड़ेंगी दोनों तरफ से, इसलिए कि दोनों पक्षों ने सोशल मीडिया पर ऐसे लोग बिठा रखे हैं जो राजनीति के बारे में इतना कम जानते हैं कि सोचते हैं कि विश्लेषण करने वाले निष्पक्ष हो नहीं सकते हैं।
राहुल गांधी के प्रचार के बारे में कुछ कहती हूं तो पीछे पड़ जाते हैं उनके ऐसे समर्थक जो मुझ पर गांधी परिवार से ‘नफरत’ करने का आरोप लगाते हैं। मोदी के प्रचार के बारे में कुछ कहती हूं तो पीछे पड़ जाते हैं मोदी भक्त जो मुझ पर यही आरोप लगाते हैं। सो, आगे बढ़ने से पहले स्पष्ट करना चाहती हूं कि नफरत के आधार पर नहीं किया जाता है राजनीतिक विश्लेषण। इतना कठिन क्यों है इस बात को समझना?
अब सुनिए मेरी राय में चुनाव कैसी शक्ल ले चुका है। पहली बात यह कि मुझे लगने लगा है कि लोकसभा चुनाव न रहकर अमेरिकी किस्म का राष्ट्रपति चुनाव बन गया है, जिसमें लड़ाई सिर्फ राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के बीच हो रही है। राहुल की बहन प्रियंका के अलावा एक भी दूसरे कांग्रेस राजनेता का कोई महत्त्व नहीं दिख रहा है। बड़ी आम सभाओं को संबोधित यही दोनों बहन-भाई कर रहे हैं और दोनों के भाषणों में निशाना बनते हैं मोदी।
कहते हैं इन दिनों कि मोदी इसलिए डर गए हैं कि जानते हैं कि 400 पार तो दूर की बात, उनको 180 से भी कम सीटें मिलने वाली हैं इस बार। पिछले सप्ताह राहुल गांधी ने अपना नामांकन रायबरेली से भरने से पहले कहा कि उनका अपना अनुमान है कि मोदी 150 पर रुक जाएंगे। और चार जून को जब कांग्रेस की सरकार बनेगी दिल्ली में तो हर गरीब महिला के बैंक खाते में ‘खटाखट’ पहुंच जाएंगे एक लाख रुपए। हर शिक्षित बेरोजगार को कांग्रेस पार्टी देगी पहली नौकरी ‘अप्रेंटिसशिप’ योजना द्वारा एक साल के लिए।
दूसरी तरफ हैं मोदी और अमित शाह, जिनको सोशल मीडिया पर ‘मोशाह’ कहा जा रहा है। इनके प्रचार में भी कांग्रेस के ‘शहजादे’ को मुख्य निशाना बना रखा है। याद दिलाया जा रहा है कि जब इनके परिवार के हाथों में थी देश की बागडोर तो भारत को लूटने का काम ही किया गया था। यही लूट दोबारा होने वाली है और इस बार जो संपत्ति लोग बनाते हैं अपने जीवन में उसका आधा हिस्सा कांग्रेस की सरकार लूटने वाली है उनके मरने के बाद।
कहने का मतलब ये है कि दोनों तरफ से मतदाताओं को डराने का काम किया जा रहा है। लेकिन जमीन पर यथार्थ यह है कि मतदाता कहते हैं कि उनकी नजर में न लोकतंत्र को खतरा दिखता है न संविधान के समाप्त होने का। अपना वोट जब देने जाएंगे तो यही सोच कर कि उनके लिए किस पक्ष ने ज्यादा काम किया है और भविष्य में कौन उनके लिए ज्यादा काम करने वाले हैं।
यहां यह कहना जरूरी है कि जब मैं घूमने निकलती हूं ग्रामीण क्षेत्रों में तो भारतीय जनता पार्टी के प्रचारक दिखते हैं, लेकिन कांग्रेस के नहीं। ऐसा लगता है जैसे पिछले दस सालों में कांग्रेस पार्टी के आला नेताओं ने पार्टी की जड़ें दोबारा मजबूत करने के लिए कोई मेहनत नहीं की है। सेवा दल जैसी संस्थाएं जो कभी कांग्रेस के प्रचार में बहुत काम आया करती थीं, अब तकरीबन गायब हो गई हैं। इसलिए अगर राहुल गांधी की बात सही साबित होती है तो सारा श्रेय उनको जाएगा और उनकी बहन को। सोशल मीडिया पर इन दिनों कांग्रेस छाई हुई है मोदी से भी ज्यादा। लेकिन जमीन पर नहीं।
भारतीय जनता पार्टी को अगर तीसरी बार बहुमत मिलता है लोकसभा में तो उसका श्रेय जाएगा मोदी को ही। इसलिए कि मोदी ही सबसे बड़ा मुद्दा बन गए हैं इस चुनाव में। गांवों में जो विकास के कार्य देखने को मिलते हैं उनका सारा श्रेय लोग देते हैं मोदी को, भारतीय जनता पार्टी को नहीं। राजस्थान के कुछ इलाकों में भाजपा की तरफ से ऐसे लोग खड़े किए गए हैं जिन्होंने संसद में पहुंचने के बाद लोगों के लिए कुछ भी नहीं किया है, लेकिन वे जीत सकते हैं दोबारा मोदी के नाम पर।
तो क्या मोदी का जादू फिर से चलने वाला है? यहां निजी तौर पर कहना चाहूंगी कि मोदी बेशक इस दौड़ में सबसे आगे हैं, लेकिन वह ‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’ वाली बातें जो 2019 में सुनने को मिलती थीं, इस बार नहीं सुनाई देती हैं। मतदाता थके-हारे से लगते हैं इस बार। फिलहाल महाराष्ट्र में हूं, जहां गर्मी इतनी है कि बाहर जाना मुश्किल है और इस गर्मी में पानी की इतनी बड़ी समस्या है ग्रामीण क्षेत्रों में कि कुछ गांव मतदान नहीं करना चाहते हैं। सवाल यह है कि जिस देश में पीने के लिए पानी ही न मिले, वहां कैसे कोई देख सकता है क्षितिज पर विकसित भारत के आसार।