2024 में होने वाले लोकसभा के चुनाव को लेकर सभी दलों में रणनीति बनाने का काम तेजी से चल रहा है। देश में सबसे ज्यादा सांसद उत्तर प्रदेश में हैं और केंद्र में किस पार्टी की सरकार होगी, यह भी काफी कुछ उत्तर प्रदेश से तय होता है। राज्य में भाजपा, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस समेत सभी दलों में इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि कौन किसके साथ मिलकर जनता के सामने जाएगा और कौन अकेले मैदान में उतरेगा।

पार्टी का मानना है कि “जमीनी स्तर पर उचित” नहीं रहेगा गठजोड़

मंगलवार को लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर लखनऊ में हुई यूपी कांग्रेस की पहली रणनीतिक बैठक में जो बात प्रमुखता से निकली वह समाजवादी पार्टी से गठबंधन नहीं करने की थी। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने कहा कि 2024 के संसदीय चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के साथ गठजोड़ पार्टी के लिए “जमीनी स्तर पर उचित” नहीं रहेगा।

नेताओं ने महसूस किया कि दूरी बनाए रखने में ही भलाई है

खाबरी ने कहा, “पार्टी नेताओं का कहना है कि समाजवादी पार्टी को हिंदू या मुस्लिम का भी बहुत ज्यादा वोट शेयर मिलता नहीं दिख रहा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में जिन लोगों ने उनका समर्थन किया, उन्होंने देखा कि वे भाजपा के खिलाफ मुकाबले में सफल नहीं हो सके। पार्टी नेताओं ने यह महसूस किया है कि लोगों की भावनाओं को देखते हुए समाजवादी पार्टी से दूरी बनाए रखने में ही भलाई है। यहां तक कि मुसलमानों ने भी 2022 में देखा कि अखिलेश यादव ने अपनी सभाओं में उनके समुदाय को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया। उनका वोट बैंक अब खिसक रहा है।”

अन्य दलों के साथ जाने का विकल्प अब भी खुला है

यह पूछने पर क्या कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पार्टी को अकेले ही मैदान में जाने की सलाह दी है, खाबरी ने कहा, “ऐसा नहीं है, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को छोड़कर के किसी के साथ भी जा सकते हैं।”

बैठक में मौजूद कई अन्य नेताओं ने संकेत दिया है कि पार्टी का एक बड़ा तबका, खासकर बड़े और दिग्गज नेताओं का मानना है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन से राज्य में पार्टी के फिर से खड़ा होने में बाधा ही आई है।

2017 के गठबंधन को एक “व्यावहारिक अनुभव” बताते हुए खाबरी ने कहा, “वह प्रयोग विफल रहा। जब वे ऐसा करते हैं, तब यह संदेह पैदा होता है कि भविष्य में ऐसा फैसला लेना चाहिए या नहीं।” उन्होंने यह भी कहा, “लोगों ने देखा कि किस तरह नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के खिलाफ आंदोलन में समाजवादी पार्टी नेतृत्व कांग्रेस के साथ नहीं खड़ा हुआ।”