Lok Sabha Chunav 2024: 40 संसदीय क्षेत्रों वाले बिहार में चार फेज के तहत अब तक कुल 19 सीटों पर लोकसभा चुनाव 2024 के लिए वोटिंग हो चुकी है। 21 सीटें अभी भी बाकी हैं और अगले तीन फेज में इन सभी पर चुनाव पूरे हो जाएंगे। पांचवा चरण 20 मई को होना है, जिसमें 5 सीटों पर वोटिंग होगी। बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन (NDA Alliance) के लिए चुनाव के पहले ही कहा जा रहा था कि यहां विपक्षी दलों का इंडिया महागठबंधन (India Alliance) बीजेपी की इलेक्शन मशीनरी को परेशान कर सकता है।

बिहार में आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट जैसे दल एक साथ चुनावी ताल ठोक रहे हैं और दावे ये किए जा रहे हैं कि गठबंधन आसानी से बीजेपी और एनडीए को बिहार में धूल चटा देगा। इसके इतर पिछले चार चरणों के चुनाव प्रचार का पैटर्न देखें तो काफी हद तक यह संकेत मिल रहा है, जैसे बिहार में एनडीए का मुकाबला अकेले आरजेडी नेता और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ही कर रहे हैं लेकिन कैसे चलिए समझते हैं।

धुआंधार प्रचार कर रहे हैं तेजस्वी

दरअसल, लोकसभा चुनाव के लिए तेजस्वी यादव पूरे बिहार में घूम-घूमकर प्रचार कर रहे हैं। चार चरणों की वोटिंग के दौरान तेजस्वी ने अनेकों बड़ी जनसभाओं से लेकर नुक्कड़ सभाओं तक में शिरकत की और बीजेपी के खिलाफ खुलकर हमला बोला। इतना ही नहीं, चुनाव से ठीक पहले सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के एनडीए में जाने तक का मुद्दा उठाया।

तेजस्वी की एक बड़े वर्ग के बीच पॉपुलैरिटी काफी ज्यादा रही है, जो कि बिहार के 2020 के विधानसभा चुनावों (Bihar Assembly Elections 2024) में भी देखने को मिली थी, लेकिन उन्हें अपने सहयोगी दलों से कुछ खास सपोर्ट नहीं मिलता दिख रहा है, जो कि इंडिया गठबंधन के लिहाज से सबसे ज्यादा निराशाजनक हो सकता है।

स्टार प्रचारकों का ऐलान लेकिन जमीन से नदारद

बिहार में राजद, 26, कांग्रेस 9, लेफ्ट 5 सीटों पर चुनावी मैदान में है। गठबंधन का दूसरा घटक दल यानी कांग्रेस लगातार दावा कर रही है कि गठबंधन राज्य में 40 की 40 सीटों पर जीत दर्ज करेगा, लेकिन पार्टी का यह जोश कागजी तो नहीं… चुनाव प्रचार की शुरुआत के दौरान कांग्रेस ने 40 स्टार प्रचारकों का नाम घोषित कर खूब हवा बनाने की कोशिश की थी। इसमें वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी से लेकर सांसद राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी तक का नाम भी था।

मैदान में उतरे महज दो-तीन प्रचारक

इतना ही नहीं, बिहार से आने वाले बड़े चेहरे यानी कन्हैया कुमार और मीरा कुमार भी इस लिस्ट में थे, लेकिन यह केवल नाम ही रह गए, क्योंकि खुद राहुल गांधी तक, बिहार में तेजस्वी के साथ बेहद ही कम नजर आए थे। कांग्रेस ने बिहार के लिए 40 स्टार प्रचार घोषित किए थे, लेकिन सियासी जमीन पर चुनाव प्रचार के लिए एक दो ही उतरे।

दिलचस्प बात यह है कि इन एक-दो प्रचारकों ने भी बस उतना ही प्रचार किया है, जो कि हथेली पर ही गिना जा सकता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भागलपुर सीट पर प्रचार करने आए थे। इसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर में चुनाव प्रचार करने पहुंचे थे।

हैरानी की बात यह है कि न तो प्रियंका गांधी वाड्रा और न ही सोनिया गांधी, बिहार के चुनावी रण में प्रचार करने उतरी हैं।

अपनी सीटों में फंसे स्टार प्रचारक

कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार का नाम भी इस स्टार प्रचारकों वाली लिस्ट में शामिल है, जो कि मूलरूप से तो बिहार के हैं लेकिन कांग्रेस ने उन्हें नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से चुनावी मैदान में उतारा है। कन्हैया का मुकाबला बीजेपी नेता और सांसद मनोज तिवारी से है, जो कि खुद अपनी बिहारी पहचान को वोटों में इनकैश करने की प्रयास करते रहे हैं। ऐसे में कन्हैया के लिए भी बिहार आना फिलहाल तो असंभव दिख रहा है।

कन्हैया अपनी सीट पर बुरी तरह फंसे हैं। इसी तरह राहुल गांधी के लिए, प्रियंका गांधी वाड्रा रायबरेली सीट पर चुनावी माहौल बना रही हैं और वह भी केवल रायबरेली सीट पर बंधकर रह गई हैं, कुछ ऐसी ही स्थिति राहुल गांधी की भी है। हालांकि प्रियंका के रायबरेली संभालने के चलते राहुल अभी देश के अन्य संसदीय क्षेत्रों में प्रचार करने पर सहज हैं।

पिछले चुनाव से सबक लेकर रणनीति?

पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान सत्ता में न आने के बावजूद विपक्षी दलों के गठबंधन में बेहतरीन प्रदर्शन किया था और बहुमत से कुछ ही सीटें पीछे रह गया था। इसका श्रेय राजद नेता तेजस्वी यादव को जाता है। दूसरी ओर बहुमत पर न पहुंच पाने का ठीकरा कांग्रेस के सिर पर फूटा था, क्योंकि कांग्रेस ने 70 सीटों में से 19 सीटें ही जीती थीं।

यह दावा भी किया जा रहा था कि अगर तेजस्वी कांग्रेस को कम सीटें देते तो संभवत: 110 सीटों पर पहुंचने वाला गठबंधन आसानी से बहुमत भी हासिल कर सकता था लेकिन कांग्रेस के खराब विनिंग स्ट्राइक रेट ने गठबंधन को नाकामी की ओर धकेल दिया। संभवत: इसीलिए लोकसभा चुनाव के लिए तेजस्वी ने बिहार में कांग्रेस को 9 सीटें ही दी हैं।

मजबूरी भी हो सकती है वजह

आम तौर पर यह देखा गया है कि जहां बीजेपी और कांग्रेस में सीधी लड़ाई होती है, वहां बीजेपी को फायदा होता है। कांग्रेस नेताओं के भाषणों को मुद्दा बनाकर बीजेपी आसानी से विपक्ष पर प्रेशर डालने में कामयाब हो जाती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिख रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि तेजस्वी खुद नहीं चाहते कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद चुनावी प्रचार में उतरे और बीजेपी को आसान टारगेट मिल जाए।

ऐसे में तेजस्वी यादव का अकेले ही पूरा चुनाव प्रचार संभालना बताता है कि वो कांग्रेस पर कुछ खास विश्वास नहीं कर रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस के चलते पिछले कई चुनावों में बिहार में पूरे विपक्ष को खामियाजा भुगतना पड़ा था।