कविता जोशी

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआइ) अब नए और अंदाज में पुरातात्विक स्थलों पर खुदाई की योजना बना रहा है। इसमें जहां एक ओर इस कार्य के लिए नई वैज्ञानिक और आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। वहीं पुरातत्वविदों के साथ अब इतिहासकार, साहित्यकार, संस्कृत भाषा और वैदिक साहित्य के विद्वान, धर्मग्रंथों के जानकार भी काम करेंगे। यह जानकारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक (डीजी) यदुबीर सिंह रावत ने जनसत्ता से खास बातचीत में दी।

उन्होंने बताया कि इस पूरी कवायद में हड़प्पा सभ्यता से पहले के भारत के समृद्ध और गैर उद्घाटित इतिहास के रहस्यों से परदा उठाने की कोशिश की जाएगी। हमारे पास 1500 ईसा पूर्व से लेकर छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक के इतिहास के बारे में बेहद कम जानकारी है। यह हड़प्पा और उससे जुड़ी हुई सिंधु घाटी सभ्यता से पहले का इतिहास और उससे जुड़े समाज का कालखंड है। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक ने कहा कि अब तक यह देखा गया है कि समाज में इतिहास को लेकर अलग-अलग मत रहे हैं लेकिन पुरातात्विक खुदाई उसके वास्तविक जमीनी प्रमाण प्रस्तुत करती है।

इससे हमें पता चलता है कि किस समाज में हम कैसे आगे बढ़ रहे हैं? भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की आगे की खुदाई की परियोजनाओं में पुरातात्विक प्रमाणों को हम साहित्य, इतिहास, वेद और उपनिषद (धर्मग्रंथों) के नजरिए से किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश करेंगे। इससे यह स्पष्टता आएगी कि पुरातात्विक खुदाई में तत्कालीन समाज और संस्कृति से जुड़े इतिहास के जो साक्ष्य मिले हैं वो साहित्य और धर्मग्रंथों के नजरिए से कैसे दिखाई देते हैं?

उन्होंने बताया कि पुरातात्विक स्थलों की खुदाई में एएसआइ द्वारा नई और वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जाएगा। इससे उस स्थल के कालखंड, वहां की जलवायु, वहां रहने वाले लोगों के खानपान, आजीविका से जुड़े उद्योग के बारे में पता लगाएगा। इसके लिए अलग-अलग स्थलों का इसके लिए चयन किया जाएगा। खुदाई का यह कार्य धीमी गति से चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ेगा और कोशिश होगी कि इतिहास को लेकर हम एक सर्वमान्य निष्कर्ष सभी के सामने रखा जाए।