केंद्र सरकार ने कोरोनावायरस से लड़ाई के बीच देश के लिए आर्थिक राहत पैकेज का ऐलान कर दिया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक, 1 करोड़ 70 लाख रुपए के इस पैकेज में कमजोर तबके का ध्यान रखा गया है। खासकर किसानों, महिलाओं, निर्माण कार्य से जुड़े लोगों, वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं और दिव्यांगों का। हालांकि, इतने बड़े वर्ग (आबादी के 30% से ज्यादा) के लिए भी सरकार का राहत पैकेज भारत की जीडीपी का महज 1% ही है।

आर्थिक राहत पैकेज में चिंता की बात सिर्फ इसका आकार नहीं, बल्कि यह भी है कि असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी, जिन्होंने लॉकडाउन के चलते अपनी नौकरी और तनख्वाह दोनों खोई हैं, उन्हें कितनी जल्दी इसका फायदा मिलता है। वह भी ऐसे समय जब इस वर्ग पर स्वास्थ्य सेवाओं की कमी का सबसे ज्यादा खतरा है। इस लिहाज से केंद्र सरकार का पैकेज केरल के राहत पैकेज से भी देरी से आया है। केरल सरकार ने पिछले हफ्ते ही लोगों को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए 20,000 करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, तेलंगाना और राजस्थान ने भी राहत पैकेज की घोषणाएं शुरू कीं।

इस आर्थिक पैकेज में अभी यह साफ नहीं है कि सरकार ने असंगठित क्षेत्र के कर्मियों के लिए क्या योजनाएं तैयार की हैं। मसलन धोबी, रिक्शावालों, नाई और ग्रामीण कामगारों के लिए जो कई बार राज्य सरकार के साथ रजिस्टर्ड नहीं होते। इसके अलावा निर्माण कार्यों से जुड़े कर्मी जो राज्य सरकार से नहीं जुड़े हैं, उन्हें कैसे फायदा मिलेगा यह अभी तय नहीं है। एक दशक पहले असंगठित क्षेत्र के कर्मियों की संख्या करीब 47.41 करोड़ आंकी गई थी। पॉलिसी एक्सपर्ट्स को चिंता है कि आखिर सरकार उन कर्मियों को कैसे ढूंढ कर फायदा पहुंचाएगी, जो काम छोड़कर सैकड़ो किलोमीटर का सफर कर अपने घर की ओर निकल गए हैं।

किस वर्ग के लिए सरकार ने क्या दिया?
सरकार ने किसानों के लिए 17,380 करोड़ रुपए के राहत पैकेज का ऐलान किया। खास बात यह है कि यह रकम किसानों को प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत ही देने की बात कही गई है। वित्त वर्ष 2020-21 में सरकार ने किसान योजना के लिए इतनी ही रकम तय की थी। इसके तहत हर किसान को साल में तीन किश्तों के जरिए 6000 रुपए मिलने थे। लेकिन अब यह रकम किसानों को एकमुश्त देने जा रही है।

दूसरी तरफ निर्माण कार्य से जुड़े कर्मचारियों के लिए भी सरकार को अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ा है। उनके लिए सराकर ने उसी फंड को खर्च करने का निर्देश दिया, जो केंद्र और राज्य सरकारें निर्माण के खर्च पर 1% सेस लगाकर जुटाती हैं। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 30 सितंबर तक इस फंड में 45,473 करोड़ रुपए इकट्ठा कर लिए थे और 17,591 खर्च भी किए।

इसके अलावा MNREGA कर्मियों के दैनिक वेतन में 20 रुपए की वृद्धि (182 रुपए से 202 रुपए) भी बड़ी नहीं है। खासकर ऐसे समय जब कुछ राज्यों ने इन कर्मियों को कोरोनावायरस के डर से लगाए गए लॉकडाउन के बीच काम करने से ही रोक दिया है। ऐसे में चूंकि मनरेगा से जुड़े ज्यादातर कर्मियों की आधार कार्ड डिटेल उनके जनधन अकाउंट से जुड़ी थी, ऐसे में सरकार को उन्हें तुरंत डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर स्कीम के जरिए फायदा पहुंचाना चाहिए था।

मनरेगा योजना में आमतौर पर गरीब से गरीब व्यक्ति जुड़ते हैं। ऐसे में तीन हफ्तों तक काम न मिल पाने की स्थिति में सरकार को उन्हें कम से कम 15 दिन की राशि देनी चाहिए थी। यह राशि करीब 3 हजार रुपए प्रति कर्मचारी के आसपास हो सकती थी। कुल 13.65 करोड़ जॉब कार्ड के हिसाब से भी अगर सरकार एक खाते में तीन हजार देती तो उसका खर्च 41 हजार करोड़ से ज्यादा का न आता।