केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) की विशेष अदालत ने मंगलवार को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद समेत पचहत्तर आरोपियों को 139.5 करोड़ रुपए के डोरंडा कोषागार गबन मामले में दोषी ठहराया। वहीं चौबीस लोगों को बरी कर दिया गया। अदालत ने 29 जनवरी को मामले में दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। प्रसाद को इससे पहले चारा घोटाला के चार अन्य मामलों में 14 साल की सजा सुनाई जा चुकी है।
सीबीआइ की विशेष अदालत के न्यायाधीश एसके शशि ने प्रसाद सहित 99 आरोपियों के खिलाफ सुनवाई पूरी की थी, जो पिछले साल फरवरी से चल रही थी। अंतिम आरोपी डा शैलेंद्र कुमार की ओर से बहस 29 जनवरी को पूरी हुई। सभी आरोपियों को फैसले के दिन अदालत में प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया गया था।
मामले के 170 आरोपियों में से 55 की मौत हो चुकी है, सात सरकारी गवाह बन चुके हैं, दो ने अपने ऊपर लगे आरोप स्वीकार कर लिए हैं और छह फरार हैं। प्रसाद के अलावा पूर्व सांसद जगदीश शर्मा, तत्कालीन लोक लेखा समिति (पीएसी) के अध्यक्ष ध्रुव भगत, पशुपालन सचिव बेक जूलियस और पशुपालन सहायक निदेशक डा केएम प्रसाद को भी सीबीआइ अदालत ने दोषी पाया है।
950 करोड़ रुपए का यह घोटाला अविभाजित बिहार के विभिन्न जिलों में धोखाधड़ी कर सरकारी खजाने से सार्वजनिक धन की निकासी से संबंधित है। इससे पहले राजद प्रमुख को चारा घोटाला मामले में 14 साल जेल की सजा सुनाई गई थी और कुल 60 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया था। उन्हें दुमका, देवघर और चाईबासा कोषागार से जुड़े चार मामलों में जमानत मिल गई है।
चारा घोटाला मामला जनवरी 1996 में पशुपालन विभाग में छापेमारी के साथ आगे बढ़ा। सीबीआइ ने जून 1997 में लालू प्रसाद को एक आरोपी के रूप में नामित किया। एजंसी ने प्रसाद और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के खिलाफ आरोप तय किए। सितंबर 2013 में निचली अदालत ने चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में प्रसाद, मिश्रा और 45 अन्य को दोषी ठहराया और प्रसाद को रांची जेल भेज दिया गया था। दिसंबर 2013 में उच्चतम न्यायालय ने मामले में लालू प्रसाद को जमानत दे दी, जबकि दिसंबर 2017 में सीबीआइ अदालत ने उन्हें और 15 को दोषी पाया और उन्हें बिरसा मुंडा जेल भेज दिया। झारखंड उच्च न्यायालय ने प्रसाद को अप्रैल 2021 में जमानत दे दी थी।
रिम्स में रह कर इलाज कराने की इजाजत
पांचवें मामले में दोषी करार दिए जाने से पहले लालू यादव दिल्ली में रहकर एम्स के विशेषज्ञ डाक्टरों की निगरानी में इलाज करवा रहे थे। जेल में रहने या दिल्ली के डाक्टरों की सेवा से वंचित होने के कारण उनके इलाज में कोताही होती है, तो उनका स्वास्थ्य और भी खराब हो सकता है और उनकी जान पर भी खतरा पैदा हो सकता है। सजा सुनाने के पहले तक अदालत ने लालू को रिम्स में रह कर इलाज कराने की इजाजत दे दी है, लेकिन इसे न्यायिक हिरासत ही माना जाएगा।