लक्ष्मी देवी

जयपुरा (कर्नाटक) के कोल्हार तालुका में डेयरी किसान उस समय रोमांचित हो गए जब एक चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके द्वारा उत्पादित मशहूर ‘कोर्थी-कोल्हार दही’ का स्वाद चखा, लेकिन वे इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि वे भैंस पालन की अपनी आजीविका को कब तक जारी रख पाएंगे क्योंकि वे चारे की कमी का सामना कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री 10 मई को राज्य में होने वाले चुनाव से पहले प्रचार के लिए शनिवार को कर्नाटक के विजयपुरा जिले में थे। भैंस के दूध से बना और विशेष रूप से बनाए गए मिट्टी के बर्तन में जमाया हुआ ‘कोर्थी-कोल्हार दही’ कर्नाटक में अपने जबरदस्त स्वाद और गाढ़ेपन के लिए लोकप्रिय है। यह दही कोल्हार में एक दशक से अधिक समय से बेचा जा रहा है और यह आधुनिक, प्रसंस्कृत दही की तुलना में स्वादिष्ट और सस्ता है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और बीसी खंडूरी, बूटा सिंह, जेपी नड्डा और राजनाथ सिंह जैसे राष्ट्रीय नेताओं ने इस दही का स्वाद चखा है। हुबली-हुमनाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग-218 पर पर्यटक मिट्टी के बर्तनों में बिकने वाले और घर के बने इस दही का स्वाद लेने के लिए यहां रुकते हैं। दही की दुकान के मालिक राजशेखर मल्लिकार्जुन गुड्डूर ने बताया, ‘एक स्थानीय नेता ने मुझे कोर्थी-कोल्हार दही की आपूर्ति करने के लिए कहा था और बताया था कि इसे प्रधानमंत्री को उत्तरी कर्नाटक के व्यंजनों में से एक के रूप में परोसा जाएगा।

मैंने दही के लिए मिट्टी के 60 कुल्हड़ दिए, जिन्हें प्रधानमंत्री को परोसने से पहले प्रयोगशाला में जांचा गया था।’ गुड्डूर परिवार की चौथी पीढ़ी के सदस्य हैं जो राष्ट्रीय राजमार्ग-218 पर दही की दुकान चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री ने उनकी दुकान पर दही चखा तो वे ‘बहुत खुश’ नजर आए। उन्होंने कहा कि इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग-218 पर ही इस विशेष दही की भारी मांग है, लेकिन इसकी आपूर्ति कम है।

उन्होंने कहा कि कोल्हार शहर में कम दूध उत्पादन के कारण गांव में डेयरी उत्पादकों को दही उत्पादन में मुश्किल हो रही है। उन्होंने कहा, ‘एक भैंस के लिए अच्छी गुणवत्ता और अधिक मात्रा में दूध देने के लिए चारा बहुत जरूरी है। डेयरी उत्पादकों को अपनी भैंसों के लिए गुणवत्तायुक्त चारा प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है और इसलिए वे अधिक पशुओं को नहीं पाल रहे हैं।’

गुड्डूर ने कहा कि इस दही को जो स्वादिष्ट बनाता है वह और कुछ नहीं बल्कि पौष्टिक चारा है जिसे भैंसें खाती हैं और जो अच्छी गुणवत्ता वाला दूध देने में मदद करता है जिससे दही बनाया जाता है। डेयरी किसान हनुमंत न्यामागोंडा ने कहा, ‘पहले हम स्थानीय स्तर पर उगाई जाने वाली कुछ दालों और मक्का की फसलों से बना चारा भैंसों को खिलाते थे। चरने के लिए पर्याप्त खुले मैदान होते थे। अब यह सब कम हो गया है। किसान केवल गन्ने जैसी व्यावसायिक फसलें उगा रहे हैं जिससे पशुओं के चरने के लिए कोई जगह नहीं बची है। इससे यहां चारे की किल्लत हो गई है।’

अच्छी गुणवत्ता वाला चारा नहीं मिल रहा

न्यामागोंडा कुछ साल पहले 10 भैंसों को पालते थे और अब अच्छी गुणवत्ता वाले चारे की व्यवस्था करने में कठिनाई के कारण उनके पास केवल चार मवेशी हैं। डेयरी किसान-सह-स्थानीय पत्रकार परशुराम गनी ने कहा कि गन्ने के अवशेष सख्त होते हैं और भैंसों के चारे के रूप में उपयुक्त नहीं होते । फिर भी कई किसान इसे खिला रहे हैं, जिससे दूध की गुणवत्ता खराब हो गई है।

उन्होंने कहा कि एक और समस्या यह है कि जो लोग भैंस खरीदने के इच्छुक हैं, उन्हें कुछ योजनाओं के बावजूद वित्तीय मदद नहीं मिल पा रही है। सरकारी पशु चिकित्सक एमएन पाटील के अनुसार, कोल्हार शहर में 1,805 भैंस हैं, जबकि कोल्हार तालुका में लगभग 3,000 भैंस पाली जाती हैं। कर्नाटक दुग्ध महासंघ (केएमएफ) ‘कोल्हार दही’ का विपणन कर रहा है, लेकिन डेयरी किसानों, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं, की समस्याओं के समाधान के लिए और अधिक प्रयास किए जाने की जरूरत है। सौ वर्षीय बसव्वा कुम्हार ने कहा, ‘यहां मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कई परिवार हैं जो कई पीढ़ियों से विशेष गुणवत्ता वाले मिट्टी के बर्तन बनाते आ रहे हैं। मैं 12 साल की उम्र से दही के लिए कुल्हड़ बना रहा हूं। अब, मेरे पौत्र इस परंपरा को जारी रखे हुए हैं।’