जासूसी के आरोप में 1994 में गिरफ्तार इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायणन समेत कई अन्य लोगों के मामले में सीबीआई की जांच में पूरा मामला फर्जी निकला। इस केस में वैज्ञानिकों को फर्जी तरीके से फंसाने के लिए जासूसी की कहानी गढ़ी गई थी। तीस साल पुराने इस मामले के दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के सामने आरोप पत्र पेश किया है।

सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में कहा है कि केरल पुलिस की विशेष शाखा के एक अधिकारी ने 1994 के जासूसी मामले को गढ़ा था। इस मामले में गिरफ्तार किए गए और बाद में बरी किए गए पूर्व इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायणन ने कहा कि इससे झूठे मामलों में फंसे अन्य लोगों में आत्मविश्वास पैदा होगा। नारायणन ने कहा, “मुझे न्याय पाने के लिए 30 साल तक संघर्ष करना पड़ा। मुझे खुशी है कि मेरे जीवित रहते हुए यह मामला निष्कर्ष पर पहुंच रहा है। मैंने झूठे मामले में फंसाने वालों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए विभिन्न अदालतों में कई मुकदमे लड़े हैं। यह लड़ाई उन सभी लोगों में आत्मविश्वास पैदा करेगी, जिन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है और झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है।”

नारायणन सहित अन्य वैज्ञानिकों को 1994 में गिरफ्तार किया गया था

नारायणन सहित इसरो के वैज्ञानिकों और अन्य को 1994 में जासूसी मामले में गिरफ्तार किया गया था। सीबीआई ने जल्द ही मामले को अपने हाथ में ले लिया और 1996 में कोच्चि में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में एक क्लोजर रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया कि जासूसी के आरोप झूठे थे। इसके बाद अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पूर्व जज की अध्यक्षता में बनी थी जांच टीम

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले के पीछे कथित साजिश की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज डीके जैन की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी। 2021 में समिति की रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने सीबीआई को केरल पुलिस और खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों द्वारा कथित साजिश की जांच के लिए मामला दर्ज करने का निर्देश दिया। पिछले हफ्ते सीबीआई ने तिरुवनंतपुरम की एक अदालत में मामले में अपना आरोपपत्र दाखिल किया।

आरोपपत्र में पांच आरोपियों के नाम हैं – एस विजयन, जो 1994 में पुलिस की विशेष शाखा में इंस्पेक्टर थे, पूर्व डीजीपी सिबी मैथ्यूज, पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार, पूर्व आईबी अधिकारी पीएस जयप्रकाश और पूर्व एसपी केके जोशुआ। इसमें आरोप लगाया गया है कि पहले आरोपी के रूप में सूचीबद्ध विजयन ने 1994 में तिरुवनंतपुरम के एक होटल के कमरे में मालदीव की एक महिला के साथ जबरन यौन संबंध बनाए थे, महिला उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। इसके बाद उन्होंने कथित तौर पर उसके बारे में विवरण एकत्र किया और पाया कि उसने फोन पर इसरो वैज्ञानिक डी शशिकुमारन से संपर्क किया था। चार्जशीट में कहा गया है कि इसी वजह से जासूसी की कहानी गढ़ी गई।

सीबीआई के अनुसार विजयन ने मालदीव की महिला के यात्रा दस्तावेज जब्त कर लिए और उसे अपने देश वापस जाने से रोक दिया। एजेंसी ने कहा कि उसके खिलाफ निर्धारित समय से अधिक समय तक रहने का मामला दर्ज करने के बाद, जासूसी का कोई सबूत न होने के बावजूद विजयन ने बाद में उसे ऑफिशियल सिक्रेट एक्ट के तहत मामला दर्ज करवाने में अहम भूमिका निभाई।

आरोपपत्र में कहा गया है, “यह शुरुआत से ही कानून/अथारिटी के दुरुपयोग का स्पष्ट मामला है, क्योंकि पीड़िता (मालदीव की महिला) को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था और झूठे मामले में फंसाया गया था। शुरुआती गलतियों को बनाए रखने के लिए पीड़ितों के खिलाफ झूठी पूछताछ रिपोर्ट के साथ एक और गंभीर प्रकृति का मामला शुरू किया गया। इन झूठी पूछताछ रिपोर्टों का इस्तेमाल वैज्ञानिकों सहित अन्य लोगों की गिरफ्तारी के लिए किया गया।”

1994 के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों में मालदीव की दो महिलाएं, इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायणन और डी शशिकुमारन, रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ग्लेवकोसमोस के भारत प्रतिनिधि के चंद्रशेखर और बेंगलुरु स्थित श्रम ठेकेदार एसके शर्मा शामिल थे। सीबीआई के अनुसार, गिरफ्तारियां सिबी मैथ्यूज के इशारे पर की गई थीं, जो उस समय डीआईजी थे और जासूसी मामले के दर्ज होने के बाद गठित विशेष जांच दल का नेतृत्व कर रहे थे। मैथ्यूज पर आरोप है कि उन्होंने राज्य पुलिस की हिरासत में आईबी अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किए गए लोगों को शारीरिक और मानसिक यातना देने की अनुमति दी थी।