दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रामलीला मैदान से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अब तक का सबसे बड़ा हमला बोला। मुद्दा था दिल्ली में लाया गया अध्यादेश, लेकिन हमला कर दिया गया कि पीएम की डिग्री को लेकर। अरविंद केजरीवाल ने अपने भाषण में कई मौकों पर पीएम के लिए ‘चौथी पास राजा’ का इस्तेमाल किया। अब राजनेता हैं, विरोधी भी हैं, ऐसे में हमले आम बात हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से सियासी वार की बौछार की है, ये कुछ अलग है, एक बड़ी रणनीति का हिस्सा लगता है।

मोदी बनाम कौन वाली स्पेस को भरना चाहते केजरीवाल?

अरविंद केजरीवाल की राजनीति में एक समय ऐसा आया था जब वे पीएम नरेंद्र मोदी पर निजी हमले करने से बचते थे। वे बीजेपी पर वार करते थे, लेकिन सीधे-सीधे पीएम मोदी को कुछ नहीं कहते थे। 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद 2019 के चुनाव में जिस तरह से दिल्ली में आप का सफाया हुआ था, केजरीवाल समझ गए थे कि मोदी पर निजी वार करना जनता को ज्यादा रास नहीं आता। लेकिन अब जब 2024 के लोकसभा चुनाव का शंखनाद होने जा रहा है, अरविंद केजरीवाल अपने पुराने अंदाज में वापस आ गए हैं। ये अंदाज है सीधे पीएम मोदी से टक्कर लेने वाला, ये अंदाज है खुद को मोदी के खिलाफ सबसे बड़ा चेहरा बताने का।

इस समय विपक्ष के सामने सबसे बड़ा सवाल ये चल रहा है कि 2024 की लड़ाई में पीएम मोदी का मुकाबला कौन करेगा। ये सवाल ही पिछले 9 सालों से बीजेपी के लिए संजीवनी बना हुआ है क्योंकि विपक्ष के पास चेहरों की कमी है और इसका सीधा फायदा देश की सबसे बड़ी पार्टी को पहुंचता है। लेकिन उसी स्पेस को भरने की कोशिश कई नेता कर रहे हैं। जब पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने बीजेपी के विजयी रथ को रोक दिया था, तो कहा गया कि पीएम मोदी के सामने ममता बनर्जी एक मजबूत चेहरा साबित हो सकती हैं। वे क्योंकि पीएम पर भी लगातार हमलावर रहीं, उनकी नीतियों का विरोध करती रहीं, ऐसे में विपक्ष के लिए भी कद्दावर नेता साबित हुईं।

सिसोदिया गिरफ्तार, अध्यादेश विवाद और लाइमलाइट में केजरीवाल

लेकिन फिर उनकी पार्टी के कई नेताओं पर ईडी की रेड पड़ी, नोटों के पहाड़ सामने आने लगे, छवि कुछ धूमिल हुई और सियासी गेम कमजोर पड़ गया। बाद में कुछ समय के लिए नीतीश कुमार का नाम भी रेस में सामने आया, लेकिन अब अरविंद केजरीवाल ने गेयर बदल लिए हैं। पिछले कुछ समय से वे लगातार सुर्खियों में चल रहे हैं। पहले मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी ने उन्हें विपक्ष को एकजुट करने का मौका दिया, इसके बाद अब इस अध्यादेश विवाद ने भी उन्हें पूरी तरह लाइमलाइट में ला दिया है।

अब इस लाइमलाइट का इस्तेमाल अरविंद केजरीवाल बखूबी तरह से कर रहे हैं। उनके हमले पीएम मोदी पर हैं, बड़े बयान दे रहे हैं और इस अंदाज में बोल रहे हैं कि बीजेपी को मिर्ची लगना लाजिमी है। रामलीला मैदान से उन्होंने पीएम मोदी को लेकर एक कहानी सुना दी। नाम तो नहीं लिया लेकिन कह गए कि चौथी पास सम्राट देश का बेड़ा गर्क कर रहा है। नोटबंदी से लेकर किसान कानून तक का भी जिक्र कर दिया।

पहले पीएम पर सीधा हमला करने से बचते थे, क्या बदला?

यहां ये समझना जरूरी है कि जब कोई नेता लोकप्रिय हो जाता है, तब उस पर सीधा हमला करना सियासी नुकसान दे सकता है। ऐसा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव, 2019 के लोकसभा चुनाव और फिर 2022 के गुजरात चुनाव में साफ दिख चुका है। लेकिन जब उसी लोकप्रिय नेता के खिलाफ नाराजगी बढ़ने लगे, या उसकी सरकार विवादों में आ जाए, तब विरोधियों के हमले ज्यादा असरदार माने जाते हैं। अब इस समय आप संयोजक अरविंद कजेरीवाल भी इस समय वहीं मौका अपने लिए देख रहे हैं।

अगर ध्यान दिया जाए तो पिछले कुछ समय में केंद्र की मोदी सरकार कई मुद्दों की वजह से विवादों में चल रही है। हाल की कुछ घटनाओं की बात करें तो महिला पहलवानों का दिल्ली में चल रहा प्रदर्शन, ओडिशा ट्रेन हादसा, 2000 रुपये नोट का चलन से बाहर जाना, कश्मीर में बढ़ते आतंकी हमले और अडानी विवाद। इन सभी मुद्दों ने कुछ हद तक केंद्र के खिलाफ लोगों में एक नाराजगी पैदा की। अब उसी नाराजगी का इस्तेमाल अरविंद केजरीवाल करते दिख रहे हैं। राजनीतिक भाषा में कहें तो जब प्रजा राजा से कुछ नाराज चल रही हो, तब विरोधी अगर उस राजा पर सवाल उठाएं तो उसे गलत नहीं माना जाता।

मोदी स्टाइल से जनता का दिल जीतना चाहते केजरीवाल?

इसी वजह से अरविंद केजरीवाल पिछले कुछ समय से पीएम मोदी पर डायरेक्ट हमले कर रहे हैं। उनके कॉन्फिडेंस को इस बात से समझा जा सकता है कि अब वे सीधे-सीधे पीएम मोदी से मुकाबला करना चाहते हैं। उन्होंने रविवार को रामलीला मैदान से कहा था कि मोदी 12 साल तक गुजरात के सीएम रहे, फिर 9 साल उन्हें पीएम बने हो चुके हैं, यानी कि वे 21 साल से राज कर रहे हैं। मुझे दिल्ली में काम करते हुए आठ साल हुए हैं। मैं चैलेंज देता हूं कि मोदी के 21 साल बनाम मेरे आठ साल देख लिए जाए, पता चल जाएगा किसने अच्छा काम किया।

अब अरविंद केजरीवाल चैलेंज किसे कर रहे हैं, ये बड़ी बात है। बीजेपी पर वे हमले करते रहते हैं, पार्टी की राज्य सरकारों पर भी आरोप लगाए हैं, लेकिन सीधे-सीधे अपनी तुलना ही पीएम मोदी से कर देना ये बताने के लिए काफी है कि अरविंद केजरीवाल का आत्म विश्वास सातवें आसमान पर है। वैसे राजनीतिक जानकार तो कई बार वैसे भी चर्चाओं में इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि अरविंद केजरीवाल ‘मोदी स्टाइल’ काफी फॉलो करते हैं। कहने को उन्हें मुकाबला उन्हीं से करना है, लेकिन उन्हीं की रणनीति को इस्तेमाल कर चुनौती देने की तैयारी है।

मोदी-केजरीवाल की समान रणनीति, बदलेगा गेम?

इसे हाल ही में हुए गुजरात चुनाव से बखूबी समझा जा सकता है। अरविंद केजरीवाल ने उस चुनाव में दो पहलुओं पर खास ध्यान दिया। पहला ये कि वे अपने चेहरे पर वोट मांगेंगे और दूसरा ये कि लगातार विक्टिम कार्ड खेलेंगे। अब ये कोई आप संयोजक की ओरिजिनल रणनीति नहीं है, कई सालों से राजनीति कवर कर रहे राजनीतिक जानकार बताते हैं कि पीएम मोदी की पूरी सियासत ही इन पहलुओं पर टिकी हुई है। पिछले 9 सालों में तो शायद ही कोई ऐसा चुनाव रहा होगा जहां पीएम ने ये ना कहा हो कि उन्हें याद कर वोट डाला जाए। वहीं विक्टिम कार्ड की बात करें तो पीएम मोदी ने गुजरात के सीएम रहते वक्त अपने पर हुए हर निजी हमले को राज्य की अस्मिता से जोड़ने का काम किया था।

अब अरविंद केजरीवाल भी ऐसा ही करते दिख जाते हैं। पहले गुजरात चुनाव में उन्होंने कहा था कि सभी मिलकर मुझे मारना चाहते हैं, सारे भ्रष्ट एक ईमानदार शख्स के पीछे पड़ गए हैं। अब जब दिल्ली में अध्यादेश विवाद शुरू हो गया है, सिसोदिया की गिरफ्तारी हो चुकी है, वे कह रहे हैं कि मोदी काम करने नहीं दे रहे। वे एक तरह से पीएम मोदी को दिल्ली की जनता की नजर में विलेन बनाने का काम कर रहे हैं। वे कहना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ अधिकार दिए थे, लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने वो सब छीन लिया। यानी कि केजरीवाल दिल्ली की जनता के वो ‘नायक’ बनना चाहते हैं जो ना सिर्फ उनके हितों की रक्षा कर रहा है, बल्कि ताकतवर लोगों से अकेला लड़ रहा है।

हमल मोदी पर, विपक्षी एकता में बड़ा रोल चाहते केजरीवाल?

अब ‘हितों की रक्षा’ करने वाला, ‘अकेले लड़ने वाला’, ये दो ऐसी बाते हैं जो पीएम मोदी खुद के लिए कई मौकों पर इस्तेमाल कर चुके हैं। अब जब अरविंद केजरीवाल को पीएम मोदी को टक्कर देनी है, वो डायरेक्ट हमले तो कर ही रहे हैं, साथ में तगड़ी मैसेजिंग करने का काम भी कर रहे हैं। सवाल ये है कि क्या ये मैसेजिंग दिल्ली के बाहर भी केजरीवाल को उतनी स्वीकृति दिला सकती है? अब इसका जवाब 2024 से पहले इसी महीने 23 जून को मिल जाएंगे जब बिहार में सभी विपक्षी दल की पार्टियां साथ आ रही हैं। वहां पर केजरीवाल अपनी उपस्थिति कैसे दर्ज करवाते हैं, इसी पर काफी कुछ निर्भर रहने वाला है। पीएम मोदी पर लगातार हमला कर उन्होंने एक पिच तो तैयार कर दी है, अब कितने सियासी रन वे इस पर बटोर सकते हैं, ये आने वाले दिनों में साफ होगा।

वैसे अरविंद केजरीवाल खुद को ज्यादा अहमियत इसलिए भी दे रहे हैं क्योंकि उन्हें लगने लगा है कि विपक्षी एकता में सही मायनों में उनकी भी अहम भूमिका रह सकती है। असल में जो फॉर्मूला ममता बनर्जी ने सभी दलों को दिया है, अगर उस पर फोकस किया जाए तो उसके तहत कम से कम लोकसभा की 20 सीटों पर तो आम आदमी पार्टी भी मजबूत पकड़ रखती है। इसमें पंजाब की 13 और दिल्ली की 7 सीटें शामिल हैं। इस सब के ऊपर पीएम मोदी पर लगातार हमला कर केजरीवाल उस स्पेस को भी भरने की कोशिश कर रहे हैं जो अब तक शायद कोई विपक्षी नेता नहीं भर पाया है। कामयाब हो पाते हैं या नहीं, आने वाले महीनों में सब तय हो जाएगा।