कश्मीर में उग्रवादियों तक वे हथियार पहुंचने लगे हैं, जिनका इस्तेमाल अफगानिस्तान में उग्रवादी और अमेरिकी सेना करती रही। नाटो देशों के सैनिकों ने अफगानिस्तान में अभियान के दौरान हथियारों को पहुंचाया और इस्तेमाल किया। धीरे-धीरे ये हथियार वहां के उग्रवादियों तक पहुंचने लगे। अब अफगानिस्तान से नाटो देशों के निकलने के बाद वे हथियार तस्करी के जरिए भारत समेत कई देशों के उग्रवादी संगठनों, खासकर कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों तक पहुंचने लगे हैं।

इस बात के सबूत राष्ट्रीय जांच एजंसी (एनआइए) को एक छानबीन के दौरान मिले हैं। एनआइए के अधिकारी कश्मीर में 13 मई को एक बस पर हुए आतंकी हमले की जांच कर रहे हैं, जिसमें चार लोग मारे गए थे और 20 से ज्यादा घायल हो गए थे। जांच एजंसियां उस धमाके बाद यह जानने की कोशिश में हैं कि बस पर हुए हमले में आतंकवादियों ने ‘स्टिकी बम’ का इस्तेमाल तो नहीं किया था। जांच एजंसियों को संदेह है कि कश्मीर में आतंकवादियों के पास ‘स्टिकी बम’ आ चुका है।

जम्मू-कश्मीर फ्रीडम फाइटर्स एक ऐसा संगठन है, जिसके बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं है। इसी संगठन ने 13 मई के हमले की जिम्मेदारी ली थी, और दावा किया था कि उसने स्टिकी बम का इस्तेमाल किया। स्टिकी बम एक तरह का आइईडी बम होता है, जिसे चलते वाहन पर चिपकाकर रिमोट के जरिए धमाका किया जाता है।

कश्मीर में आमतौर पर ऐसे ‘स्टिकी बम’ नहीं देखे गए। हालांकि पिछले साल फरवरी में एनआइए ने एक छापे में ऐसे दर्जनों बम बरामद किए थे। ये वैसे ही बम हैं, जो अफागनिस्तान में नाटो विरोधी जंग में आतंकवादियों द्वारा प्रयोग किए जाते थे। भारतीय अधिकारियों ने दावा किया है कि उन्हें ऐसे बहुत से हथियार मिले हैं, जिन पर अमेरिकी मुहर लगी है। उत्तरी पाकिस्तान से लगती अफगानिस्तान की सीमा कश्मीर के बहुत करीब है। इसी रास्ते से आतंकवादी भारतीय इलाके में घुसपैठ करते हैं। हालांकि पाकिस्तान इस बात से इनकार करता है कि वह कश्मीर में हिंसक गतिविधियों को किसी तरह का समर्थन करता है। उसका कहना है कि वह कश्मीरी आंदोलनकारियों को कूटनीतिक और नैतिक समर्थन देता है।

पिछले साल अगस्त में नाटो सेनाओं ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था। भारतीय सेना को उसके बाद भारतीय कश्मीर में अमेरिका-निर्मित एम4 कार्बाइन राइफलें मिली थीं। ये राइफल कश्मीर में मुठभेड़ों में मारे गए चरमपंथियों के हाथों में ही बरामद हुई थीं। फरवरी में भारतीय सेना के मेजर जनरल अजय चांदपुरिया ने माना था कि अमेरिका में बने अत्याधुनिक हथियार अफगानिस्तान के रास्ते भारत में प्रवेश कर चुके हैं। चांदपुरिया के मुताबिक, हमने जो हथियार और उपकरण बरामद किए हैं, उनसे हमें अहसास हुआ कि अमेरिकी जो अत्याधुनिक हथियार अफगानिस्तान में छोड़ गए थे, वे इस तरफ आ रहे हैं. इनमें से कुछ हथियार तो लाइन आफ कंट्रोल (एलओसी) के पास हाल ही में हुई मुठभेड़ों में मिले हैं।

सेना के एक अधिकारी के मुताबिक, अमेरिकी हथियारों के कश्मीर में मिलने की जांच की जा रही है। उन्होंने कहा, काबुल के तालिबान के हाथों में चले जाने का भारतीय क्षेत्र की सुरक्षा स्थिति पर, खासकर कश्मीर पर बड़ा असर हुआ है। 1989 में जब सोवियत संघ के सैनिक अफगानिस्तान छोड़कर गए थे तब अफगान लड़ाके कश्मीर में पहुंच गए थे। हम वैसा ही कुछ दोबारा देख सकते हैं। लेकिन, भारतीय सेना उससे निपटने में तैयार है।
इन दिनों सेना ने तलाश अभियान तेज कर दिया है। छापे मारे जा रहे हैं। पाकिस्तान से प्रशिक्षण लेकर आए आतंकी पकड़े जा रहे हैं या मुठभेड़ में अपनी जान गंवा रहे हैं।

जो हथियार मिले हैं

ऐसे वीडियो सामने आए हैं जिनमें अमेरिका-निर्मित एम4 कार्बाइन राइफलें, एम249 आटोमेटिक राइफल, 509 टेक्टिकल गन, एम1911 पिस्टल और एम4 कार्बाइन जैसे हथियार लिए आतंकवादी नजर आए। इसके अलावा, करीब एक दर्जन इरिडियम सैटलाइट फोन और वाई-फाई आधारित थर्मल इमेजरी डिवाइस भी नजर आई, जिन्होंने रात के वक्त कार्रवाई करने में आतंकवादियों की मदद की होगी। ये वही हथियार हैं, जो अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान में प्रयोग कर रही थीं।